IPRD झारखण्ड ने बताई राज्य के लोक-कलाकारों की औकात, अब ठेकेदार निर्धारित करेंगे उनके भविष्य

एक कलाकार न तो पैसों का मोहताज होता है और न ही किसी ठाठ-बांट का, अपनी कलाकारी दिखाने के दौरान उसे जो भी मिल गया, उसी से वो खुश रहने की कला जानता हैं, तभी तो वो कलाकार है, पर राज्य के होनहार मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके आगे-पीछे घुमनेवाले लोगों की बात करें, तो उन्हें लगता है कि दुनिया की सारी ज्ञान उनके चरण-कमलों में आकर ही दम तोड़ देती हैं।

दरअसल ये भ्रम कोई इन्हें पहली बार नहीं हुआ हैं, ये भ्रम उस हर व्यक्ति को हो जाता है, जो सत्ता के दाये-बाये घुमता रहता है, फिलहाल चूंकि सत्ता में ये विद्यमान है, तो इन्हें लगता है कि दुनिया की सारी बुद्धि इन्हीं के पास चली आई है, इसलिए ये अपनी कलाकारी दिखाये जा रहे हैं।

जिन्हें कला का थोड़ा भी ज्ञान है, वे बताते है कि राज्य सरकार ने जो इस बार टेंडर निकाला हैं, और कलाकारों को भी ठेकेदारी प्रथा में निबटाने का प्रयास किया है, वो राज्य ही नहीं बल्कि खुद सरकार के सेहत के लिए ठीक नहीं है, क्योंकि आइपीआरडी में काम करनेवाले किरानी से लेकर प्रधान सचिव तक को पता ही नहीं कि कला और कलाकार क्या होता है? इन्हें पता ही नहीं कि सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग अन्य विभागों से काफी अलग है, और यहां कला और कलाकारों का कद्र नहीं होगा तो ले-देकर ये विभाग भी आराम से अन्य विभागों की तरह बैठ जायेगा।

हालांकि ऐसे भी ये लोग इस विभाग को बैठाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं, तभी तो 29 मई और 11 जून को निकाले विज्ञापन ने इनके मन-मस्तिष्क में चल रहे विस्फोट को उजागर कर दिया है, राजनैतिक पंडितों की माने तो इस विज्ञापन से साफ पता चलता है कि कोई न कोई ऐसा व्यक्ति इस विभाग में ऐसा बैठ गया है, जो नहीं चाहता है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास का इमेज जनता के बीच में ठीक जाय, इसलिए वह बड़ी ही बुद्धि से खुद को अपने आकाओं के बीच स्थापित कर, वह सारा काम कर रहा हैं, जिससे राज्य और  राज्य के सीएम के छवि का बंटाधार हो जाये, और बंटाधार हो भी रहा हैं, क्योंकि अब तक जो प्रमाण देखने को मिले हैं, वो बता रहा हैं कि वो व्यक्ति बहुत ही चालाक है।

जरा देखिये, 29 मई और 11 जून को एक विज्ञापन निकला है, उस विज्ञापन में ठेकेदारों को कहा गया है कि आपको करना क्या है? यानी जो उन्हें करने को दिया जा रहा है, उसमें यह भी लिखा है कि “वित्तीय निविदा में झारखण्ड राज्य के किसी भी क्षेत्र में प्रति कार्यक्रम का वाहन का भाड़ा, वाहन चालक, वाहन का ईंधन, पार्किंग शुल्क, कलाकारों का मानदेय, कलाकारों का परिवहन व्यय, उनके भोजन, रात्रि विश्राम एवं अन्य सभी प्रकार के व्यय सम्मिलित कर दर अंकित करना होगा। झारखण्ड सरकार की विभिन्न लोककल्याणकारी नीतियों, योजनाओं, उपलब्धियों तथा जनजागरुकता विषयक कार्यक्रमों को लाइट एवं साउंड सुविधायुक्त वाहन के माध्यम से  झारखण्ड राज्य के किसी भी क्षेत्र में आम-जन तक कलाकार दल द्वारा प्रस्तुति करना होगा।”

सूत्र बताते है कि निविदा को ध्यानपूर्वक देखें तो निविदा इस प्रकार से निकाली गई है कि, ताकि जिसने निविदा निकाली हैं, उसके चहेते को ये निविदा आसानी से प्राप्त हो जाये और लोक-कलाकारों की परेशानियां बढ़ जाये, निविदा प्राप्त करनेवाला व्यक्ति अपने मनपसन्द कलाकारों का चयन कर, अपने ढंग से डायरेक्शन करें, उसके मन-मुताबिक कलाकार काम करें, इससे कला के प्राण-पखेरु ही क्यों न उड़ जाये, इससे उसको कोई मतलब नहीं।

राजनैतिक पंडितों के अनुसार, राज्य सरकार और इनके विभागीय अधिकारियों ने इसमें भी जमकर खेल खेला है, कम से कम कला और कलाकारों में राजनीति नहीं घुसेरनी थी, पर इन्होंने राजनीति घुसेर दी, अब इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि जिसे ये लोग निविदा प्रदान करेंगे, वह कलाकारों का चयन अपने ढंग से करेगा और यहां भी झारखण्डी-मूलवासी छले जायेंगे और इस विभाग में तथा निविदा प्राप्त करनेवाले लोग, अपने मन-मुताबिक भ्रष्टाचार को एक नई गति प्रदान करेंगे।

हालांकि इस निविदा को लेकर, प्रक्रिया अंतिम चरण में हैं, केवल औपचारिकता मात्र रह गई है, पर कहा जाता है न, अभी तो सरकार हमारी हैं, जो करना है करेंगे, कौन इनका उखाड़ लेगा, पर इतना तो तय है कि राज्य के कलाकार अब पूरी तरह श्रीहीन हो जायेंगे, क्योंकि अब उन्हें कोई कलाकार, अपने कला का प्रदर्शन करने के लिए नहीं कहेगा, बल्कि एक ठेकेदार के इशारों पर वे काम करेंगे।

जबकि केन्द्र में इसके लिए गीत तथा नाटक प्रभाग ही बना हुआ है, जिसके कलाकार केन्द्र सरकार के कार्यक्रमों और उनकी नीतियों को जन-जन तक पहुंचाते हैं, पर झारखण्ड में जो करेगा वो ठेकेदार करेगा, और राज्य सरकार की योजनाओं को जन-जन तक पहुंचायेगा और वह ठेकेदार कौन होगा, इसका भी फैसला, वे लोग करेंगे, जो सीएमओ में बैठ कर सारा काम करते हैं, तो लीजिये झारखण्ड के कलाकारों अब ठेकेदारों के आगे अपनी कला को सौंप कर, जय झारखण्ड बोलते रहिये और रघुवर सरकार के इस निर्णय का मजा लीजिये।