अपनी बात

रांची प्रेस क्लब का उद्घाटन, सत्ता पक्ष की पत्रकारों ने आरती उतारी और विपक्ष को दिखाया अंगूठा

रांची में प्रेस क्लब बनकर तैयार हो गया। उसका उदघाटन भी हो गया। इस राज्य ने कई मुख्यमंत्री देखे, कई ने कई पत्रकारों से प्रेस क्लब बनाने के वायदे किये, पर किसी को यह वायदा पूरा करने का सौभाग्य नहीं मिला, पर सीएम रघुवर दास ने यह कर दिखाया, और उन्हें इसका यश मिला। रांची प्रेस क्लब को इस प्रेस क्लब को चलाने की जिम्मेदारी मिली है। बहुत सारे धूर्त कथित पत्रकारों का समूह इस उद्घाटन समारोह के समय मौजूद थे, कुछ संचालन का दायित्व निर्वहण कर रहे थे तो कोई धन्यवाद ज्ञापन कर रहा था, कोई मुख्यमंत्री रघुवर दास के साथ मधुर संबंध बनाने के लिए उनके चरणकमलो में लोटे जाने का मन ही मन प्रयास कर रहा था, तो किसी को इसी दौरान सीएम रघुवर दास में हनुमान का रुप दिखाई दे रहा था।

सीएम भी कथित पत्रकारों द्वारा स्वयं की आरती उतारे जाने पर गदगद थे, भाषण के दौरान उन्होंने प्रवचन भी दिया। मार्गदर्शक मंडल बनाने तथा ऐसे लोग जो झूठे सम्मान के भूखे होते है, उन्हें कैसे माला पहना कर, उनसे धन ऐंठे जाये, उसकी रुपरेखा तय करने, उसकी भी प्लानिंग करने की कथित पत्रकारों से योजना बनाने का अनुरोध किया, सभी मुख्यमंत्री के कथित यशस्वी भाषण पर फिदा हुए, नाश्ता-पानी हुआ, और लोग चलते बने।

रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष बलबीर दत्त ने इस दौरान कहा कि राज्य सरकार ने प्रेस क्लब का भवन बनाकर, रांची प्रेस क्लब को दे दिया, यह साबित करता है कि राज्य सरकार व मीडिया के बीच अच्छे व मधुर संबंध है। अब सवाल उठता है कि क्या रघुवर सरकार द्वारा प्रेस क्लब बनाकर कथित पत्रकारों को दे दिया जाना ही, पैमाना है कि राज्य सरकार व मीडिया के बीच अच्छे व मधुर संबंध है?

क्या इस अच्छे व मधुर संबंध से राज्य की जनता को भला हो रहा है? या उन मीडिया समूहों और उनके मालिकों को फायदा हो रहा है, जो सत्ता के साथ मधुर संबंध बनाकर मलाई काट रहे हैं? मैं तो देख रहा हूं कि सीएम रघुवर दास और मीडिया के बीच बने अच्छे व मधुर संबंधों ने पत्रकारिता के मूल जड़ पर ही चोट करते हुए, उसे समूल नष्ट करने  को तुला हैं। सरकार के साथ मधुर संबंध बनाने की आड़ में रांची के कुछ अखबार तो सीएम रघुवर दास के चरणों में लोट से गये हैं। इनकी लोटनई देखकर तो स्वयं को आदमी कहने में हमें शर्म महसूस होता है, पत्रकारिता तो बहुत दूर की बात हैं।

कभी यहीं लोग पूर्व में सीएम बाबूलाल मरांडी, सीएम अर्जुन मुंडा, सीएम मधु कोड़ा, सीएम शिबू सोरेन, सीएम हेमन्त सोरेन के मुख्यमंत्रित्व काल में मलाई काट चुके हैं, और फिलहाल वर्तमान सीएम रघुवर दास से उपकृत होने के लिए, उनके आगे ठूमरी गा रहे हैं। हम आपको बता दें कि आनेवाले समय में जैसे ही कुछ महीने के बाद एक नया मुख्यमंत्री दिखाई पडेगा, बस उस नये मुख्यमंत्री के सामने एक बार फिर ये कथित पत्रकार सज-धज कर ठुमरी गाने बैठ जायेंगे।

जब हमने, रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष बलबीर दत्त से राज्य की सरकार और यहां के कथित पत्रकारों और उनके बयान – राज्य सरकार व मीडिया के बीच अच्छे संबंध है, पर प्रतिक्रिया लेनी चाही तो उन्होंने स्वयं को बचाते हुए, एवं स्वयं को प्रतिष्ठित करते हुए कहा कि जो हैं, हमारे पास वैसे ही लोगों से हमें प्रेस क्लब चलाना होगा, जैसे किसी ने पूर्व में किसी से कहा था “इस सराय में बहुत टूटे फूटे दिये हैं, रात इन्हीं दियों से बिताने हैं यारो।”

आश्चर्य इस बात की भी कि जो लोग पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहने का ढिंढोरा पीटते हैं, जरा उन पत्रकारों और सत्तापक्ष के नेताओं से पूछिये कि जब कल आप रांची में प्रेस क्लब का उद्घाटन कर रहे थे, तो विपक्ष कहां था?  क्या केवल सत्तापक्ष की चाटुकारिता करना, केवल सत्तापक्ष के सहारे ही प्रेस क्लब का उद्घाटन करना ही, लोकतंत्र का सोपान है। सीएम रघुवर दास और वहां बैठे उनके प्यारे दुलारे मंत्री सी पी सिंह, सांसद राम टहल चौधरी, पत्रकार बलबीर दत्त बताये कि क्या रांची में उन्हें विपक्ष का एक भी नेता नहीं मिला, जो इस खुबसुरत पल का साक्षी बन सकें। केवल मैं हूं, मैंने ही किया, मैं ही कर सकता हूं, मैं नहीं तो झारखण्ड नहीं, ऐसे अहं शब्दों से जितना जल्द हो आप अपने को दूर करें, उतना ही अच्छा हैं, नहीं तो रांची प्रेस क्लब, पत्रकारों का क्लब न बनकर, एक मृत आवासीय रैन बसेरा बनकर रह जायेगा, क्योंकि मैं देख रहा हूं कि कल के उद्घाटन में केवल सत्तापक्ष और सत्ता के चाटुकार कथित पत्रकारों का ही बोलबाला था, जो बता रहा था कि रांची प्रेस क्लब का भविष्य क्या है?