अपनी बात

किस धार्मिक पुस्तक में लिखा है कि धनतेरस के दिन लोहा-लोक्कड़, टीवी, फ्रिज, कार, बाइक आदि खरीदने से लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं?

अखबारों व चैनलों में धनतेरस के विज्ञापनों की भरमार हैं। उपभोक्ताओं को इन विज्ञापनों ने ऐसे भ्रमजाल में फांस लिया हैं। जैसे लगता है कि धनतेरस भौतिक सुख-सुविधाओं से लैस होने का ही महापर्व है। लेकिन मैं भी 55 साल का हो गया हूं, कई धार्मिक/आध्यात्मिक पुस्तकों को पढ़ा हूं, पर आज तक कोई ऐसी पुस्तकें नहीं मिली, जिसमें यह लिखा हो कि धनतेरस की दिन टीवी, फ्रिज, रेफ्रिजरेटर, मोटरसाइकिल, कार, सोने-चांदी, हीरे-मोती के जेवरात खरीदने ही चाहिए और न ही कही ऐसा पढ़ने को मिला कि अपने घर में रखे बहुमूल्यों धनों को व्यापारियों के घर धनतेरस के दिन रख देना चाहिए।

अब मैं सोचता हूं कि जब कही लिखा ही नहीं, तो ये करोड़ों-अरबों का बाजार धनतेरस के नाम पर सजता और संवरता कैसे हैं? तो इसका साफ उत्तर यही मिलता है कि अखबारों/चैनलों में बैठे लम्पट संपादकों और एक नंबर के पतित तथाकथित पंडितों (जो सही में ब्राह्मण होते ही नहीं हैं) की बुद्धिहीन बातों और इस व्यापार में लगे बड़े-बड़े व्यापारियों के दिमाग का ये फितूर है, जिसके भ्रमजाल में सामान्य नागरिक व परिवार आ जाता है और सुख के नाम पर धनतेरस के दिन दुखों का पहाड़ उठाकर ले आता हैं।

जिससे उससे सुख तो कदापि नहीं मिलती, लेकिन सालों भर का दुख व जरुर झेलने को मजबूर हो जाता हैं, और उधर व्यापारियों का समूह व उत्पादनकर्ता धनतेरस के नाम पर अच्छा कारोबार कर लेता हैं, जो सामान्य दिनों में संभव नहीं होता। ठीक इसी प्रकार का व्यवसाय ये लंपट संपादक, मूर्ख पंडितों (जो सही में ब्राह्मण नहीं होते) और व्यापारियों का समूह अक्षय तृतीया और बार-बार आनेवाले पुष्य नक्षत्र के नाम पर कर लिया करते हैं।

अब सवाल उठता है कि धनतेरस में धन नहीं खरीदें तो क्या करें? उसका सही जवाब हैं, कि धनतेरस के दिन के महत्व को समझे, सब क्लियर हो जायेगा। दरअसल धनतेरस के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान धनवन्तरि का जन्म हुआ था। धन्वन्तरि को आरोग्य व आयुष का प्रथम देवता माना जाता है। चूंकि स्वास्थ्य भी एक प्रकार का धन है, इसलिए स्वास्थ्य रुपी धन के बारे में भी लोगों को जागरुक होना जरुरी है, अगर स्वस्थ आप नहीं होंगे तो दुनिया का कोई सुख कितना भी महत्वपूर्ण क्यों न हो, आप उसका आनन्द नहीं उठा पायेंगे।

धनतेरस का दिन स्वास्थ्य को नजदीक से जानने और आरोग्य के प्रथम देवता धन्वन्तरि को याद करने का दिन हैं, जिनकी कृपा से हम स्वस्थ रह सकें। आज भी जो आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं, वे इस दिन को बड़े ही धूम-धाम से मनाते हैं। जो शाकद्वीपीय ब्राह्मण (ब्राह्मणों की एक उप जाति) होते हैं, उनके घरों में आज के दिन की रौनक ही कुछ और होती हैं, वे इस दिन यम को दीप-दान करना नहीं भूलते। उनके यहां आज ही एक प्रथम दीपोत्सव का कार्यक्रम शुरु हो जाता है, जो बताता है कि स्वास्थ्य कितना जरुरी है। अगर आप सामान्य भी पढ़े लिखे हैं तो आपने ये दोहा जरुर सुना होगा –

धन गया, कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया कुछ गया। लेकिन चरित्र गया तो सब कुछ चला गया।।

हमारे यहां चरित्र की ही प्रधानता है, उसके बाद स्वास्थ्य की प्रधानता है, लोग बताते है कि अगर स्वास्थ्य खराब हुआ तो आप प्रभावित होने लगते हैं, लेकिन भौतिक सुख-सुविधाओं वाली धन आपके लिए जीवन में उतना महत्व नहीं रखता। जिनकी उम्र अभी पचास से उपर की हैं, जरा उन्हीं से पूछिये कि जब वे पन्द्रह या सोलह साल के होंगे तो उनके माता-पिता धनतेरस के दिन क्या करते थे, तो वे बतायेंगे कि वे टूटे-फूटे बरतनों को ले जाकर, आज के दिन नये बरतनों को ले आते थे, क्योंकि उस वक्त वे लोहे-लक्कड़ों या प्लास्टिक के थालियों या ग्लासों में भोजन नहीं किया करते थे।

उनके बरतन ज्यादातर पीतल या कांसे के बने होते थे, जो स्वास्थ्य कारणों से भी बेहद महत्वपूर्ण होते थे, इसलिए स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण ये बरतनें इस्तेमाल करने में अगर वो टूट जाता था तो पुनः इसके बदले नये पीतल या कांसे का बरतन धनतेरस के दिन बदलकर ले आया करते। आज भी स्वास्थ्य के लिए पीतल व कांसे का बरतन उतना ही उपयोगी हैं, जितना कल था। इसके फायदे भी अनेक हैं, इसका दुबारा उपयोग भी हो सकता है, बार-बार उसका पुनर्निमाण किया जा सकता हैं, जिससे इस उद्योग में लगे लोगों को रोजगार भी मिलता रहता हैं, पर आज के धनतेरस में मिलनेवाले सामग्रियों को खरीदने से किसका भला होता हैं, कोई बतायें। क्या इससे भारत समृद्ध होता हैं या चीन समृद्ध  होता हैं या बहुराष्ट्रीय कंपनियां समृद्ध होती हैं?

सनातन धर्म में तो ऐसे कोई पर्व हैं ही नहीं जो धन को महत्व देते हैं, हमारे यहां तो चरित्र ही प्रमुख है, और धनतेरस के दिन तो लक्ष्मी की पूजा होती ही नहीं, तो फिर उस दिन लंद-फंद सामान खरीदने से क्या फायदा? और किस मूर्ख ने कह दिया की बाइक, कार, सोने-चांदी, लोहे-लक्कड़ खरीदने से लक्ष्मी खुश होती हैं, लक्ष्मी तो गणेश के साथ रहकर खुश होती हैं, अर्थात् बुद्धि के साथ रहकर ही लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं, ये बातें किसी को समझ में क्यों नहीं आती।

अरे आप जिस दीपावली के दिन लक्ष्मी-गणेश की पूजा करते हैं, उस लक्ष्मी व गणेश के मूल रहस्यों को भी समझ लेते तो कम से कम अपने घर में रखी धन को नाश होने से तो जरुर ही बचा लेते। धनतेरस के दिन बिना मतलब के सामान खरीदना धन का नाश ही करना है। कहा भी गया है कि धन की तीन गतियां हैं – दान, भोग, नाश तो आप खुद समझ लीजिये कि आपने अपने धन का दान किया, उपभोग किया या खुद ही नाश कर दिया। याद रखिये, समझदारी में ही भलाई है, धन का सदुपयोग कीजिये, नाश नहीं।