राजनीति

अफसोस! जिस देश में गांधी-पटेल जैसे नेताओं ने जन्म लिया, वहां केजरीवाल जैसे लोग भी…

इन दिनों दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल सुर्खियों में हैं। इस बार की सुर्खियों उनके द्वारा देश के विभिन्न राजनीतिक दलो के प्रमुख नेताओं के खिलाफ आरोपों को लेकर नहीं, बल्कि इस बार वे उन प्रमुख नेताओं से विभिन्न न्यायालयों में लिखित आवेदन देकर माफी मांगने को लेकर सुर्खियों में हैं। हो सकता है कि माफी मांगने को लेकर, वे रिकार्ड भी बना लें।

आश्चर्य हैं, जिस देश में गांधी जैसे लोग पैदा लिये, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान विभिन्न अदालतों मे सर तक नहीं झूकाया, जेल जाना पसंद किया, पर झूके नहीं, पर आज के नेता, स्वयं के फैलाये जाल में खुद फंसकर, जेल जाने से डरते हुए, नाक रगड़ते हुए माफी मांगते हैं, उनमें से अरविन्द केजरीवाल ने रिकार्ड बनाने का एक तरह से फैसला ले लिया है।

जरा देखिये, हाल ही में इन्होंने किससे-किससे लिखित माफी मांगी हैं। इन्होंने केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी और कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल से बिना शर्त माफी मांग ली। अरविन्द केजरीवाल ने दो अलग-अलग पत्रों में लिखा कि उन्हें सत्यापन के बिना टिप्पणी करने का खेद है, वे स्वीकार करते है कि ये आरोप निराधार है। नितिन गडकरी मामले में अरविन्द ने कहा कि उन्होंने सत्यापन के बिना कुछ कहा, इससे आपको ठेस पहुंची। इसका उन्हें खेद है।

इसके पूर्व भी अकाली दल के नेता विक्रम सिंह मजीठिया से मादक पदार्थ कारोबार में संलिप्तता को लेकर टिप्पणियों के संबंध में माफी मांगी थी। जिसको लेकर केजरीवाल की पार्टी में भूचाल आ गया और कई नेताओं ने अरविन्द केजरीवाल की खिंचाई कर दी। केजरीवाल पर अरुण जेटली की ओर से भी मानहानि का मुकदमा चल रहा है। यहीं नहीं देश के विभिन्न राज्यों में उन पर मानहानि के 33 केस दर्ज है।

सवाल उठता है कि जब आप इतने कमजोर है कि आप एक केस का सामना नहीं कर सकते तो फिर किसी पर आरोप क्यों लगाते हैं? किसी पर आरोप लगाने के पूर्व, क्या आपको यह पता नहीं लगाना चाहिए कि, आप जिस पर आरोप लगा रहे है, उसमें सत्यता कितनी है? क्या आपके बेवजह आरोप लगाने और उसके बाद चर्चित हो जाने के बाद, राजनीतिक रास्ता अख्तियार कर, दिल्ली की गद्दी पर बैठने से, ये पता नहीं लग जाता कि आपने अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए, जनता को धोखा दिया? क्या आपके इस माफी मांगने की प्रवृत्ति ने उन लाखों आंदोलनकारियों के सपने पर कुठाराघात नहीं किया, जिन्होंने आप पर विश्वास किया, और आपके लिए अपने घर-बार छोड़ दिये? क्या अब ये सिद्ध नहीं हो गया कि भाजपा, कांग्रेस और आप में कोई अंतर नहीं, सभी इन पार्टियों में समान लोग की सोच हैं, जिनका काम जनता को अपनी बातों से धोखे में रख अपना उल्लू सीधा करना है?

अब कौन मुंह लेकर अरविन्द केजरीवाल जनता के पास जायेंगे? ये कहेंगे कि मैं झूठ बोलनेवाला नेता हूं, मैं झूठा आरोप लगाता हूं, मैं झूठा आरोप लगाकर माफी मांग लेता हूं, मैं बहुत कमजोर हूं, अदालत की दांव-पेंच नहीं समझ पाता, इसलिए मैंने माफी मांग लिया और अब आप मुझे माफ कर दें, मैं दिल्ली को इस बार जरुर बेहतर बना दूंगा, सॉरी इस बार दिल्ली को बेहतर नहीं बना पाया…

क्या हो गया है, आज के नेताओं को, जिस पर जनता विश्वास करती हैं, वहीं उसके विश्वास के साथ खेलता है, स्थिति यह हो गई हैं कि अरविन्द केजरीवाल ने जनता के साथ इतना बड़ा विश्वासघात किया है कि आनेवाले समय में अब जनता किसी पर विश्वास ही नहीं करेगी। इनके साथ जो भी नेता हैं, चाहे तो वे भाजपा में चले गये, बचे तो कांग्रेस में चले गये और जिनको कही न जगह मिली तो वे आप में बने हुए हैं, ऐसे में इस पार्टी का क्या भविष्य हैं या क्या होगा, ईश्वर जाने? पर इतना जरुर तय है कि हमारे देश में अब गांधी, नेहरु, शास्त्री, पटेल बनाने की फैक्ट्री बंद हो गई, अब तो केजरीवाल जैसे नमूने पैदा हो रहे हैं, जो पहले आरोप लगाते है और फिर माफी मांगते है और इस आरोप और माफी मांगने के अंतराल में अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं। ये नई तरीके की राजनीति है भाई, समझे या नहीं?