अपनी बात

लक्षण सुधारें भाजपा नेता, नहीं तो जनता ऐसा सुधार देगी कि कही के नहीं रहेंगे, झंडा ढोनेवाला तक नहीं मिलेगा

लोकसभा चुनाव सर पर हैं और भाजपा में भूचाल है। कहीं पार्टी कार्यकर्ता आपस में भिड़ रहे हैं तो कही टिकट नहीं मिलने से कोई इतना नाराज हो गया कि वो अपने पार्टी के ही शीर्ष नेताओं को औकात दिखाने पर तुला है, और कोई ऐसा विधायक हैं जो महिला को थप्पड़ तक जड़ देता है, जबकि एक भाजपा विधायक ऐसा है कि उस पर यौन शोषण का आरोप भाजपा की ही जिला मंत्री लगा देती हैं, पर सीएम रघुवर दास का इतना खौफ है कि उस विधायक के खिलाफ प्राथमिकी तक दर्ज नहीं होती, जबकि यही भाजपा के लोग ‘बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ’ का नारा देते नहीं थकते।

एक लोकोक्ति है, ‘सत्ता बहुत कम को पचती है’, ये लोकोक्ति आजकल भाजपा पर खुब फिट बैठ रही है। जरा देखिये न, जैसे ही रविशंकर प्रसाद कल एयर इंडिया की फ्लाइट से पटना एयरपोर्ट पहुंचे, आर के सिन्हा के समर्थकों ने उन्हें काला झंडा दिखाना शुरु कर दिया और इधर जैसे ही रविशंकर प्रसाद के समर्थकों की उन पर नजर पड़ी, उन सब ने आर के सिन्हा समर्थकों को दमभर कूट दिया।

अब आप समझ लीजिये दोनों भाजपा के धुरंधर नेता हैं, और दोनों नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के खासमखास हैं, फिर भी जरा देख लीजिये पटना एयरपोर्ट पर इन दोनों ने क्या करवा दिया? यानी एक अदना सा टिकट के लिए, सत्ता का परम स्वाद प्राप्त करने के लिए इन दोनों की जिह्वा कितनी लालायित हैं? जिसके लिए, इन दोनों ने अपने कार्यकर्ताओं को एक-दूसरे से भिड़ा दिया, और भाजपा के कथित अनुशासन की धज्जियां उड़ा दी।

कल की ही घटना है, सारठ का भाजपा विधायक व राज्य का कृषि मंत्री रणधीर कुमार सिंह एक जिप सदस्य पिंकी के गालों पर थप्पड़ जड़ देता है, और आश्चर्य है कि उक्त मंत्री के खिलाफ न तो भाजपा का कोई नेता आवाज उठा रहा हैं और न ही उसके खिलाफ कोई कार्रवाई की बात हो रही है, ये हैं भाजपा का महिलाओं के प्रति दोहरा चरित्र।

अरे हद तो हो गई, भाजपा के एक दबंग बाघमारा विधायक ढुलू महतो की, जिस पर धनबाद भाजपा की ही जिला मंत्री कमला कुमारी ने यौन शोषण का आरोप लगाया, पर आज तक पुलिस ने उस विधायक के खिलाफ प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की। अब रघुवर सरकार बताये कि क्या देश में कानून बन गया है कि कोई भाजपा नेता के खिलाफ कोई केस ही दर्ज नहीं होगा, चाहे वह यौन शोषण से संबंधित हो या और कोई?

हद हो गई, कल को चाल-चरित्र की दुहाई देनेवाली पार्टी गिरिडीह की अपनी ही विनिंग सीट, अपने गठबंधन से  जुड़े लोगों को थमा देती है, और गठबंधन दल को थमाने के पूर्व अपने उक्त सांसद से पूछती भी नहीं कि आपकी इस पर राय क्या है? ऐसे में वो गिरिडीह का निवर्तमान सांसद क्या करेगा? वहीं करेगा, जो वो कर रहा हैं, अपनी ही पार्टी के खिलाफ आग उगल रहा है।

यही हाल रांची का है, रांची के निवर्तमान सांसद राम टहल चौधरी ने ताल ठोक दी है कि निर्दलीय ही सही, हर हाल में चुनाव लड़ेंगे, और वे जीते या न जीते पर भाजपा को रांची से जीतने नहीं देंगे, इसका मतलब क्या है? खुंटी से करिया मुंडा का भाजपा ने टिकट काट दिया, पुछा तक नहीं, और जो सूत्र बता रहे हैं कि टिकट कटने से वे भी नाराज है, पर आडवाणी-जोशी की परम्परा का पालन करते हुए, कुछ भी कहने से बच रहे हैं, यानी कुल मिलाकर भाजपा के लिए स्थिति ठीक नहीं है।

जनता के सामने भाजपा का चाल-चरित्र अब सामने आ चुका है, ये जो समय हैं, जनता के निर्णय का समय है, अगर जनता का दिमाग घुमा तो भाजपा का क्या होगा? शायद भाजपा के शीर्षस्थ नेता समझ नहीं पा रहे। राजद की प्रदेश अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी को भाजपा में शामिल करना, तथा उसे मनचाही सीटों पर लड़वाने की इच्छा रखना, उस अन्नपूर्णा देवी को जिसे खुद भाजपा की ही नीरा यादव ने कोडरमा विधानसभा सीट से परास्त की है, ऐसे में अन्नपूर्णा को भाजपा में लाकर, अन्नपूर्णा का महिमामंडन करना की इससे भाजपा मजबूत होगी, ये ख्यालीपुलाव नहीं तो और क्या है?

सच्चाई तो यह है कि अगर महागठबंधन ने बहुत ही अच्छे ढंग से प्रत्याशियों का चयन कर दिया, तो भाजपा का पूरे प्रदेश से सुपड़ा साफ है, लेकिन इतना भी तय ही है कि चाहे जो हो, इस बार भाजपा का झारखण्ड में खटिया खड़ा होना तय है, क्योंकि जनता बहुत ही ध्यान से भाजपा के चाल-चरित्र का अवलोकन कर रही हैं और रही भाजपा कार्यकर्ताओं की, तो वे बेचारे खुद को ठगे महसूस कर रहे हैं, कि वे जिसका कल आलोचना करते थे और अगर पार्टी ने उसे ही टिकट थमा दिया।

तब वे किस मुंह से उन लोगों के पास जायेंगे, वोट मांगेंगे, जिनको वे दिन-रात कोसते रहते थे, क्योंकि नेता व कार्यकर्ता में आकाश-जमीन का अंतर होता है, नेता का दिमाग होता है, पर कार्यकर्ताओं के पास दिमाग के साथ-साथ दिल भी होता है, जिसकी कद्र पहले भाजपा के बड़े नेता किया करते थे, पर आज तो भाजपा के नेता सौदेबाजी करने लगे हैं, उन्हें क्या मालूम कि आज भाजपा कार्यकर्ताओं पर क्या गुजर रही हैं?