अपनी बात

अगर किसी राज्य का CM, PM को मक्खन लगाने लगे, तो राज्य का बंटाधार होना तय है

ये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति जो आपकी अंधभक्ति है, वह अंधभक्ति आप अपने पास तक ही रखे तो बेहतर है, पर इस अंधभक्ति में राज्य की गरीब जनता का पैसा, जो आप अखबारों व चैनलों में झोक दे रहे हैं, इससे न तो आप का भला होगा, न प्रधानमंत्री का भला होगा और न ही राज्य का भला होगा।

क्या झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास बता सकते हैं कि भारत के किस राज्य के भाजपाई मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उनके जन्मदिन के अवसर पर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को समर्पित अपने राज्य के सभी अखबारों व दिल्ली के अखबारों में प्रथम पृष्ठ पर विज्ञापन दिये, जैसा कि झारखण्ड में देखने को मिला।

अरे भाई झारखण्ड का पड़ोसी राज्य है, छतीसगढ़ और उत्तरप्रदेश, वहां तो इस प्रकार का विज्ञापन नहीं दिख रहा? राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जहां भाजपा का शासन है, जहां इसी वर्ष विधानसभा के चुनाव होनेवाले हैं, वहां तो इस प्रकार के विज्ञापन नहीं दिख रहे, क्या वहां के मुख्यमंत्री को अपने प्रधानमंत्री से प्यार नहीं हैं, या वे प्रधानमंत्री को पसन्द नहीं करते। अरे भाई उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात (जहां से प्रधानमंत्री आते हैं) वहां के अखबारों व चैनलों में भी इस प्रकार प्रधानमंत्री का गुणगान नहीं देखा जा रहा, तो फिर आप ऐसा क्यों कर रहे?

संस्कृत में एक श्लोक है, अतिभक्ति धूर्तस्य लक्षणम्। जब कोई किसी के प्रति अतिभक्ति दिखाने लगे तो समझ लीजिये, कि वह व्यक्ति, जिसकी अतिभक्ति में वो लगा है, उससे वह काम निकालना चाहता है, जैसे आपने बचपन में व्याघ्र पथिक कथा जरुर पढ़ा होगा, एक बुढ़ा बाघ था, जो नदी के किनारे सोने के कंगन लेकर, कहा करता कि हे पथिक ये सोने का कंगन ले जाओ।

सच्चाई भी यहीं है कि हमारे रघुवर दास में इतनी कूबत नहीं कि वे झारखण्ड की जनता को अपनी ओर आकर्षित कर लें। चार साल इन्हें मौका भी मिला, पर ये सारे मौके अपने कनफूंकवों के कारण गंवाते चले गये। ऐसे भी राज्य की जनता ने 2014 विधानसभा चुनाव में इनको ध्यान में रखकर वोट नहीं दिया था, वह तो नरेन्द्र मोदी को देख रही थी, और नरेन्द्र मोदी ने देखा कि चूंकि अर्जुन मुंडा चुनाव हार ही चुके हैं, ऐसे भी उन दिनों अर्जुन मुंडा चुनाव जीतते भी तो वे मुख्यमंत्री बनते ही, इसका दावा भी कोई कर नही सकता था, सभी नये चेहरे और गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री देखना चाहते थे, संयोग हुआ, मौका मिला, रघुवर दास के हाड़ में हल्दी लग गई, वे मुख्यमंत्री बन गये।

शायद, रघुवर दास अच्छी तरह जानते है कि राज्य की जनता की कृपा रहे या न रहे, दिल्ली वाले इस युग के भाजपा के भगवान नरेन्द्र मोदी की कृपा बनी रहेगी तो फिर अगर बहुमत मिला (हालांकि इसकी संभावना न के बराबर है, इनकी जमानत भी बच जाये, तो गनीमत है), तो फिर उनके हाड़ में हल्दी लगेगी और वे राज्य के मुख्यमंत्री बनेंगे, इसलिए जब भी मौका मिलता है तो वे एक अच्छे शिष्य की तरह, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मक्खन लगाने के लिए एक अच्छा सा बेकार का विज्ञापन रांची से दिल्ली तक ठोक देते हैं, चाहे अन्य राज्य के मुख्यमंत्री ऐसा करें या न करें।

यहीं नहीं पूरे देश में कहीं ‘सेवा दिवस’ का चर्चा नहीं है, पर जनाब ने इनके जन्म दिन को ऐसा ‘सेवा दिवस’ बना दिया, जैसे लगता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, ‘चाचा नेहरु’ हो गये, जैसे पं. जवाहर लाल नेहरु के जन्म दिन को ‘बाल दिवस’ के रुप में मनाया जाता है, वैसे ही इनके जन्म दिन को ‘सेवा दिवस’ घोषित करने में ये लगे हैं, देखिये आज के अखबार में छपे विज्ञापन को, जिसमें उन्होंने ‘सेवा दिवस’ कितने प्यार से लिखवाया है, जबकि पूरा देश जानता है कि सिविल सेवा दिवस/लोक सेवा दिवस पूरे देश में 21 अप्रैल को मनाया जाता है।