रांची के पत्रकारों का जवाब नहीं, दिल तो सिर्फ और सिर्फ इन्हीं के पास हैं और कहीं नहीं…
अभिनन्दन प्रभात कुमार रंजन की सोच का…
अभिनन्दन उन पत्रकारों का, जिनके दिलों में मानवीय मूल्यों के लिए दिल धड़कता हैं…
कोई जरुरत नहीं महलों, क्लबों की जब आपके पास दिल जिंदा हो और वह धड़कता हो…
आज रांची के पत्रकारों ने वह किया है, जो अब तक देखने को नहीं मिला, बहुत ही कम समय में सबने अपने-अपने स्तर से प्रयास किये और 9000 रुपये जमा कर लिये। यहीं नहीं आज गिरिजा शंकर ओझा, ब्रजेश राय और सुरेन्द्र सोरेन तथा कई गण्यमान्य पत्रकारों ने गुरुनानक अस्पताल जाकर बीमारी का इलाज करा रहे प्रभात कुमार रंजन से भेंट कर उसका कुशलक्षेम पुछा और आर्थिक मदद पहुंचाई।
प्रभात कुमार रंजन फिलहाल गुरुनानक अस्पताल के रुम नं. 205 में अपनी बीमारी का इलाज करा रहे है और उनकी स्थिति पहले से अब बेहतर है।
प्रभात कुमार रंजन का कहना है कि उससे एक पत्रकारों का ही यूनियन चला रहे एक शख्स ने चीटिंग की, उसके पैसे हड़प लिये। ये वहीं शख्स है जो कभी कश्मीर के लाल चौक पर झंडा फहराने के नाम पर तिरंगा यात्रा का झूठा प्रचार करता है और लाल चौक पर तिरंगा भी नहीं फहरा पाता, आश्चर्य इस बात की है कि वह शख्स किसी भी ईमानदार पत्रकार के खिलाफ उलटी सीधी बयान जारी कर देता है, और ऐसे घटिया स्तर शख्स की रांची के बड़े-बड़े मंत्री, नेता, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, बड़े-बड़े संपादक उसकी खुलकर मदद करते हैं।
आज रांची के पत्रकारों को जैसे ही पता चला कि प्रभात कुमार रंजन मुसीबत में है, वे उसकी मदद के लिए निकल पड़ें, इस मदद में पत्रकार जयशंकर की भूमिका की सराहना करनी होगी, जिसने देर रात तक आर्थिक मदद जुटाने में अपनी अहम भूमिका अदा की और अहले सुबह तक इस काम को जारी रखा, सच पूछिये तो व्हाटसएप का सही उपयोग पत्रकारों ने आज ही किया। हम दिल से उन सारे पत्रकारों का अभिनन्दन करते हैं, जिन्होंने ये नेक काम में हिस्सा लिया।
और उससे भी ज्यादा बधाई, प्रभात कुमार रंजन को, जिसने आर्थिक मदद करने के लिए और कुशल क्षेम पुछने आये पत्रकारों को ये कहा कि हम शुक्रगुजार हैं, आपलोगों के इस सहयोग और प्यार का, पर जरा सोचिये कितना अच्छा हो कि ऐसी व्यवस्था हो, जिससे ऐसे पत्रकार जो बहुत ही निर्धन हैं, और उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं हैं, उनकी मदद करने की व्यवस्था हो जाये, जरुरत है इस ओर ईमानदार पहल की।
परहित सरिस धर्म नहीं भाई..
पड़ पीड़ा सम नहीं अधमाई।।
ज्ञान बिज्ञान का सार्थक प्रयोग ,सजग समाज का सार्थक सेवा और प्रेम कुर्सी को जीवन जीने की आशा किरण प्रदान करें तो इससे बेहतर क्या हो सकता है जरूरत है,ज्योत जलती रहे।
परहित सरिस धर्म नहीं भाई..
पड़ पीड़ा सम नहीं अधमाई।।
ज्ञान बिज्ञान का सार्थक प्रयोग ,सजग समाज का सार्थक सेवा और प्रेम कुर्सी को जीवन जीने की आशा किरण प्रदान करें तो इससे बेहतर क्या हो सकता है जरूरत है,ज्योत जलती रहे।