अपनी बात

रघुवर के ग्लोबल स्किल की हेमन्त ने उड़ाई धज्जियां, मैसूर में जाकर करिये साढ़े बारह हजार की नौकरी

आज रांची से प्रकाशित होनेवाले सभी अखबारों में मुख्यमंत्री रघुवर दास की जय-जय करता हुआ, एक मुख्य पृष्ठ पर बड़ा-सा विज्ञापन छपा है। विज्ञापन के उपर में लिखा है – झारखण्ड फिर रच रहा है… इतिहास। उपर के कोने में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू दिखाई पड़ रही है तो ठीक इसके दूसरी ओर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का खिलखिलाता हुआ चेहरा दिख रहा है, और इसके ठीक बीच में लाल रंग के वृत्ताकार में लिखा है।

निजी क्षेत्र में झारखण्ड के एक लाख युवाओं को मिलेगा नियुक्ति पत्र। इसके ठीक नीचे मुख्यमंत्री रघुवर दास का दो व्यक्तियों के साथ चित्र तथा ठीक उसके बगल में अंग्रेजी में लिखा है – ग्लोबल स्किल समिट। फिर इसके नीचे जैसा कि आम तौर पर लिखा होता है, वो सब कुछ लिखा है, और इसी बीच में … अब आपकी बारी है। नौकरी आपका इंतजार कर रही है।

अब सवाल है कि इसी प्रकार की नौटंकी एक साल पूर्व में भी हुई थी, खुब वाह-वाही लूटी गई थी, और उसका बाद में क्या परिणाम निकला? जो लोग इसमें रुचि रखते हैं, वे जानते हैं, कई अखबारों ने इसके परिणाम पर, कई दिनों तक समाचार भी निकालें और इसका भी यहीं परिणाम होगा, ये भी उतना ही परम सत्य है। जिसकी आलोचना झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता एवं नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन ने कल ही अपने सोशल साइट में प्रमाण के साथ प्रस्तुत कर दी।

हेमन्त सोरेन का कहना है कि “केंद्र सरकार की दो सबसे बड़ी योजनाएं उठा कर देखें तो केंद्र सरकार  पूरी तरह से ट्रेनिंग देने के बाद भी पिछले साढ़े चार साल में उन्नीस हज़ार युवाओं को ही नौकरी दे पायी है, और ये हमारे हवा-हवाई हवाबाज मूर्ख मंत्री युवाओं को भी मूर्ख समझ उन्हें बरगलाने में लगे हुए है। लगातार सवाल पूछने के बाद भी अभी तक पिछला 27 हज़ार का कोई आंकड़ा तो सरकार दे नहीं पायी है, और एक बार फिर वही जुमला की तैयारी।“

इधर मुख्यमंत्री रघुवर दास के सोशल साइट पर भी आज के ग्लोबल स्किल समिट की धूम मची है। एक दो लोगों को जिन्हें इनमें नियुक्ति पत्र मिले हैं, इनमें से दो तो सीएम के गुणगान में ही ज्यादा समय बिताया है, इसमें उनकी गलती भी नहीं, क्योंकि जो लोग विडियो बनाते हैं, वे ऐसे लोगों को पहले ट्रेंड करते हैं कि आपका ये विडियो सीएम के सोशल साइट पर जायेगा, इसलिए आपको यह बोलना है, और फिर क्या?  ये लोग बोल भी देते हैं, जिसे बड़ी ही खुबसुरती से सीएम के फेसबुक वॉल पर लगा दिया जाता है, ताकि लोग देखे तो कहें कि देखो राज्य का मुख्यमंत्री कितना काम कर रहा है।

जरा देखिये मुख्यमंत्री के सोसल साइट पर रांची के दानिश अली क्या कह रहे है, ये कहते हैं कि उन्हें खुशी है कि उन्हें नियुक्ति पत्र मिला, पर नौकरी कहां मिली, किस जगह मिली तथा कितने की मिली ये नहीं बता पाते, क्योंकि वे जानते है कि जैसे ही ये बतायेंगे कि नौकरी इतने की मिली, तो लोग यहीं कहेंगे कि इतने की नौकरी और वह भी प्राइवेट तो ये सुविधा तो रांची में भी है, इसके लिए बाहर जाने की क्या जरुरत?  सीएम के ही फेसबुक वॉल पर सुषमा लकड़ा बताती है कि उन्हें साढ़े बारह हजार रुपये की नौकरी, मैसूर में मिली है।

अब कोई बता सकता है कि साढ़े बारह हजार की नौकरी में कोई मैसूर में रहकर क्या कर लेगा? क्या वह अपनी जिंदगी ठीक से जी पायेगा, उसके आधे से ज्यादा पैसे तो किराये में चल जायेंगे, तो फिर वह खायेगा क्या, पहनेगा क्या या अपने सपने पूरा भी कर पायेगा क्या? यहीं नौकरी मुख्यमंत्री या उनके मंत्री या उनके अधिकारी अपने बेटे या बेटियों या बहूओं या प्रेमी-प्रेमिकाओं को क्यों नहीं उपलब्ध करा देते?

इतिहास बनाने की बात करते हैं, तो इस इतिहास में खुद क्यों नहीं डूबकी लगा लेते। सीएम के ही फेसबुक पर सिल्ली के वीरेन्द्र नाथ महतो, टाटी सिलवे के डेविड जोननाग और लोहरदगा की तित्र कुमारी भी नजर आ रही हैं, पर जो नौकरी मिलने की खुशी चेहरे पर नजर आनी चाहिए, वह दीख नहीं रहा, जो बता देता है कि आखिर ये बच्चे चाहते क्या है? पर ढिंढोरा तो इतना पीट दिया गया है, या पीटा जा रहा है, कि पूछिये मत।

जानकार बताते है कि दरअसल ग्लोबल स्किल समिट ये सरकार की ओर से जनता और उनके बच्चों के साथ धोखा है, कोई भी मां-बाप किसी भी कीमत पर दस हजार या बारह हजार की नौकरी के लिए इतनी दूर अपने बच्चों को नहीं भेजेगा, क्योंकि इतने पैसे तो वह रांची में रहकर भी कमा लेगा? जब स्किल करने-कराने के बाद भी नौकरी का ये हाल है, तो फिर तो भगवान ही मालिक हैं, उनके बच्चों का। यहीं कारण है कि सरकार दावा तो करती कुछ है, पर जमीन पर उसका परिणाम कुछ और नजर आता है, और जब इस संबंध में कोई बिना किसी खूंटे से बंधा कोई ईमानदार पत्रकार, सरकार और उनके अधिकारियों को घेरता हैं तो ये लोग बगले झांकने लगते हैं।

आज खुब ग्लोबल स्किल समिट के नाम पर केन्द्रीय मंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री तथा इनके आगे-पीछे चलनेवाले एक-दो मंत्री बदन ऐंठ रहे हैं, वे बता रहे है कि राज्य के मुख्यमंत्री ने गजब ढा दिया है, पर सच्चाई तो यह भी है कि यह तमाशा बता दे रहा है कि इन चार सालों में राज्य की रघुवर सरकार ने पलायन को रोकने और रोजगार को बढ़ावा देने के लिए क्या किया? अगर सचमुच ऐसा किया होता तो राज्य की लड़कियां इस ग्लोबल स्किल समिट के दिन साढ़े बारह हजार की सामान्य नौकरी के लिए मैसूर जाने की बात न कहती और न सीएम के सोशल साइट पर यह बात करते हुए नजर ही आती।

झारखण्ड में ऐसे कई प्रमाण है कि, अयोग्य लोगों को राज्य सरकार के मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा सत्तर से अस्सी हजार रुपये तक की नौकरियां उपलब्ध करा दी गई, तो कई को ऐसे-ऐसे काम सौंप दिये गये, जिनके पास उस काम की योग्यता ही नहीं थी, अखबारों में भी एक दो बार ये पढ़ने-सुनने को भी मिला, पर मजाल है की सीएम के कानों पर जूं तक रेंग जाये।

भाई पहली बार तो विकास करनेवाला मुख्यमंत्री झारखण्ड की जमीन पर दिखा है। मुख्यमंत्री रघुवर दास ही बताएं की उनके द्वारा संचालित मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में कार्यरत अब तक के कंटेट राइटरों को प्रति माह कितना वेतन उन्होंने दिलवाया और उनके एकाउंट में कितने पैसे भेजे गये, सब ईमानदारी का पोल ही खुल जायेगा? सच्चाई यह है कि अब जनता इतनी बेवकूफ नहीं है, वह सब जान चुकी है कि हाथी के दांत दिखाने के कुछ और, और खाने के कुछ और हैं, झारखण्ड में तो सीएम के पद पर सीएम रघुवर दास के पदार्पण के बाद तो हाथी उड़ने के भी किस्से मौजूद है।

समझ लीजिये ये ग्लोबल स्किल समिट भी हाथी उड़ाने जैसा है, सच्चाई तो यह है कि इस ग्लोबल स्किल समिट का असली फायदा तो इसमें शामिल होनेवाली उन कंपनियों ने लिया है, जो स्किल के नाम पर सरकार से एमओयू कर, बड़ी राशियां प्राप्त की तथा स्किल के नाम पर यहां के युवकों को बड़े-बड़े सपने दिखाएं, और धरातल जब इन युवाओं को दिखी, तो पता चला कि उनके साथ तो गड़बड़घोटाला हो गया, अगर सही मायने में इसकी जांच हो गई तो इस राज्य मे सिर्फ स्किल डेवलेपमेंट के नाम पर एक बहुत बड़ा घोटाला नजर आयेगा, इसको कोई नजरंदाज भी नहीं कर सकता।