अपनी बात

हेमन्त ने लगाई दिमाग, थर-थर कांपती भाजपा और उसके CM रघुवर ने कोलेबिरा से बनाई दूरी

राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा के छूटे पसीने ने कोलेबिरा विधानसभा उप चुनाव में भी भाजपाइयों और उनके मुख्यमंत्री की हालत पस्त कर दी है। ये कोलेबिरा के नाम से ही थर-थर कांप रहे हैं। इनके शरीर में थर-थरी ऐसी समा गई है कि, ये कोलेबिरा और उपचुनाव का नाम तक सुनना नहीं चाहते, भाजपाइयों ने हालांकि कोलेबिरा में अपना कैंडिडेट तो उतार दिया है, पर उसे जीताने का प्रयास करना छोड़ दिया है।

जबकि आपको याद होगा कि हाल ही में सिल्ली और गोमिया में विधानसभा के उपचुनाव हुए थे, तब गोमिया में अपने कैंडिडेट माधव लाल सिंह को जीताने के लिए सीएम रघुवर ने एड़ी-चोटी एक कर दी थी, भाजपाइयों के बड़े से छोटे नेता तक गोमिया जाकर हाजिरी बनाते थे, तथा भाजपा के संगठन मंत्री को अपना चेहरा दिखाकर ही गोमिया से लौटने का प्रयास करते थे, मंत्री तो मंत्री पूरा महकमा भाजपा के कैडिंडेट माधव लाल सिंह को जीताने में लगा था, पर हुआ वहीं, जो जनता ने चाहा, गोमिया से झामुमो प्रत्याशी ने शानदार सफलता प्राप्त की।

पर कोलेबिरा में स्थिति ठीक इसके उलट है, वहां अभी तक कोई भाजपा का बड़ा नेता या मंत्री नहीं पहुंचा है, यहीं नहीं मुख्यमंत्री रघुवर दास ने तो संकल्प ही कर लिया कि वे कोलेबिरा नहीं जायेंगे, क्योंकि वे जानते है कि कोलेबिरा में भाजपा की जमानत बचनी मुश्किल है, ऐसे में वहां जाकर, बेचारा अपनी मिट्टी पलीद क्यों करें? भाजपा कैंडिंडेट भगवान भरोसे कोलेबिरा में खड़ा है, पर जो मेहनत भाजपा को जीताने के लिए भाजपाइयों को करनी चाहिए, वे अपनी सारी मेहनत किसी भी प्रकार से कांग्रेस नहीं जीते, इसके लिए ज्यादा दिमाग लगा रहे है।

यहीं कारण है कि कांग्रेस को घेरने के लिए साम-दाम-दंड भेद की नीति अपनाई जा रही है, कांग्रेस के बड़े नेता को जेल की हवा खिलाई जा रही है, और जो पार्टी कांग्रेस को समर्थन दे रही है, उसके नेताओं को भी जेल की हवा खिलाने का प्रयास किया जा रहा है, कांग्रेस के नियेल तिर्की और झाविमो के बंधु तिर्की की गिरफ्तारी उसके प्रत्यक्ष प्रमाण है।

इधर रघुवर सरकार की इस दमनकारी नीतियों के बावजूद कोलेबिरा में कांग्रेस के बड़े नेता से लेकर छोटे नेता यानी प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार, वरिष्ठ नेता सुबोध कांत सहाय, थियोडोर किरो से लेकर कई नेता अपने प्रत्याशी विक्सल अमन कोंगारी को जीताने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं, क्योंकि तीन राज्यों में पार्टी को मिली सफलता, इनके लिए संजीवनी का काम कर रही है, उन्हें लगता है कि इसका असर कोलेबिरा में दिखेगा, झाविमो ने भी कांग्रेस के इस कैडिंडेट को अपना समर्थन दे दिया है, जिससे कांग्रेस का मनोबल बढ़ा है।

दूसरी ओर झारखण्ड पार्टी ने सजायाफ्ता एनोस एक्का की पत्नी मेनन एक्का को कैंडिडेट बनाया है, जिसका समर्थन झारखण्ड मुक्ति मोर्चा और राष्ट्रीय जनता दल ने किया है। कोलेबिरा की जो स्थिति है, उसे देखकर साफ लगता है कि यहां लड़ाई कांग्रेस और झारखण्ड पार्टी में ही है, बाकी सारे खड़े प्रत्याशी वोटकटुआ की भूमिका में है। कोलेबिरा का चुनाव हालांकि कुछ लोग कहते है कि यूपीए में टूट का कारण बनेगा, पर ऐसा यहां दीखता नहीं, क्योंकि यूपीए के लोग कोई भी कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं।

कोलेबिरा दरअसल ओड़िशा और छत्तीसगढ़ से सटा इलाका है, इसलिए यहां छत्तीसगढ़ या ओड़िशा का प्रभाव पड़ता रहता है, यहां के कई इलाकों में न तो सही सड़क हैं और न ही बिजली, आज के इस स्मार्टफोन के युग में, मोबाइल का नेटवर्क भी नहीं पकड़ता, रात हो जाने पर, पुलिस तो दूर किसी नेता की भी इन इलाकों में जाने पर फंटती है, सारा इलाका नक्सलियों के चंगुल में चला जाता है, एकछत्र राज्य नक्सलियों की रहती है, फिलहाल इन सारे जगहों पर पीएलएफआई का कब्जा है, पीएलएफआई की कृपा से ही एनोस एक्का कई बार चुनाव यहां से जीते है, इस बार भी मेनन एक्का पर पीएलएफआई ने अपनी कृपा बना दी है, ऐसे में मेनन एक्का को अब हरा पाना, खासकर कोलेबिरा से मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन है।

कोलेबिरा विधानसभा का इलाका, रघुवर सरकार के विकास की पोल खोलने के लिए काफी है, आज भी वहां के लोग विकास से कोसो दूर है, पर इनके दम पर जीतने वाले नेता चाहे एनोस एक्का हो या और कोई, सभी अच्छी आमद कर, अपनी पूरी जिंदगी, शानो-शौकत से गुजारने के लिए सुरक्षित कर ली है, एनोस एक्का हालांकि जेल में बंद है, क्योंकि पारा शिक्षक की हत्या के मामले में एनोस एक्का को न्यायालय ने दोषी मानते हुए सजा सुना दी है, पर एनोस के जेल में रहने का भय कोलेबिरा में कम से कम नहीं दीखता, क्योंकि अब ये नया युग आया है, आजकल जेल में रहना भी शानो-शौकत की जिंदगी में ही देखा जाता है।

भाजपा ने यहां वसंत सोरेंग को खड़ा कर दिया है, पर वसंत सोरेंग के बारे में लोग बताते है कि ये सिर्फ और सिर्फ डमी कैंडिडेट है, और ये मेनन एक्का को जीताने के लिए ही इसे खड़ा किया गया है, सच्चाई क्या है?  भगवान जाने, पर सीएम रघुवर की इस चुनाव से दूरी तथा भाजपा के कई नेताओं यहां तक की नीलकंठ सिंह मुंडा जैसे नेताओं की इस चुनाव से दूरी बहुत कुछ बता देती है, कि भाजपा के लोग कैसे कोलेबिरा के नाम पर थर-थर कांप रहे हैं।

रही बात आजसू की, तो उसका कोई यहां जनाधार ही नहीं है, वो तो जैसी भाजपा कहेगी, उसी अनुरुप चलेगी के अनुसार कार्य करती है, ये अलग बात है कि समय-समय पर विभिन्न प्रकार की यात्राओं को आयोजित कर, अखबारों व चैनलों पर अच्छी राशि खर्च कर, जनता को बरगलाने में खुब दिमाग लगाती है, पर जनता शायद उसके क्रियाकलापों को अच्छी तरह जानती है। इधर कोलेबिरा विधानसभा उपचुनाव में मेनन एक्का को झामुमो द्वारा मिले समर्थन से जहां झारखण्ड पार्टी गदगद है, वहीं नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन ने एक बार सिद्ध कर दिया कि वे झारखण्ड की राजनीति में हर किसी को पटखनी देने का आमदा रखते हैं।