HC के चर्चित अधिवक्ता अभय मिश्रा की रांची के अखबारों/चैनलों व राज्य सरकार को सलाह देनेवालों पर गंभीर टिप्पणी, दी पढ़ने की सलाह…

झारखण्ड उच्च न्यायालय के वरीय अधिवक्ता है – अभय कुमार मिश्रा। उन्होंने आज अपना दर्द विद्रोही24 से शेयर किया है। उन्होंने जो बाते लिखी हैं, उनकी बातों पर किसी की हिम्मत नहीं कि अंगूली उठा दें। जैसा राज्य में चल रहा हैं, उसकी हकीकत उन्होंने बयां कर दी हैं। कैसे ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) को लेकर राज्य से प्रकाशित अखबारें बेसिर-पैर की खबरें छाप रही हैं।

कैसे राज्य सरकार ईडी से जुड़ी मामलों को उच्चतम न्यायालय ले गई और वहां क्या हो रहा हैं या क्या होगा? इस पर उन्होंने गजब का कटाक्ष किया हैं। अभय कुमार मिश्रा वरीय अधिवक्ता के इस दर्द को सभी को पढ़ना व सुनना चाहिए। हालांकि उन्होंने स्टार्टिंग ही ‘वैसे आप लोग पढ़ेंगे नहीं’ से किया हैं और पहला कटाक्ष राज्य के अखबारों को समर्पित किया है।

लेकिन राज्य से प्रकाशित अखबारों के संपादकों व प्रबंधकों को शर्म आयेगी, इसकी कोई गारंटी नही हैं। अभय कुमार मिश्रा ने राज्य सरकार को सलाह देनेवालों को भी चेताया है, वो भी यह कहकर कि झारखंड सरकार ने मुकदमा किया, एक मुकदमे में ED को वादी बनाया जाना गलत है। वो CBI जांच के लिए दायर मुकदमा है। अभी तो उच्च न्यायालय ने भी CBI जांच का आदेश नहीं दिया था।

इसमें ED को पार्टी बनाए जाने वाले आदेश पर रोक लगाई गई है। मेरे समझ से यह भी सरकार की कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं है। CBI जांच तो चल नहीं रही थी अभी तो सुनवाई होनी थी। उक्त आदेश के रोक से किसको क्या होगा, पता नहीं। अब आप स्वयं इसे पढ़िये, जिसे अभय कुमार मिश्रा ने विद्रोही24 से शेयर किया…

“वैसे आप लोग पढ़ेंगे नहीं। झारखंड सरकार का कहना है सरकार ने कोई गड़बड़ी नहीं की है। सरकार के मुखिया का कहना है, गर हमने गलती की है, तो जांच के लिए तैयार हैं। दूसरा कुछ अखबार वाले हैं झूठ का भ्रामक समाचार आदेश आने के पूर्व ही छाप देते हैं। कुछ भ्रामक समाचार पत्रों में प्रकाशित शीर्षक को देखिये…

  1. ED की जांच पर रोक।

  2. ED को जांच करने की शक्ति नहीं।

  3. ED नही कर सकती कोई कार्यवाही।

मतलब साफ है अपने नेता को खुश करने के लिए छाप दो गलत। दूसरा मुजरिम को बचाने के लिए खुद सरकार जाती है उच्चतम न्यायालय। भाई राज्य सरकार को क्या पड़ी है किसी मुजरिम को बचाने के लिए, आखिर इतना चिंतन किसके लिए और क्यों? दो मुकदमा दायर किया सरकार ने उच्चतम न्यायालय में। एक ED जांच पर रोक हो, हमारे अधिकारियों को ED जांच में न बुलाए।

उसको तो उच्चतम न्यायालय ने सीधे खारिज कर दिया। हां उच्च न्यायालय जाने का छूट दे दिया, भाई जब उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया तो उच्च न्यायालय में क्या होगा? दूसरा झारखंड सरकार ने मुकदमा किया, एक मुकदमे में ED को वादी बनाया जाना गलत है। वो CBI जांच के लिए दायर मुकदमा है। अभी तो उच्च न्यायालय ने भी CBI जांच का आदेश नहीं दिया था।

इसमें ED को पार्टी बनाए जाने वाले आदेश पर रोक लगाई गई है। मेरे समझ से यह भी सरकार की कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं है। CBI जांच तो चल नहीं रही थी अभी तो सुनवाई होनी थी। उक्त आदेश के रोक से किसको क्या होगा, पता नहीं। उल्टा सारा का सारा मामला उच्चतम न्यायालय में चला गया, जो कि सरकार के लिए अच्छा नहीं। उच्चतम न्यायालय का क्या भरोसा क्या करें अगले आदेश में। अब मेरे वादी को भी उच्चतम न्यायालय ने नोटिस जारी किया है।

CBI को भी, ED को भी सब लोग। अब नेताजी सुभाष का नारा चलो दिल्ली। हम दिल्ली जाएंगे। सरकार पहले गई, हम गरीब लोग ट्रेन से जायेंगे। सरकार तो सरकार है हवाई जहाज से, बड़े-बड़े वकील हवाई जहाज से। अब मुझे जाना होगा, मेरा मुवकिल तो सरकार के मुकाबले निर्धन है। कुल मिलाकर जहां तक मेरी समझ है। सरकार दो धारी तलवार पर आ गई।

इस मुकदमे को उच्चतम न्यायालय ले जाकर। एक तो ED का जांच रूका नहीं, उल्टा ED और मजबूत हो गया, याचिका खारिज होने से। CBI जांच का आदेश तो अभी था नहीं, न तो उच्च न्यायालय दिया था ना उच्चतम न्यायालय। उल्टा सारा मामला दिल्ली अब सब बात दिल्ली के अखबार से छपेगा। पहले मात्र राज्य में छपता था। बाकी तो, राम जाने क्या होगा। वैसे भारत में लोकतंत्र हैं। भारत में बड़े लोग के लिए अलग कानून हैं। गरीब के लिए अलग कानून।

अमीरों के लिए Express व्यवस्था है। गरीबों के लिए झारसुगुड़ा पेसैजर रेलगाड़ी। कुछ भी कहो लोकतंत्र है, नेताओं को कुछ भी नहीं होना है। वैसे भी खरबों कमा कर कुछ वर्ष जेल में ही तो रहना है। वो भी गर 20 से 30 वर्ष के उपरांत सज़ा हो गया तो।”