मानना पड़ेगा इतने झंझावातों के बीच भी कोई खड़ा मुस्कुरा रहा है, मुकाबला कर रहा है, तो वो हेमन्त है, हेमन्त है, हेमन्त है…

इतने झंझावातों के बीच भी जो निर्भय होकर प्रसन्नता के साथ अपने शत्रुओं का मुकाबला करें, उसे और कोई नहीं सिर्फ और सिर्फ ‘हेमन्त सोरेन’ कहते हैं। इसमें कोई दो मत नहीं कि अगर हेमन्त सोरेन की जगह कोई दुसरा होता, तो कब का अपने शत्रुओं के सामने आत्मसमर्पण कर दिया होता, पर हेमन्त तो हेमन्त ही हैं जनाब। ये किसलिए, किससे और क्यों डरे? सच्चाई तो यह है कि इनके शत्रु भी हेमन्त सोरेन के इस आत्मविश्वास के कायल हो गये हैं, हालांकि वे खुलकर नहीं बोलते, पर स्वीकारते तो जरुर हैं कि हेमन्त सोरेन ने खासकर झारखण्ड की राजनीति में उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा।

राजनीतिक पंडितों की मानें, तो हेमन्त सोरेन ने अपने इस दूसरे कार्यकाल में अपनी राजनीतिक शक्ति को और मजबूत किया है। हेमन्त सोरेन द्वारा लिये गये कुछ फैसलों ने झारखण्ड में इस प्रकार से उनकी स्थिति मजबूत कर दी हैं कि चाहकर भी विपक्ष उन्हें जितनी आसानी से राजनीतिक पटखनी देने की सोच रहे हैं, उतना आसां नहीं दिखता, आनेवाले समय में चाहे ऊंट कोई भी करवट लें, दोनों परिस्थितियों में हेमन्त मजबूत ही दिख रहे हैं।

जरा सोचिये। एक तरफ प्रवर्तन निदेशालय, दूसरी तरफ राजभवन, तीसरी तरफ चुनाव आयोग, चौथी तरफ राज्य की विपक्षी पार्टी भाजपा, पांचवीं तरफ पूरी केन्द्र सरकार, छठी न्यायालय द्वारा मिल रही गहरी चोट, उसके बाद भी विचलित न होकर, अपनी दूरदृष्टि राजनीतिक इच्छाशक्ति को झारखण्ड की मिट्टी में मजबूती से स्थापित कर, बड़े ही तार्किक ढंग से राज्य की जनता को समय देने की कोशिश कोई सामान्य बात है क्या?

अगर हम भारतीय जनता पार्टी के ही कुछ प्रदेश नेताओं की बात करें, जो रह-रहकर हेमन्त सोरेन को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं, क्या उन्होंने अपने गिरेबां में झांककर देखा है कि उन्होंने क्या किया है? राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि झारखण्ड निर्माण से लेकर अब तक की झारखण्ड में हुए विभिन्न योजनाओं की सही-सही जांच करा ली जायें तो कई भाजपा के शीर्षस्थ प्रदेश के नेता भी जेल की शोभा बढ़ा रहे होंगे, पर सच्चाई यह है कि ऐसा करेगा कौन?

भाजपा के ही राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास जो हाथी उड़ाने के लिए जाने जाते थे, जिनके बारे में सरयू राय रह-रहकर पोल खोलते रहते हैं। सरयू राय के कथनानुसार चाहे विशाल चौधरी हो या प्रेम प्रकाश सभी रघुवर के शासनकाल में ही परमानन्द को प्राप्त किये हैं, पर यहां तो रघुवर पर प्रवर्तन निदेशालय और केन्द्र सरकार का ध्यान ही नहीं जाता, यहां तो सिर्फ और सिर्फ हेमन्त सोरेन ही दिखते हैं।

जरा कुछ दिन पहले ही लिखा निर्दलीय विधायक सरयू राय का ट्विट देखिये – “एक और घोटालेबाज प्रवर्तन निदेशालय के चंगुल में आया जो रघुवर सरकार के स्कील घोटाला और शराब घोटाला में प्रेम प्रकाश का साथी था। सरकार बदलते ही यह हेमन्त सोरेन को पथभ्रष्ट करनेवाले दलाल कुनबा का शातिर किरदार बन गया। इसकी गिरफ्तारी की आंच पूर्ववर्ती और वर्तमान सीएमओ तक जाएगी।”

अब सरयू राय का आज का ट्विट देखिये – “प्रवर्तन निदेशालय ने श्रीमती पूजा सिंघल की 82.77 करोड़ की भ्रष्टाचार जनित समाप्तियां आज जप्त कर लिया। इसमें पल्स अस्पताल, पल्स डायग्नॉस्टिक सेंटर आदि शामिल है। ईडी के अनुसार ये संपत्तियां मुख्यतः मनरेगा घोटाला से अर्जित की गई है। ईडी चार्जशीट के अनुसार यह अवैध धन 2013 से 2019 के बीच का है।”

सरयू राय का यह ट्विट बताने के लिए काफी है कि 2013-19 के बीच कौन-कौन लोग राज्य के मुख्यमंत्री पद पर विद्यमान थे। फिर भी रघुवर दास पर ईडी और केन्द्र सरकार का प्यार लूटाते रहना, क्या कहता है, क्या झारखण्ड की जनता इतनी मूर्ख है? जितना भाजपा के केन्द्रीय व राज्यस्तरीय नेता समझते हैं। पहले भाजपाइयों को अपना दीदा तो जरुर देख लेना चाहिए।

अब जरा राजभवन की भूमिका को भी देख लीजिये। क्या एक राज्यपाल पद पर बैठे, संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति की यह भाषा हो सकती है कि राज्य में एटम बम कभी भी फूट सकता है, अगर ऐसी भाषा सही हैं तो भगवान ही मालिक है संवैधानिक पद और उस पर बैठनेवाले व्यक्ति का। झारखण्ड के प्रथम विधानसभाध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी से मेरी कुछ दिन पहले, बातचीत हुई थी, जब हमने उनसे सर्वश्रेष्ठ विधायक चुने गये विनोद सिंह के बारे में उनका पक्ष जानने की कोशिश की थी, बातचीत के दौरान राजभवन पर भी बातचीत चली, तब उन्होंने कहा था कि उन्हें भी यह सुनकर आश्चर्य लगा था, उस वक्त उन्होंने भी इस वक्तव्य की तीखी आलोचना की थी, कहा था कि ये संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की भाषा नहीं हो सकती।

जब चुनाव आयोग ने अपना मंतव्य दे दिया, संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति यह स्वीकार कर रहा है कि चुनाव आयोग का मंतव्य आ चुका है, तो उस मंतव्य के अनुसार, संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को अपना निर्णय लेने में क्या दिक्कत हो रही हैं? क्या उनके इस निर्णय पर रोक के लिए राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने अनुरोध किया है। अरे, झारखण्ड का मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने बार-बार कहा कि आप निर्णय लें, ताकि उस निर्णय के बाद, हम (हेमन्त सोरेन) अपने कार्यों को गति दें, पर यहां हो क्या रहा हैं?

राज्यपाल का दूसरा वक्तव्य आता है कि वे फिर से चुनाव आयोग का दुबारा मंतव्य मांगे हैं, आखिर आप कितनी बार मंतव्य मांगेंगे, क्या चुनाव आयोग का मंतव्य दूसरी बार मांगने पर बदल जायेगा? राजभवन की इस प्रकार की कार्यप्रणाली, कुछ भाजपाइयों की गंदी राजनीति और केन्द्र की कुछ हरकतें ये बताने के लिए काफी है कि भ्रष्टाचार के मूल सवाल पर दोरंगी नीतियां चलाई जा रही हैं, जिसमें एक भ्रष्टाचारी को तो बचाने की भरपूर कोशिश की जा रही हैं और जो दूसरा सत्ता में हैं उसे सत्ता से हटाने के लिए साम-दाम-दंड-भेद आदि का जमकर प्रयोग किया जा रहा हैं।

हो सकता है कि राजभवन, भाजपा नेता और केन्द्र तथा केन्द्र के इशारों पर काम कर रही एजेंसियां अपने मकसद में कामयाब भी हो जाये, पर सभी को याद रखना चाहिए कि वक्त एक जैसा कभी किसी का नहीं रहता, राजनीति में हमेशा हर कोई सिकन्दर नहीं होता, लोकतंत्र में मालिक जनता होती हैं और झारखण्ड की जनता को ये आभास हो चला है कि हेमन्त सोरेन को हटाने के लिए ही ये सारे षडयंत्र चल रहे हैं, अगर यह बात जनता के मन में और गहरी होती चली गई, जैसा कि संभावना दिख रहा हैं, तो भाजपा के लिए लोकसभा की 14 सीटों को यहां से निकाल पाना असंभव हो जायेगा, इसी के साथ ही विधानसभा की सभी 82 सीटों पर उसके उम्मीदवार सफल हो जायेंगे, यहां बहुमत प्राप्त कर लेंगे, ऐसा सोचना भी भाजपा के लिए दिल्ली दूर की कौड़ी हो जायेगी।