अपनी बात

अपना के हइये ना, जगतर्र के दानी, यानी गोड्डा से बांगलादेश को बिजली देने की तैयारी

आपने वो लोकोक्ति जरुर सुनी होगी, अपना के हइये ना, जगतर्र के दानी, यानी खुद खाने को नहीं और दूसरे को खिलाने का दंभ भरते हैं। पूरे राज्य में बिजली का अभूतपूर्व संकट है, धनबाद, बोकारो, गोड्डा, रांची, डालटनगंज, गढ़वा, झारखण्ड के कितने शहर का हम नाम गिनाएं, जहां के लोग बिजली के लिए तरस रहे हैं, स्थिति तो ऐसी है कि एक बार बिजली गई तो कब आयेगी, कहना मुश्किल हैं।

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को बताया कि उन्होंने देश के कोने-कोने में, हर गांव में बिजली पहुंचा दी, जबकि सच्चाई यह है कि झारखण्ड के ही कई ऐसे गांव हैं, जहां बिजली तो दूर अभी बिजली के खम्भे तक नहीं पहुंचे हैं, जिसका जिक्र जब पीएम का बयान आया, उसी वक्त रांची ही नहीं दिल्ली के कई चैनलों ने भी इस समाचार को प्रमुखता से झारखण्ड का हाल दिखा दिया।

स्वयं राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने दिल्ली जाकर ऊर्जा मंत्रालय संभाल रहे मंत्री आर के सिंह को इत्तिला किया था कि झारखण्ड के बारे में आप सर्वप्रथम जनप्रतिनिधियों से पूछ ले, वे ही सही-सही जवाब देंगे कि बिजली कहां तक पहुंची हैं, और स्वयं सरयू राय के इस कथन के बाद आर के सिंह भी भौचक रह गये कि आखिर उन्हें झारखण्ड के अधिकारियों और रघुवर सरकार द्वारा गलत जानकारी कैसे और क्यों दे दी गई?

फिलहाल गोड्डा में अडानी की ओर से एक पावर प्लांट लगाया जा रहा है, जिसके लिए वहां के जमीन मालिकों-ग्रामीणों से जमीन ली जा रही हैं, कई लोगों ने जमीन दे दी हैं तो कई ने जमीन नहीं देने का फैसला किया हैं, पर जिन्होंने जमीन नहीं देने का फैसला किया, उनके लिए खतरे कम नहीं है, उनके साथ व्यवहार ठीक नहीं हो रहा, जिसका कई चैनलों ने विस्तार से दिखाया भी कि वहां के ग्रामीणों के साथ कैसा दुर्व्यवहार हो रहा है, एक ग्रामीण ने तो साफ कह दिया कि उन्हें कहा जा रहा है कि अगर जमीन नहीं दिया तो इसी जमीन में गार देंगे।

अब सवाल उठता है कि जिस बांगलादेश को विद्युत आपूर्ति के लिए गोड्डा में पावर प्लांट लगाया जा रहा हैं, जिसके लिए राज्य सरकार नियमों में भी भारी फेर-बदल कर दे रही हैं, उससे गोड्डा या झारखण्ड की जनता को क्या फायदा? और जब इससे गोड्डा या झारखण्ड की जनता को कोई फायदा ही नहीं तो सिर्फ बांगलादेश के लिए बिजली उत्पादन का क्या मतलब?

केन्द्र सरकार बांगलादेश को फायदा पहुंचाने के लिए झारखण्ड के किसानों-ग्रामीणों पर, राज्य सरकार की सहायता से अडानी ग्रुप को फायदा क्यों पहुंचा रही है? हालांकि इस मुद्दे को लेकर कई बार आंदोलन हुए, पर ग्रामीणों को लगता है कि रघुवर सरकार के रहते, उन्हें कुछ फायदा नहीं मिलनेवाला, इसलिए वे 2019 की बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, ताकि वे अपने वोट के माध्यम से केन्द्र व राज्य सरकार को चोट करके, स्वयं की तकदीर खुद लिख सकें और अपनी खेती की जमीन बचा सकें, क्योंकि अब ग्रामीण जान चुके हैं, कि इस सरकार से उनका कोई भला नहीं होनेवाला, यानी इनके रहते जमीन भी जायेगी, बिजली भी नहीं मिलेगी, विस्थापन और पलायन होगा वो अलग।