संपादकों, भारतीय बारिश के नक्षत्रों को जानने की कोशिश करो, सारी गलतफहमियां दूर हो जायेंगी

अखबारों- चैनलों में काम करनेवाले मठाधीशों यानी संपादकों-प्रबंधकों-पत्रकारों को विज्ञान के साथ-साथ भारतीय नक्षत्रों को भी समझने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि वे बारिश के बारे में भ्रांतियां नहीं फैला पायें। जी हां, यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि इन दिनों अखबारों में पढ़ने को मिल रहा है कि अभी और दस दिन रहेगा मानसून।

रांची से प्रकाशित प्रभात खबर लिख रहा है कि अमूमन हर साल सितम्बर मध्य तक मॉनसून लौट चुका होता है। इस बार सितम्बर अंतिम पड़ाव पर है, फिर भी बारिश जारी है। पिछले 60 सालों में यह पहला मौका है, जब मानूसन लौटने में सबसे ज्यादा देर कर रहा है। भारी बारिश से जान-माल का काफी नुकसान हुआ है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अभी मॉनसून के दस दिन तक लौटने के आसार नहीं है।

जबकि जो गांवों में रहते हैं या जिन्हें विज्ञान की हवा लगने के बावजूद भारतीय नक्षत्रों पर भरोसा हैं, वे जानते हैं कि भारतीय बारिशों के नक्षत्र अपनी स्वभावानुसार अपना कमाल दिखा ही देते हैं, फिलहाल बारिश के नक्षत्रों में हस्त यानी हथिया नक्षत्र चल रहा हैं, जो बता रहा है कि इस हथिया नक्षत्र में भारी बारिश के योग है, और हथिया तहलका मचा भी रहा हैं।

यह हथिया नक्षत्र 24 सितम्बर को दिन के 9 बजकर 23 मिनट पर चढ़ा है, जो 11 अक्टूबर को 9.52  मिनट रात तक रहेगा और फिर उसके बाद चित्रा नक्षत्र चढ़ जायेगा, इस बार तो चित्रा नक्षत्र में भी बारिश के संकेत मिल रहे हैं। आज भी जो बुढ़-पुरनिया है, वे यह कहना नहीं भूलते कि उत्तरा यानी कनवा से कान में, हथिया से हाथ में और चित्रा से चित्त में ठंड लगना शुरु हो जाता है।

और अगर ऐसा नहीं हो रहा तो इसका मतलब यह नहीं कि भारतीय नक्षत्र गलत हो गये, बल्कि आपने अपने कुकर्मों से पर्यावरण को इतना प्रभावित कर दिया कि ये नक्षत्र भी कुछ हद तक बेमानी हो गये, लेकिन इसके लिए भारतीय नक्षत्रों को बदनाम कर देना और यह कहना कि सितम्बर के मध्य तक ही मानसून समाप्त हो जाता है, पूर्णतः गलत और अव्यवहारिक है।

हमें लगता है कि पूर्णतः पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति को अपना लेने से बहुत लोगों को यह पता नहीं कि बारिश के कितने नक्षत्र हैं और वे किस साल क्या फल देंगे और न ही इसके लिए शोध केन्द्र ही स्थापित किये गये हैं, जो हैं भी तो वे प्राचीन काल से चले आ रहे हैं, जो उतने व्यवहारिक भी नहीं।

अगर इस पर आगे शोध नहीं हुआ, तो लोग भारतीय महीनों को जैसे भूल गये हैं, आनेवाले समय में वे खुद को भूल जायेंगे, जिन फिल्मी गानों में सावन-भादो छाया रहता था, वहां जुलाई-अगस्त घर बना लेंगे, और लोग उसी जुलाई-अगस्त में खुद को खो देंगे, ठीक उसी प्रकार जैसे हथिया नक्षत्र की शुरुआत है और लोग कह रहे हैं कि सितम्बर के मध्य तक मानसून लौट जाता है, जबकि भारत के लिए ये हजम होनेवाली बात नहीं।