पहले जूते खाओ, फिर स्वास्थ्य बीमा का लाभ लो, और व्यवस्था करायेगी तुम्हारी ही पत्रकार बिरादरी

8 दिसम्बर, दिन शनिवार। मुख्यमंत्री के कथित प्रधान सचिव सुनील कुमार बर्णवाल एक बैठक ले रहे हैं। बैठक में उपस्थित है दैनिक भास्कर के स्टेट एडिटर सतीश सिंह, हिन्दुस्तान के प्रधान संपादक के प्रतिनिधि के रुप में आये राजनीतिक संपादक चंदन मिश्र, न्यूज 18 के ब्यूरो प्रमुख राजेश तोमर, जी मीडिया के रेजिंडेट एडिटर मनीष मेहता, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के एकमात्र होनहार पदाधिकारी अजय नाथ झा एवं स्वास्थ्य विभाग और वित्त विभाग के अधिकारी।

बैठक में ये महान पत्रकारों का दल झारखण्ड के पत्रकारों की चिन्ता कर रहा है, चिन्ता कर रहे हैं, राज्य के होनहार मुख्यमंत्री रघुवर दास के होनहार कथित प्रधान सचिव सुनील कुमार बर्णवाल भी, अब झारखण्ड के पत्रकारों को मान लेना चाहिए कि अब उनकी समस्याएं रहेगी ही नहीं, क्योंकि जब इतने बड़े-बड़े लोग, जब छोटे-छोटे जीवों की उदारता से चिन्ता करेंगे तो समस्याएं रहेगी कैसे? सचमुच इनका हृदय कितना उदार और विशाल है।

लेकिन हमें समझ नहीं आ रहा है कि इतने महान लोग, इतने महान पत्रकार, इतने महान अधिकारी उस दिन कहां थे, जब 15 नवम्बर को इन्हीं के भाइयों पर पुलिसिया प्रहार चल रहा था, कहां थे/हैं ये लोग जो आज भी उन पत्रकारों के घर देखने तक नहीं गये, जो इन पुलिसिया प्रहार के कारण अपने घरों में कैद हैं और खून के आंसू रो रहे हैं, क्या बता सकते है कि स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ दिलाने का दंभ भरनेवाले ये लोग, 8 दिसम्बर की बैठक में ये मुद्दे उठाएं कि आखिर जिन पत्रकारों पर लाठियां चली, जो उन लाठियों से अभी भी घायल हैं, उन्हें न्याय दिलाने के लिए मुख्यमंत्री के कथित प्रधान सचिव ने कौन से कदम उठाएं या क्या न्याय दिलवाई और जब वे इन महत्वपूर्ण मुददों को उठाने में खुद को असमर्थ समझते हैं तो ये स्वास्थ्य बीमा की भीख किस पत्रकार को दिलवाना चाहते हैं और कौन ऐसा बेगैरत पत्रकार होगा, जो इस लाभ को लेने के लिए आगे आयेगा।

जरा देखिये मुख्यमंत्री के कथित प्रधान सचिव की ड्रामेबाजी, वे मीटिंग में कहते है कि अत्यंत दुखद परिस्थितियों में भी मीडिया रिपोर्टिंग का कार्य करना तथा राज्य हित में जनहित में खबरों का प्रसारण करना मीडिया की चुनौती रही है, इनके स्वास्थ्य बीमा से इन्हें भी इलाज के लिए सुविधा मिलेगी, अरे भाई सुविधा देना बाद में, पहले ये बताओ कि आपने 15 नवम्बर को जो पत्रकारों-छायाकारों की पिटाई कराई, उसका क्या हुआ? कौन से न्याय दिलवाएं?

आश्चर्य है कि इस मीटिंग में वहीं चैनल और अखबार के लोग शामिल थे, जो रघुवर स्तुति में माहिर हैं, जो रघुवर दास की कृपा से, उनकी कृपा से मिलनेवाले विज्ञापन से, अपने चैनल/अखबार व खुद का संपोषण करते हैं, नहीं तो कथित प्रधान सचिव सुनील कुमार बर्णवाल बताएं कि इतनी महत्वपूर्ण मीटिंग में रांची प्रेस क्लब के अधिकारी क्यों नहीं थे? क्या रांची प्रेस क्लब के अधिकारी, इस मीटिंग के योग्य नहीं थे? भाई पत्रकारों की एक महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक संस्था जो रांची प्रेस क्लब के नाम से रन कर रही है, जिसके अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारियों की टीम है, उसे नहीं आमंत्रित करना, क्या बताता है कि ये दो-तीन लोग, जो उनकी आरती उतारते हैं, वह भी ले-दे संस्कृति के अनुसार, मीटिंग का रुप देकर, अपनी वाह-वाही करा लेंगे और पत्रकारों का दल मान जायेगा। हमारे विचार से ऐसी किसी भी मीटिंग का रांची प्रेस क्लब या जिनके अंदर गैरत है, उसे बहिष्कार करना चाहिए।

एक पत्रकार ने ठीक ही कहा है कि झारखण्ड सरकार पहले पत्रकारों को लाठी से बर्बरतापूर्वक पिटाई करवाती है और उसके बाद पत्रकारों का बीमा कराने का पेशकश भी करती है। झारखण्ड सरकार की ओर से दी जानेवाली बीमा के पहले झारखण्ड सरकार उन पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करें, जिन्होंने निहत्थे पत्रकारों पर बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज की थी, अन्यथा ऐसी बीमा, फेंकी गई रोटी के समान है, जो भिखारी के सामने धनवान फेंकता है, ऐसी किसी भी बीमा का पत्रकारों को खुलकर विरोध करना चाहिए।

कमाल है इस फोटो को देखिये ये हे न्यूज 18 का कैमरामैन राजीव कुमार, जो अपने घर पर स्वास्थ्य लाभ ले रहा है, इसका पैर टूटा हुआ है, प्लास्टर लगा है, इससे मिलने के लिए झाविमो सुप्रीमो बाबू लाल मरांडी पहुंच गये, पर सत्तापक्ष का कोई भी व्यक्ति या उसकी पार्टी का व्यक्ति देखने तक नहीं पहुंचा, जो लोग 8 दिसम्बर की मीटिंग में शामिल थे, जिन संस्थान में वह काम करता है, वह भी उसके घर हाल-चाल पूछने तक नहीं गया।

यहीं नहीं जिस दिन घटना घटी थी, उस दिन इन चैनल के लोगों ने अपने यहां समाचार प्रसारित करना भी जरुरी नहीं समझा था, शायद इन्हें डर लग रहा था कि उनके विज्ञापनदाता होनहार मुख्यमंत्री रघुवर दास नाराज न हो जाये, और जब दिल्ली की एक राष्ट्रीय चैनल एनडीटीवी ने इस न्यूज को प्रमुखता से प्रसारित किया, तब जाकर, इन लोगों को शर्म लगी और जैसे-तैसे दूसरे दिन इस समाचार का इनके यहां से प्रसारण हुआ, अब जरा सोचिये, जहां ऐसे-ऐसे लोग हो, वे किसी का क्या कल्याण करेंगे, समझा जा सकता है।

रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष राजेश सिंह के अनुसार, उन्हें 8 दिसम्बर की मीटिंग की कोई सूचना नहीं थी, और न ही आमंत्रित किया गया था, शायद मुख्यमंत्री के सचिव को लगा हो कि रांची प्रेस क्लब के लोगों को इसमें इन्वॉल्व करना जरुरी नहीं हैं, वे अपने शुभचिन्तकों से ही काम निकाल लेंगे तो वे स्वतंत्र हैं, पर रांची प्रेस क्लब से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति व पत्रकार की चिन्ता करना उनका फर्ज हैं, वे देखेंगे कि स्वास्थ्य बीमा योजना का क्या होता है? लेकिन उसके पूर्व हमारी नजर 15 नवम्बर की घटना पर हैं, जब तक इस कांड में शामिल लोगों के खिलाफ राज्य सरकार कार्रवाई नहीं करती, रांची प्रेस क्लब शांत नहीं बैठेगा।