अपनी बात

इवेन्ट्स की तर्ज पर मन रही रांची में दुर्गा पूजा, पूजा-पाठ से कोई मतलब नहीं, मतलब सिर्फ नेताओं/संपादकों से

अब दुर्गा पूजा भी शत् प्रतिशत राजनीति का शिकार हो गया है, अगर कोई भाजपा माइन्ड है या भाजपा से साफ्ट कार्नर रखता है, तो वहां भाजपा का ही कोई बड़ा नेता पहुंचेगा और दुर्गापूजा के लिए बने पंडाल का उद्घाटन करेगा, और अगर कोई आजसू से जुड़ा है या आजसू के टिकट पर कभी भाग्य आजमा चुका है तो उसके यहां आजसू का ही कोई बड़ा नेता पंडाल का उद्घाटन करने आयेगा, ताकि आगे उसे इसका राजनीतिक लाभ मिल सकें।

यहीं नहीं अब तो इवेन्ट्स को कैश कराने का भी समय आ चुका है, इसलिए अब संपादकों पर भी डोरे डाले जा रहे हैं, जो जितने बड़े अखबार का सम्पादक उसका उतना ही भाव ज्यादा और जो फिसड्डी अखबार है, उसको पूछनेवाला कोई नहीं, चाहे वह आज का फिसड्डी अखबार का संपादक, कभी किसी जमाने में उसका भाव तेज ही क्यों न रहा हो। आज वह घिघिया भी रहा है तो कोई उसको भाव नहीं दे रहा।

आश्चर्य इस बात की है कि वर्तमान में राजनीतिज्ञों, मीडिया हाउस के संपादकों, पूजा समितियों के आयोजकों, पुलिस प्रशासन के पदाधिकारियों की बहुत अच्छी चौकड़ी बन गई है, इन चारों को दरअसल पूजा-पाठ से कोई मतलब नहीं, और नहीं जगत जननी के प्रति प्रेम हैं, बस ये चारों इस पूजा के नाम पर आनेवाले भीड़ को कैसे अपनी ओर मोड़े, उनसे अपने लिए जय-जय करा लें, सभी का ध्यान उसी ओर हैं।

कमाल की बात है, रांची में जितनी भी पूजा समितियां हैं, और इनके द्वारा जितने भी पंडाल बने हैं, किसी के पास एनओसी नहीं हैं, जो कानून का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन है, फिर भी इन कानून के उल्लंघनकर्ताओं के साथ राजनीतिज्ञों, मीडिया हाउस के संपादकों, पूजा समितियों के आयोजकों और पुलिस प्रशासन के पदाधिकारियों की गलबहियां देखते बन रही हैं, पूर्व में ऐसा देखने को नहीं मिलता था, जो लोग कानून का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन करते थे, संभ्रान्त व बुद्धिजीवी लोग, उनसे दूरियां बनाते थे। उन्हें लगता था कि लोग वर्तमान में देखेंगे तो कालांतराल में उनके सम्मान को धक्का लगेगा, पर फिलहाल ये सभी सम्मान को अपने-अपने घर के अलमीरा में बंद कर, उद्घाटन समारोह के अतिथि बनने में ज्यादा दिमाग लगा रहे हैं।

ऐसे, मैं इनके सम्मान को इनके घर के ताखे पर रख आने की बात कर सकता था, पर इसलिए नहीं लिखा कि ये बड़े लोग हैं अब इनके घरों में लाइन कटती ही नहीं, कि ये अपने घर पर ढिबरी रखने के लिए ताखा भी बनवाते होंगे, अब तो इनके घर पर ताखे का कन्सेप्ट ही खत्म हो गया हैं, अब ये विशेष प्रकार के घर बनवाते हैं, जिसमें ताखा नहीं होता, और न ही प्रेम या भक्ति या अध्यात्म से जुड़ने का भाव होता हैं, अगर होता है तो सिर्फ हर चीज को इवेन्ट्स में बदल देना और उसका राजनीतिक या आर्थिक लाभ लेना, देश व समाज भाड़ में जाये, अपनी बला से।

दुनिया में जितने भी लोग हैं, या जिस भी मत के माननेवाले ही क्यों न हो? सभी मतों/सम्प्रदायों में पर्व-त्यौहार, आपसी प्रेम करने, कटुता को दूर करने, हर प्रकार की विषमताओं/कटुताओं की दीवारों को ध्वस्त करने तथा एकात्मता का भाव जगाने के लिए होते हैं, पर अपने यहां हर चीज में राजनीति घुसेड़ने, मीडियाबाजी करने, विभिन्न पूजा समितियों में भगवान को भी प्रतिमा की प्रतियोगिता का भेंट चढ़ाने का जो खेल शुरु हुआ है, वह भारत के मिट्टी से निकले धर्म-संस्कृति को ही मटियामेट कर रहा हैं और ये दकियानुसी प्रचलन कब खत्म होगा, ये अंधकार कब खत्म होगा, इसका कहीं से एक हल्की/धीमी प्रकाश भी नहीं दिखाई दे रहा, जिससे मन में विश्वास हो कि एक दिन यह सब खत्म होगा।

फिर भी विश्वास रखिये, एक न एक दिन आयेगा, कि दुर्गा पूजा समितियां, राजनीतिबाजी, मीडियाबाजी, पाखण्ड व बाह्याडम्बर से दूर होकर, सिर्फ जगतजननी को प्रसन्न करने में अपना समय लगायेगी और लोग सचमुच भक्तिमय माहौल में भगवती की दिव्यता को महसूस कर, अपना जीवन सफल करेंगे, फिलहाल पाखण्ड व बाह्याडम्बर में लगी, इवेन्ट्स के चक्कर में डूबकी लगाना चाहते है, तो आपके लिए हर पूजा समितियों के पंडाल, आपको पलक पांवड़े बिछाकर इन्तजार कर रहे हैं। जहां मां की प्रतिमाएं तो हैं, पर मां नहीं हैं। जहां पंडाल तो है, पर मां नहीं हैं, क्योंकि मां तो आपके हृदय के विशाल पंडाल में बैठी हैं, जिसे देखने के लिए ये सामान्य आंखे कम पड़ती हैं, उसके लिए तो दिव्य आंखे चाहिए, ठीक वैसी ही, जिन आखों को कृष्ण ने अर्जुन और संजय को दिया था। इससे ज्यादा मैं क्या लिखूं और क्या बताऊँ?

One thought on “इवेन्ट्स की तर्ज पर मन रही रांची में दुर्गा पूजा, पूजा-पाठ से कोई मतलब नहीं, मतलब सिर्फ नेताओं/संपादकों से

  • RPShahi

    सटीक विश्लेषण ! भक्ति दौर से गुजर रहा है यह युग, हाँ भगवान् पर निर्णय ठोस नहीं हो पाया है। चंद्रप्रकाश चौधरी और जय सिंह यादव जो जैसे लोग ही तो भगवान् के करीबी भी हैं तो वे तो रहेंगें ही। वैसे बड़े भगवान् कहाँ गए थे ?

Comments are closed.