अपनी बात

लोकप्रियता में झारखण्ड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू मुख्यमंत्री रघुवर दास से बहुत आगे

झारखण्ड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने लोकप्रियता में राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को बुरी तरह पछाड़ दिया है। आश्चर्य इस बात की है कि जहां मुख्यमंत्री रघुवर दास अपनी ब्रांडिंग के लिए करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा रहे हैं, वहीं झारखण्ड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के पास ऐसा करने को कुछ भी नही हैं, पर इसके बावजूद वह अपनी सादगी और कर्तव्यनिष्ठता के कारण एवं जनोपयोगी फैसले लेने की वजह से पूरे झारखण्ड में विख्यात हो चुकी है। सूत्र बताते हैं कि चाहे कस्तूरबा विद्यालय में जाकर बच्चों के बीच समय बिताने की बात हौ या राज्य में उच्च शिक्षा के प्रति उनकी सजगता स्पष्ट रुप से उनकी लोकप्रियता में चार चांद लगा रहे हैं।

शराबबंदी पर राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के स्पष्ट राय ने जनता के बीच प्रसिद्धि दिलाई

लोग बताते है कि जहां एक ओर राज्य सरकार के फैसले, कि शराब सरकार बेचेगी, इससे मुख्यमंत्री रघुवर दास अलोकप्रिय हुए, वहीं द्रौपदी मुर्मू का बयान कि शराब से आम तौर पर जनता को नुकसान ही हुआ है। इस बयान से लोगों को लगा कि राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को झारखण्ड की उन गरीबों की चिंता है, जिनके परिवार शराब के कारण बर्बाद हुए हैं। राज्यपाल का ये बयान, उन परिवारों के जख्मों को भरने का काम किया, जिन्होंने शराब की वजह से अपना परिवार खो दिया।

सीएनटी-एसपीटी पर लिये गये फैसले ने लोकप्रियता के सारे रिकार्ड तोड़ दिये

जहां सीएम रघुवर दास सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन के लिए अडिग थे, जबर्दस्ती विधानसभा से इसे पास कराकर राज्यपाल के यहां हस्ताक्षर के लिये भेजा, और इधर राज्य की जनता द्वारा बार-बार इसका विरोध किया जाना और राज्यपाल से इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करने तथा प्रस्ताव पर हस्ताक्षर न करने का अनुरोध करना और अंततः जनता के हित में फैसले लेते हुए सीएनटी-एसपीटी एक्ट पर हस्ताक्षर न कर पुनर्विचार के लिए राज्य सरकार को भेजने के निर्णय ने, राज्य की जनता में एक अलग प्रकार की छवि राज्यपाल की पेश कर दी। राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के इस निर्णय की यहां के सारे विपक्षी दलों ने प्रशंसा की, यहीं नहीं सारे सामाजिक संगठनों तथा कई धार्मिक संगठनों ने भी भूरि-भूरि प्रशंसा की। राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के इस निर्णय ने पहली बार राज्यपाल को इतनी ख्याति दिलाई, जितनी ख्याति राष्ट्रपति शासन में भी राज्यपालों को नहीं मिली थी।