पर्दे पर “मुन्नी बदनाम हुई” में पुलिस डांस करे तो ठीक और रियल जिंदगी में डांस करें तो गलत कैसे?

इन दिनों सबके जुबां पर बिहार के पुलिसकर्मियों की चर्चा हैं। कोई गोली चलाने के लिए चर्चा में हैं तो कोई ठुमके लगाने के लिए चर्चा में हैं। क्या सचमुच गोली चलाकर खुशियों का इजहार करना, विदाई समारोह को शादी की सालगिरह में कन्वर्ट करा देना या ठुमके लगाकर खुशियों का इजहार करना एक पुलिसकर्मी के लिए गंदी बात है? या इसके कुछ और वजह है? बेचारे इन पुलिसकर्मियों को गोली चलाना और ठुमके लगाना इतना महंगा पड़ गया है कि बेचारे की इज्जत का फलुदा बनता चला जा रहा है, जरा देखिये कोई सिद्धार्थ जैन महाशय है, उन्हें केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाना था, बेचारे कि केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति रद्द कर दी गई। तीन निवर्तमान एसपी के खिलाफ बकायदा जांच बैठा दी गई। आखिर पूरा माजरा क्या है? पहले उसे समझिये।

अखबारों और चैनलों का मानना है कि तबादले के बाद नई तैनाती पर रवानगी से पूर्व आयोजित विदाई समारोह में कटिहार, मुंगेर और वैशाली के निर्वतमान एसपी ने खुद कानून की धज्जियां उड़ा दी। विदाई समारोह में कटिहार के एसपी रहे सिद्धार्थ मोहन जैन ने अपने सर्विस रिवाल्वर से खूलेआम हवाई फायरिंग की, जबकि वहां के निवर्तमान डीएम मिथिलेश मिश्र ने उनका साथ दिया, वहीं मुंगेर के निवर्तमान एसपी आशीष भारती ने वर्दी में ही ठुमके लगाये, वैशाली के एसपी रहे राकेश कुमार ने तो अपने विदाई समारोह का सालगिरह का समारोह बना डाला।

अब एक बात और जब सिद्धार्थ जैन और मिथिलेश मिश्र धमाल मचा रहे थे, तो दोनों फिल्म शोले का गाना भी गा रहे थे। गाने के बोल थे – “ऐ दोस्ती, हम नहीं तोड़ेंगे, तोड़ेंगे दम अगर, तेरा साथ ना छोड़ेंगे।“ निवर्तमान एसपी मुंगेर आशीष भारती तो “तेरी आंखो का ये काजल” पर डांस ही करने लगे। वीडियो वायरल हुआ तो पुलिस महकमा ही सन्न रह गया। बेचारे इन सारे पुलिसकर्मियों पर जांच की तलवार लटक गई और इज्जत का फलुदा बन गया सो अलग।

भाई, हमारा समाज भी न, बड़ा गजब है। आप इसको ऐसे देखिये, पत्थर के शिवजी पर पत्थर के बने सांप को खुब पूजता है, गणेश जी के पत्थर के चूहे को खुब लड्डू खिलाता है और जैसे ही सचमुच का सांप और चूहा देखता हो तो उसका पत्थर से कैसे स्वागत करता हैं, वो तो आप सबको पता ही होगा? इसी को कहते हैं दोहरा चरित्र।

अब आइये, जो लोग इन पुलिसकर्मियों पर अंगूलियां उठा रहे हैं, जांचे बैठा दी है, केन्द्रीय प्रतिनियुक्तियां रद्द करवा दी हैं, जरा उनसे पूछिये कि क्या आपने कभी फिल्में देखी हैं? उन फिल्मों में पुलिस बने पुलिसकर्मियों को वर्दी या बिना वर्दी में डांस करते देखा है, इसका जवाब देने में उनके पसीने छूट जायेंगे? सामान्य से असामान्य फिल्मों में हीरो बना पुलिस पदाधिकारी वर्दी या बिना वर्दी में अपनी हीरोइन के साथ ठुमके लगाता ही है, कई गाने तो ऐसे हैं, जो इसी पर फिल्माये गये हैं।  जरा देखिये…

एक हीरोइन कहती है – “बलमा सिपहिया, हाय रे तेरे तंबूक से डर लागे, लागे रे जियरा, धक-धक, धक-धक, धक-धक जोर से भागे” (फिल्म-दुश्मन), “दरोगाजी से कहियो, सिपहिया करे चोरी” (फिल्म-कालका), “आज अभी यहीं, नहीं-नहीं-नहीं, फिर कभी कहीं” (फिल्म – इनक्लाब), “छैला बाबू, तू कैसा दिलदार निकला, चोर समझी थी मैं थानेदार निकला”(फिल्म-कर्तव्य) और फिल्म दबंग में – “मुन्नी बदनाम हुई, डार्लिगं तेरे लिए, ले झंडू बाम हुई डार्लिंग तेरे लिए” में तो वर्दी में ही पुलिसकर्मी डांसर के साथ मस्ती ले रहा है।

अब फिल्म के बाद, जरा भर्तृहरि के नीति शतकम् का श्लोक संख्या 12 देखिये, क्या कह रहा है – साहित्य संगीत कलाविहीनः साक्षात पशु पुच्छ विषाणहीनः। तृणं न खादन्नपि जीवमानस्तद्भागधेयं परमं पशूनाम्।। अर्थात् साहित्य संगीत और कला से विहीन मनुष्य साक्षात् नाखून और सींग रहित पशु के समान है जो घास तो नहीं खाता पर अन्न से जीता रहता है, ऐसे मनुष्यों को भी परम पशुओं की श्रेणी में रखना चाहिए।

सच्चाई यहीं है कि व्यक्ति में संपूर्णता तभी हैं जब उसके जीवन में साहित्य, संगीत और कला का सम्मिश्रण समाहित हैं। भारत के महान चिन्तक एवं विद्वान झारखण्ड निवासी पद्मश्री राम दयाल मुंडा तो बराबर कहा करते थे, जे नांची से बांची, यानी जो नाचेगा वहीं बचेगा, जो नहीं नाचेगा, वो बच ही नहीं सकेगा। भारत का एक प्रांत झारखण्ड जो बिहार से सटा है, जहां प्रकृति तो स्वयं नृत्य करती मुद्रा में विराजमान है, अगर आप यहां आ जायेंगे और कहेंगे कि हम नहीं नाचेंगे, ये हो ही नहीं सकता, क्योंकि यहां तो प्रकृति आपको नाचना सीखा देगी, यहां रोम-रोम में नृत्य बसा है, मैं जानता हूं।

इसलिए हे बिहार के महान विद्वानों, अधिकारियों, पत्रकारों, नेताओं, इन पुलिसकर्मियों पर थोड़ी दया करों, इन्होंने कोई ऐसा अपराध नहीं कर दिया, जिस अपराध को लेकर, आप उनके पीछे ही पड़ जाओं और उनकी कैरियर ही तबाह कर दो।