अपनी बात

हंसिये मत, उलूल-जुलूल बकिये मत, केदार-बद्री विशाल को निवेदित प्रार्थना क्या गुल खिला देगी, आपको नहीं पता

17 मई को इधर चुनाव प्रचार समाप्त हुआ और इसके ठीक दूसरे दिन यानी 18 मई को पता चला कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केदारनाथ की यात्रा पर हैं। पीएम मोदी चूंकि आध्यात्मिक व्यक्ति हैं, उनका धर्म और अध्यात्म से गहरा संबंध रहा हैं, वे हरदम भारतीय संस्कृति के इस अध्याय को प्राणवायु देने के लिए तरह-तरह के कार्य किया करते हैं, ये उनके जीवन से जुड़ा हैं। पीएम मोदी 18 मई को भगवान केदार के दर्शन किये और फिर गुफा में रात भर ध्यानमग्न रहे। रविवार यानी 19 मई को फिर, वे वहां से बद्रीनाथ पहुंचे और वहां जाकर भगवान बद्री विशाल के दर्शन किये।

इसी बीच उनके समर्थकों व विरोधियों में इस बात को लेकर युद्ध प्रारम्भ हो गया। कोई उनके इस धार्मिक यात्रा के छिद्रान्वेषण में जुट गया तो कोई समर्थन में। किसी को उनके परिधान पर आपत्ति थी तो किसी को केदारनाथ में उनके लिए बिछाए गये रेड कार्पेट पर आपत्ति थी, कोई उन्हें इस कार्य के लिए नौटंकीबाज बता रहा था, तो कोई उनके इस अदा पर भी फिदा था, लेकिन जिनको इन सबसे कोई मतलब नहीं, जो धर्म और अध्यात्म के गुप्त रहस्यों को जानते हैं, वे समझ चुके थे कि पीएम मोदी ने केदारनाथ और बद्रीविशाल की यात्रा को क्यों चुना?

आखिर आम तौर पर जो व्यक्ति किसी काम के बाद ज्यादा थक जाता हैं, तो वह ऐसे जगहों पर ऐश-मौज करने जाता हैं, जहां प्रकृति ने मनोहर छटा बिखेरी हो, जहां मंदिर के घंटे की जगह, पायलों के घुंघरु या वो हर प्रकार के कृत्य शराब-शबाब के साथ नजर आते हो, जिसकी एक सामान्य मनुष्य की चाह होती है, हमारे देश में एक से एक नेता आज भी मौजूद हैं, तो चाहे वे थके हो या न थके हो, वे अपनी थकान मिटाने के लिए बैंकाक तथा अन्य देशों के सैर-सपाटे के लिए निकल पड़ते हैं।

और जब चुनाव हो तो फिर देखिये, ये मंदिर-मस्जिद का दौर लगाना शुरु कर देते हैं, माथे पर त्रिपुंड लगाते हैं, गेरुवा वस्त्र धारण करते हैं, साफा पहनते हैं, पर जैसे ही चुनाव खत्म हो गया, वे अपनी मस्ती में डूब जाते हैं। ऐसे नेताओं की संख्या सभी पार्टियों में हैं, किसी एक को इसमें कैद नहीं किया जा सकता।

हमारे यहां तो ऐसे नेता हैं, जो विकासात्मक कार्यों की बात करते हुए, ऐसे देशों के महानगरों की यात्रा पर निकल जाते हैं कि उसकी चर्चा करते हमें शर्म महसूस होती है, पर पीएम मोदी ने इन सबसे दूर केदारनाथ व बदरीविशाल की यात्रा कर अध्यात्म की अमृतशाला में डूबकी लगाना श्रेयस्कर समझा, और जिन्होंने उनके इस मर्म को समझा, वो निःसंदेह यह समझ गया कि उनके पीएम मोदी ने ईश्वर से क्या मांगा? क्या प्रार्थना की?

ऐसे भी मनुष्य के जीवन में प्रारब्ध, प्रार्थना और प्रयास का विशेष महत्व होता है। प्रारब्ध पर मनुष्य का अधिकार नहीं होता, प्रार्थना और प्रयास पर उसका अधिकार होता है। प्रधानमंत्री ने अपनी पार्टी को फिर से प्रतिष्ठित करने के लिए, देश की सेवा का अवसर फिर मिले, इसके लिए उन्होंने लगातार प्रयास किया और अब वे प्रार्थना करने के लिए केदारनाथ पहुंच गये, अब उनकी प्रार्थना सुनी गई या नहीं, ये तो 23 मई को पता चलेगा।

जब परिणाम आयेंगे, पर भगवान उनकी प्रार्थना के अनुसार जो भी प्रसाद उन्हें उपलब्ध करायेंगे, वो निःसंदेह उनके और देश के लिए श्रेयस्कर होगा। वो प्रसाद किसी के नजरों मे सकारात्मकता लिए तो किसी की नजरों में नकारात्मकता लिए भी हो सकता हैं, पर जो लोग भगवान के प्रार्थना के गूढ़ रहस्यों को जानते हैं, वे इस पर छिद्रान्वेषण की कोशिश नहीं करते।

कल यानी 19 मई को अंतिम चरण का मतदान था, संयोग से दिन रविवार होने के कारण, हम रांची के एक अतिप्रतिष्ठित आध्यात्मिक केन्द्र में मौजूद थे, संयोग से कल सत्संग का विषय भी प्रार्थना ही था। एक बहुत ही पहुंचे हुए आध्यात्मिक संत का वहां प्रवचन चल रहा था, वे अंग्रेजी भाषा में बड़े ही तार्किक ढंग से प्रार्थना विषयक प्रवचन को जनता के बीच रख रहे थे, मैं भी उनके प्रवचनों का रसास्वादन कर रहा था, वे बता रहे थे, कि प्रार्थना में बड़ी ही शक्ति हैं, अगर प्रार्थना करनेवाले व्यक्ति प्रार्थना करने की कला, उसके सिद्धांत और उसके गूढ़ रहस्यों को जानता हो।

उन्होंने बताया कि जब कभी प्रार्थना करें, तो आप जिन भी ईश्वर पर श्रद्धा रखते हो, उनसे आप डायरेक्ट संबंध स्थापित करें, भाया-मीडिया संबंध कभी न करें। अगर आप गुरु या भगवान से भी कुछ मांग रहे हैं, या प्रार्थना कर रहे हैं, तो उसमें भाया-मीडिया नहीं होना चाहिए, क्योंकि आपके गुरु और आपके भगवान सदैव आपकी भलाई के चिन्ता करते रहते हैं, भले ही आप चिन्ता करें या न करें। उन्होंने बताया कि प्रार्थना में आपकी श्रद्धा और भक्ति निहित होनी चाहिए।

प्रार्थना करें तो भिखमंगों की तरह नहीं, क्योंकि अगर भिखमंगों की तरह मांगेंगे तो आपको भिखमंगों की तरह ही वो चीजें प्राप्त होगी, जिसमें आनन्द नहीं होगा, सिर्फ आप दया के पात्र होंगे। आप जब भी प्रार्थना करें या डिमांड रखें तो ठीक उस प्रकार जैसे एक बच्चा किसी चीज को पाने के लिए मां से जिद करता हैं और मां के पास अभाव होने के बावजूद वह उन चीजों की पूर्ति के लिए स्वयं को दांव पर लगा देती है।

प्रार्थना में सकारात्मकता जरुरी हैं, साथ ही दृढ़ विश्वास भी होना चाहिए, प्रार्थना अगर किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए की गई तो वह प्रार्थना ही नहीं, सबसे अच्छी प्रार्थना वो हैं, जो दूसरे के आनन्द के लिए की गई हो और ये प्रार्थना करने का सबसे सुंदर समय हैं ध्यान के बाद का समय, क्योंकि उस वक्त आप ईश्वर के निकट होते हैं, और अपनी बात रखने में सक्षम होते हैं, इसलिए ध्यान के बाद का समय प्रार्थना के लिए बहुत ही सर्वोत्तम समय होता हैं।

अब चूंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पांच साल पूरे कर लेने के बाद, सात चरणों की चुनाव संपन्न होने के बाद, केदारनाथ और बद्रीविशाल की ओर अपना ध्यान केन्द्रित किया, इसका प्रतिफल अवश्य उन्हें प्राप्त हुआ होगा, ऐसे जहां तक मुझे जानकारी है, वे कोई ऐसा मौका नहीं छोड़ते, जब वे ध्यान नहीं करते हो, ऐसे में केदारनाथ व बद्रीनाथ की यात्रा के दौरान उनका किया गया ध्यान कितना प्रभावशाली होता हैं।

हम भी 23 मई को देखना चाहेंगे, और उस दिन उन सबको इसका परिणाम भी दिख जायेगा कि कोई भी व्यक्ति जब ईश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा निवेदित करता हैं, तो उसको क्या प्राप्त होता हैं और जो बेवजह किसी की आलोचना में ही समय निकाल देते हैं, उन्हें क्या मिलता है? बस तीन दिन और हैं, समय की प्रतीक्षा करिये, देखिये पीएम मोदी की प्रार्थना क्या असर दिखाता हैं? हमें तो पूर्ण विश्वास हैं कि परिणाम जो भी आयेगा, उसमें ईश्वर का बहुमूल्य आशीर्वाद पीएम मोदी और भारत देश दोनों के लिए छुपा होगा।

One thought on “हंसिये मत, उलूल-जुलूल बकिये मत, केदार-बद्री विशाल को निवेदित प्रार्थना क्या गुल खिला देगी, आपको नहीं पता

  • Vijay Raghavan

    Priya Mishra ji
    Prayer aapka personal matter hota hai aur Bhagwan par vishwas rakhne wale Roz karte bhi Hain.
    Yahan isko publicity stunt ki tarah poora din telecast hota raha wo bhi Election se just ek din pahle aur voting wale din bhi. Official program karar Diya gaya kyunki PM the.
    Yah baat akhar gayee jisko legally undue advantage kaha ja sakta.
    Yahi kaaryakram agar 20 ko rakha jata to kya harz that. Results to 23 ko hee declare hona tha?
    Kisi ki bhakti par tippani nahi balki bakhti ko publicity stunt banane me hai sir.

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