दैनिक भास्कर के चक्कर में मत पड़िए, ऐसा कोई अजब संयोग नहीं हैं, मलमास में ऐसा ही होता है, दुर्गापूजा एक महीने के लिए बढ़ ही जाता है

हद हो गई, न खाता न बही, जो दैनिक भास्कर लिख दे, छाप दे, आपके सामने परोस दे, वही सही। ठीक वैसे ही जैसे आज प्रथम पृष्ठ पर फ्रंट लाइन में परोस दिया। लिख दिया- दुर्गोत्सव… महालया के 35 दिनों बाद दुर्गा पूजा का अजब संयोग। कल महालया, पहली बार दुर्गा पूजा के लिए महीने भर इंतजार, जबकि सच इसके ठीक विपरीत है, ऐसा कोई अजब संयोग नहीं है।

इतिहास साक्षी है, जब-जब आश्विन मास में मलमास लगेगा, तब-तब ऐसी स्थितियां आयेगी। दुर्गापूजा के लिए लोगों को एक महीने का इंतजार करना ही पड़ेगा, क्योंकि जिस महीने में मलमास लगता है, उस महीने के अधिक मास में पूजा का विधान नहीं है, इसके लिए शुद्ध मास की आवश्यकता होती है।

ठीक उसी प्रकार जैसे शुद्ध आश्विन कृष्णपक्ष मास में पितृपक्ष का कार्य संपन्न हुआ, उसी प्रकार शुद्ध आश्विन शुक्लपक्ष में दुर्गापूजा का आयोजन होगा। चाहे दुर्गापूजा का आयोजन करनेवाले किसी भी समुदाय के लोग क्यों न हो? ऐसे भी आश्विन मास में मलमास कोई पहली बार नहीं लगा है, ये बराबर लगा करता है, और आनेवाले समय में लगेगा भी, और जब-जब लगेगा, तब-तब ऐसी स्थितियां उत्पन्न होगी। ये सभी लोगों को जान लेना चाहिए और इसमें बंगाली-बिहारी का भेद नहीं लगना चाहिए, क्योंकि बंगालियों और बिहारियों या अन्य समुदायों में केवल पूजा की परम्पराएं बदल जाती है, बाकी सभी चीजें एक जैसी होती है, इसे कोई नकार भी नहीं सकता। ऐसा नहीं कि तिथियां बदल जायेगी, महीने बदल जायेंगे, ग्रह-नक्षत्र बदल जायेंगे। 

एक बात और दैनिक भास्कर ने लिखा है। आशंका – मां के आवाहन के बाद भी उनकी स्थापना नहीं होने से रोग, शोक और बढ़ सकती है महामारियां। यह घोर आश्चर्य है। जब तक आश्विन मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि नहीं आयेगी, मां का आवाहन, कही हो भी नहीं सकता, क्योंकि शारदीय नवरात्र उसी दिन प्रारम्भ होता है, न की आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि से। ऐसे बंगाली समुदाय में लोग महालया के दिन से ही दुर्गापूजा के आगमन का बोध करने लगते है, उसका कारण है कि इसी दिन लोग अपने पितरों को अंतिम श्रद्धांजलि या पिंडदान कर, मां की पूजा में लग जाते हैं।

बंगाल छोड़ शेष भारत में जिन लोगों को अपने पितरों की तिथियां नहीं मालूम, वे महालया के अंतिम दिन यानी अमावस्या को ही तर्पण आदि कर लेते हैं। जानकारी के लिए बता दें, ज्यादातर लोग महालया का मतलब आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या के दिन को ही समझते है। वाराणसी पंचाग अगर देखेंगे तो पायेंगे कि महालया भाद्रपद शुक्लपक्ष की पूर्णिमा से ही प्रारम्भ हो जाता है, जो आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक रहता है, इसे कोई भी व्यक्ति देख या जान सकता है। महालया का अर्थ ही है – महा+आलय। यानी वो मार्ग खुल गया, जिसमें आप अपने पितरों की शांति के लिए तर्पण आदि कर सकते हैं।

चूंकि पिछले कई वर्षों से रेडियो में महालया के दिन होनेवाले विशेष प्रसारण ने लोगों को कुछ ज्यादा ही प्रभावित किया है, ठीक उसी प्रकार जैसे आज यू-ट्यूब, व्हाट्सअप, फेसबुक आदि ने प्रभावित किया। ऐसे में ये सही नहीं कि जो रेडियो कह दिया, वह ब्रह्मवाणी हो गया। रेडियो में महालया के प्रसारित होने के पूर्व से भी देश में दुर्गा पूजा मनाई जाती रही हैं, और कही बेहतर ढंग से मनाई जाती रही है, अब तो वैसा माहौल भी नहीं। अब तो दुर्गापूजा केवल दिखावा मात्र रह गया है, नहीं तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मां का ध्यान समस्त जगत के लिए कल्याणकारी है।

एक बात और, आप दैनिक भास्कर द्वारा फैलाई जा रही आशंकाओं से दूर रहे, मां भगवती का ध्यान करें, इस बार की पूजा विशेष फलदायी है, क्योंकि ये भारत के लिए समस्त अनिष्टों को शमन करनेवाला है, आप खुद पायेंगे कि भारत पर आई विपत्तियां धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है, इसलिए अफवाहों से दूर रहिए, और दुर्गापूजा के लिए बस हमेशा की तरह एक महीने का इंतजार करिये, क्योंकि इस महीने में मलमास लगा है। रांची के ही ज्योतिषाचार्य पं. मिथिलेश कुमार मिश्र तो साफ कहते है कि ऐसा 1963, 1982 और 2001 में भी हो चुका है, शायद दैनिक भास्कर को नहीं पता होगा।