सजायाफ्ता जगन्नाथ मिश्र के लिए राजकीय शोक की घोषणा, क्या भ्रष्टाचार को महिमामंडित करना नहीं?

भला जिसे चारा घोटाले के तीन मामलों में सजा मिल चुकी हो, दो मामले में पांचपांच वर्ष और एक मामले में साढ़े तीन साल की सजा मिली हो, उसके लिए भी राजकीय शोक मनाया जाये, तो क्या ये घोर आश्चर्य नहीं। अब क्या इस देश में न्यायालय से सजा प्राप्त लोगों को भी राजकीय सम्मान प्राप्त होगा, उनके लिए राजकीय शोक मनाया जायेगा?

ये सवाल इसलिए भी है कि क्योंकि बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके डा.जगन्नाथ मिश्र के निधन पर राज्य में तीन दिनों का राजकीय शोक घोषित किया है। उन्होंने राजकीय शोक घोषित किया है, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने की कसमें खाने से नहीं चूकते।

ऐसे तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बात करें, तो ये ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ते, जिसमें ये स्वयं को महान व्यक्ति घोषित करवाने में पीछे नहीं रहते, उनके बयानों में भ्रष्टाचार और अपराध का विरोध हमेशा से रहा है, हाल ही में उन्होंने एक बयान भी दिया था कि कफन में पाकेट नहीं होता

पर अब क्या हो गया कि जिन पर भ्रष्टाचार का आरोप, जिसे सजा मिली, आपने उस सजायाफ्ता व्यक्ति के लिए तीन दिन का राजकीय शोक घोषित करवा दिया। क्या ये भ्रष्टाचार को महिमामंडित करना नहीं है? और अगर ये भ्रष्टाचार को महिमामंडित करना नहीं हैं तो फिर क्या है?

क्या आनेवाले समय में अन्य ऐसे नेता जिन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में सजा मिली हैं, उन्हें भी आप सम्मान के तौर पर, उनके मरणोपरांत राजकीय शोक की घोषणा करेंगे? और आप करें या करें, इस परिपाटी का प्रचलन तो आपने शुरु कर ही दिया, तो लोग इसे भी झेलेंगे और एक सबक भी सीखेंगे।

ये सबक आपने ही सिखाया है कि आप देश का सीना छलनी करते रहो, लूटते रहो, भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डूबकी लगाते रहो, न्यायालय अगर सजा भी सुना दें तो चिन्ता न करो और मरणोपरांत तिरंगा में लिपटकर श्मशान घाट तक चले जाओ, मरणोपरांत तीन दिन के राजकीय शोक का मजा भी लो।

अगर डा. जगन्नाथ मिश्र को न्यायालय द्वारा सजा नहीं मिलती तो बात कुछ और थी, पर जब न्यायालय ने उन्हें दोषी मान लिया, सजा सुना दी, उसके बाद उनके नाम पर राजकीय शोक, ये तो अद्भुत घटना है। इसका प्रभाव बिहार और बिहार के समाज पर क्या पड़ेगा? क्या अब लोग गुनाह से तौबा करेंगे, वे तो और गुनाह करेंगे, ये कहकर कि अदालत कुछ भी सजा सुना दें, हमें तो वो चीजें मिलेंगी ही, जो हमें मिलना है।

राजद के वरिष्ठ नेता शिवानन्द तिवारी ने सोशल साइट फेसबुक के माध्यम से इस बात को उठाया है, पर वे भूल रहे है कि भविष्य में उनके भी नेता के साथ ये सब होगा, तो क्या उस वक्त भी इसी प्रकार का सवाल उठायेंगे, जो आज उन्होंने उठाया है, क्योंकि कहा जाता है कि जिनके मकान शीशे के हो, उन्हें दूसरों के मकानों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए।

इधर कुछ ऐसे पत्रकार भी है, जिनका जगन्नाथ मिश्र के साथ मधुर संबंध था, उन मधुर संबंधों को लेकर वे उन्हें याद कर रहे और श्रद्धांजलि दे रहे हैं तथा उनके साथ के फोटो को शेयर कर रहे हैं, पर वे भूल रहे हैं कि ये वहीं डा. जगन्नाथ मिश्र है, जिन्होंने मीडिया पर ऐसी ज्यादती की थी, कि उस वक्त के शायद ही कोई ऐसे पत्रकार होंगे, जिन्हें जगन्नाथ मिश्र द्वारा लाये गये उक्त काला बिल की वह घटना याद नहीं होगी।

उस वक्त बिहार की राजधानी पटना के बड़ेबड़े संपादक पत्रकारों का समूह सड़कों पर उतर गया था, जिसकी गूंज दिल्ली में बैठे पत्रकारों के  कानों तक गूंजी थी। वरिष्ठ पत्रकार एवं आइएफडब्लयूजे के अध्यक्ष के विक्रम राव ने तो उस घटना की आज विस्तार से वर्णन किया है, जो व्हाट्सएपग्रुप में धड़ल्ले से वायरल भी हो रहा है।