अपनी बात

कांग्रेस को ज्यादा खुश होने की जरुरत नहीं और न भाजपा को दुखी होने की, जनादेश दोनों के लिए सबक

कांग्रेस को ज्यादा बौराने की जरुरत नहीं हैं, क्योंकि ये जनादेश उसे ज्यादा खुश होने को नहीं कहता और न ही भाजपा को ज्यादा दुखी होने का संदेश दे रहा है। मध्यप्रदेश और राजस्थान में आज भी कांग्रेस बहुमत से एक सीट कम हैं, वहीं छतीसगढ़ में उसकी सुनामी साफ दिखती है, राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाना, स्पष्ट संकेत है कि जनता को कांग्रेस पर भी उतनी विश्वास नहीं है, रही बात भाजपा को सीटे कम मिलना इस बात का संकेत है कि जनता भाजपा से नाराज है, पर उतनी भी नहीं नाराज, कि उसे नापसंद कर दें, नहीं तो अगर ऐसा होता तो छत्तीसगढ़ जैसा परिणाम राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी दिखता।

रही बात 2019 के लोकसभा चुनाव में इसका परिणाम दिखेगा या नहीं, तो हमारा मानना है कि दोनों प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियां गांठ बांध ले, इसका परिणाम उनके सेहत पर अवश्य पड़ेगा, क्योंकि अभी लोकसभा चुनाव होने में चार-पांच महीने बाकी है, और इन चार-पांच महीनों में अगर कांग्रेस ने एक बेहतर शासन देकर जनता की ओर अपना ध्यान आकृष्ट कर लिया तो समझ लीजिये, थोक के भाव में वोट उन्हें प्राप्त होंगे और अब आप दोनों में से कोई, ये कह भी नहीं सकते कि ईवीएम में छेड़-छाड़ हुई है।

भाजपा का सत्ता से दूर रहने का मूल कारण, उनके द्वारा चलाई गई विकासात्मक योजनाएं नहीं, बल्कि उन विकासात्मक योजनाओं में चल रही भ्रष्टाचार है। अब आप उज्जवला योजना को ले लीजिये, एक गैस कनेक्शन लेने में ग्रामीणों से कैसे कमीशन वसूले जा रहे हैं, वो सबको पता है, गांव के किसान, लाखों रुपये खर्च कर फसल उगा रहे हैं और उन फसल की कीमत उन्हें इतनी भी नहीं मिल रही कि वे कम से कम खेती का लागत प्राप्त कर सकें, ऐसे में वे क्या करेंगे, किसके पास जायेंगे, अतः उन्हें तो इंतजार तो वोट का ही रहता है।

और अंत में एससी-एसटी एक्ट ने तो भाजपा के परंपरागत वोटों में ऐसी सेंध लगा दी कि सवर्णों को लगा कि ये सरकार तो उनसे चीटिंग कर रही है, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने जो फैसले सुनाए थे, वो गलत तो थे नहीं, पर सर्वोच्च न्यायालय के मुंह पर ताला लगाने के लिए एक अध्यादेश ले आने की मोदी सरकार के फैसले ने बता दिया कि अपना पीएम नरेन्द्र मोदी कोई सिंहपुरुष नहीं, बल्कि ये भी वोट के सौदागर हैं, इन्हें भी वोट चाहिए, देश से कोई मतलब नहीं।

साथ ही देश में बढ़ती जनसंख्या, शिक्षा का गिरता स्तर, अयोध्या में श्रीराममंदिर पर ढुलमूल रवैया और छोटे दुकानदारों की तबाह होती जिंदगी ने आग में घी का काम किया और यहीं नाराजगी ने नोटा पर बटन दबाने पर लोगों को मजबूर किया और कांग्रेस भाजपा से आगे निकल गई। वक्त तो अभी भी है, अगर नरेन्द्र मोदी अपने बोली में लगाम लगाने, फालतू की बात बंद करने तथा भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने एवं जनसंख्या पर रोक लगाने संबंधी एक बेहतर दृष्टिकोण जनता के सामने रख दें, तो फिर देखिये 2019 में ये एक बार फिर महानायक बन जायेंगे, पर ऐसा ये कर पायेंगे, संभव नहीं है, क्योंकि ये भी घिरे है, महान बुद्धिजीवियों से।

मैं तो कहता हूं कि कोई माइ का लाल ये कहता है कि हम विकास की गंगा बहा देंगे तो सीधे सफेद झूठ बोलता है क्योंकि देश में बढ़ती जनसंख्या पर जब तक लगाम नहीं लगाया जायेगा, एक स्पष्ट जनसंख्या नीति नहीं बनाई जायेगी, उसे कड़ाई से लागू नही किया जायेगा, सारा विकास इस जनसंख्या में घूस जायेगा, पर कोई राजनीतिक दल इसे जमीन पर उतारेगा, इसकी संभावना कम दिखती है, एक भाजपा में ये बात दिखती थी, पर वो तो लंद-फंद में ही अपना कैरियर तबाह करने में लग गई, दूसरा भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए भी एक नीति की आवश्यकता है, जो भ्रष्टाचार को जड़ से नाश कर दें।

पर जिस देश में पूंजीपतियों-धन्नासेठों के इशारे पर नाचनेवाले राजनीतिज्ञों-अभिनेता-अभिनेत्रियों की फौज का जन्म हो गया हो, उस देश में भ्रष्टाचार की गंगोत्री पर रोक लगाना मुश्किल है, जिस 2014 में नरेन्द्र मोदी को लोगों ने देखा था, उस नरेन्द्र मोदी ने अपनी लोकप्रियता खो दी है, अब ये अपनी लोकप्रियता पुनः हासिल कर पायेंगे, इसकी संभावना कम दिखती है, पर हम आज भी यहीं कहेंगे कि पुरुषार्थ को जगाना वे आज भी शुरु कर दें, तथा सही निर्णय लेने शुरु कर दें, तो उनके सामने बहुत कम ही राजनीतिक दल टिक पायेंगे, क्योंकि आज भी उनके पास एक मजबूत संगठन है।

इधर कांग्रेस पार्टी को राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में मिली सफलता, उसे निःसंदेह संजीवनी का काम की है, पर इस छोटी सफलता पर बौराना, कांग्रेसियों के लिए ही घातक होगा, क्योंकि आपकी लड़ाई कोई सामान्य संगठन से नहीं, आज भाजपा को शिकस्त देना, वह भी उस भाजपा को जिसे समर्थन देने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद्, बजरंग दल, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, जैसी महत्वपूर्ण संगठन पीछे खड़ी हो, उसकी मुकाबला करना सामान्य नहीं।

क्योंकि वर्तमान की कांग्रेस के पास उसकी सहयोगी संगठन तो बहुत है, पर वो अपना अस्तित्व खो चुकी है, इसलिए ज्यादा दिमाग इस पर लगाये कि जो सफलता मिली है, उस सफलता की लोकप्रियता को बरकरार रखने के लिए हमेशा सचेत रहे, नहीं तो अगर एक भी गडबड़ी आपने की, तो सामने में भाजपा खड़ी हैं आपको पूरी तरह से लपक लेने के लिए, क्या आप ऐसा कराने को तैयार है, अगर नहीं, तो अपने आपको बेहतर स्थिति में लाने के लिए हो सके तो कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के प्रेस कांफ्रेस को बार-बार सुने, और उसे अमल में लाएं।