अपनी बात

नवनिर्मित विधानसभा का श्रेय लेने की होड़ में CM रघुवर ने लोकतंत्र की मर्यादा को तार-तार कर डाला

झारखण्ड में नवनिर्मित विधानसभा का उद्घाटन अभी से थोड़ी देर पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कर दिया है। इस नवनिर्मित विधानसभा का श्रेय लेने के चक्कर में मुख्यमंत्री रघुवर दास तथा उनके इर्दगिर्द घूमनेवाले कनफूंकवों ने लोकतंत्र की सारी मर्यादाएं ही धूल में मिला दी, पर इन्हें पता ही नहीं कि इन्होंने क्या गलतियां की हैं?

एक तो आज नवनिर्मित विधानसभा के उद्घाटन का जो विभिन्न अखबारों में विज्ञापन निकाला गया हैं, उसमें कही भी नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन का नाम नहीं हैं, और हद तो तब हो गई, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिलापट्ट से पर्दे हटाये, तो उस शिलापट्ट पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू, स्पीकर दिनेश उरांव का तो नाम दिखा, पर तो संसदीय कार्य मंत्री और ही नेता प्रतिपक्ष का नाम उस शिलापट्ट पर था।

जबकि विधानसभा के प्रोटोकॉल में स्पीकर, मुख्यमंत्री, संसदीय कार्य मंत्री, नेता प्रतिपक्ष सर्वोपरि है, जिस प्रकार से इस उद्घाटन समारोह में संसदीय कार्य मंत्री और नेता प्रतिपक्ष को नजरंदाज किया गया, वह अत्यंत लज्जाजनक है। अब हमारा सवाल हैं राजनीति शास्त्र के विद्वानों, राजनीति में रुचि रखनेवाले विद्वानों, राजनीति करनेवाले विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से, क्या विधानसभा का मतलब सिर्फ सत्ताधारी दल होता है या उसमें विपक्ष का भी स्थान है, और अगर विपक्ष का भी उतना ही स्थान है,तो फिर नवनिर्मित विधानसभा के उद्घाटन के दौरान अखबारों में छपे संबंधित विज्ञापन और नवनिर्मित विधानसभा के उद्घाटित शिलापट्ट पर विपक्ष क्यों नहीं दिख रहा?

क्या ये विपक्ष का अपमान नहीं, क्या ये लोकतंत्र का अपमान नहीं, क्या इस विधानसभा में विपक्ष का कोई स्थान नहीं होगा? क्योंकि जब उद्घाटन में और उद्घाटित शिलापट्ट में जब विपक्ष नहीं दिख रहा तो हम कैसे समझे कि इस विधानसभा में विपक्ष की आवाज भी उसी स्वतंत्रता से गूंजेगी? जिसकी कल्पना हमारे देश के मणीषियों ने लोकतंत्र की स्थापना के दौरान की थी।

आप श्रेय लेने की कोशिश करें या करें, जो लोग जानते है, वो तो कहेंगे ही कि यह किसने बनवाया पर महानता तो तब है कि जिस समय यह इतिहास बनने जा रहा हैं, उस वक्त के ऐतिहासिक पल को और खुशनुमा बना दिया जाये, पर वो कहा जाता है कि बुद्धि जो हैं, वो किसी पेड़ पर नहीं उगती, जिसे प्राप्त कर आप बुद्धिमान हो जाये।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो सत्तापक्ष ने एक बहुत बड़ा अपराध किया हैं, विपक्ष को नजरदांज करना और संसदीय कार्य मंत्री को भी ऐसे मौके पर भूल जाना, बताता है कि अब राज्य में जिसकी लाठी उसकी भैस वाली कहावत चरितार्थ होगी, चूंकि ये खेल भाजपा ने शुरु किया हैं, तो आनेवाले समय में अब जब दूसरे दल गलतियां करेंगे तो भाजपा की हिम्मत नहीं होगी कि वह सवाल उठा सकें, क्योंकि तब लोग इन्हें ही कहेंगे कि उलटा चोर कोतवाल को डांटे, फिर इन्हीं भाजपाइयों को अपना मुंह छिपाते भागना पड़ेगा, क्योंकि लोकतंत्र में सदैव आप ही शासन में रहेंगे, ये जो दिमाग में घुस गया हैं, ये लोग जितनी जल्दी निकाल दें, उतना अच्छा हैं, क्योंकि अब बदलाव का समय चुका है।