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विश्व आदिवासी दिवस पर CM हेमन्त का बयान – हमें दुनिया को बताना होगा कि आदिवासियों को सिर्फ बोलना, गाना, नाचना ही नहीं आता, जब वह गुस्साता है तो उसके हाथों से तीर-धनुष भी चलते हैं

सभी आदिवासी समुदाय की संस्कृति एक जैसी है। आदिवासियों से मेरा आग्रह है कि वे अपने बच्चे- बच्चियों को शिक्षित जरूर करें। जब बच्चे शिक्षित होंगे तभी आदिवासी समुदाय उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ेगा। राज्य समन्वय समिति के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन आज विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर झारखंड आदिवासी महोत्सव 2023 के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि  “आदिवासी महोत्सव” पूरे उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। यह महोत्सव आदिवासी समुदाय की एकजुटता और आपसी भाईचारा को दर्शाता है। आने वाली पीढ़ी भी इसी तरह अपनी संस्कृति और सभ्यता से जुड़ी रहे, इसके लिए उन्हें प्रेरित करने की आवश्यकता है।

इस महोत्सव से आदिवासी जीवन दर्शन व लोक संस्कृति को एक विशिष्ट पहचान मिलेगी 

इस अवसर पर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने कहा कि आज विश्व आदिवासी दिवस है। इस अवसर पर दो दिवसीय झारखंड आदिवासी महोत्सव-2023 के उद्घाटन समारोह में शामिल होने का मौका मिला है। इस महोत्सव के अपने मायने हैं। इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न राज्यों से आये हुए आदिवासी समूह अपना नृत्य एवं गायन तो प्रस्तुत करेंगे ही, साथ ही आदिवासी समाज की समस्या एवं अन्य समसामयिक विषयों पर विमर्श का भी कार्यक्रम रखा गया है। इस महोत्सव से आदिवासी जीवन दर्शन और लोक संस्कृति को एक अलग और विशिष्ट पहचान मिलेगी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि नृत्य, संगीत के साथ-साथ सदैव संघर्ष आदिवासी समाज की मुख्य पहचान है। आज जब मैं आदिवासी महोत्सव के मंच से बोल रहा हूँ तो बिना झिझक कहना चाहूंगा कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में हमारे आदिवासी भाई-बहन प्रताड़ना झेलने को विवश हैं, अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं। क्या मध्य प्रदेश? क्या मणिपुर? क्या राजस्थान? क्या छत्तीसगढ़? क्या गुजरात? क्या तमिलनाडु? मणिपुर में हजारों घर जल कर तबाह हो गये हैं, सैकड़ों लोगों को मारा गया है, महिलाओं की इज्जत के साथ खिलवाड़ किया गया है।

दरअसल यह सदियों से चले आ रहे संघर्ष का ही विस्तार है। संघर्ष है वर्चस्ववादी ताकतों और समानता तथा भाईचारे की ताकतों के बीच। संघर्ष है धार्मिक कट्टरपंथियों और ‘जियो और जीने दो’ की उदार ताकतों के बीच। संघर्ष है भविष्यवादी, भाग्यवादी चिंतकों और वर्तमान को समृद्ध करने वाली शक्तियों के बीच। संघर्ष है प्रकृति पर कब्जा करने वाली विनाशकारी शक्तियों एवं प्रकृति का सहयोग -सहभोगी बन कर रहने वाली श्रमजीवी एवं साहसी शक्तियों के बीच।

मुख्यमंत्री ने कहा कि आज विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर मैं देश के 13 करोड़ से ज्यादा आदिवासियों भाइयों-बहनों से एक होकर लड़ने एवं बढ़ने का अपील करता हूँ। गोंड, मुंडा, भील, कुकी, मीणा, संथाल, असुर, उराँव, चेरो आदि सभी को एकजुट होकर सोचना होगा। आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हम जाति-धर्म-क्षेत्र के आधार पर बंटे हुए हैं। जबकि सबकी संस्कृति एक है। खून एक है, तो समाज भी एक होना चाहिए। हमारा लक्ष्य भी एक होना चाहिए। हमारी समस्या का बनावट लगभग एक जैसा है, तो हमारी लड़ाई भी एक होनी चाहिए।

देश में आदिवासी समुदाय विस्थापन का दर्द झेलने को विवश

मुख्यमंत्री ने कहा कि लगभग सभी हिस्सों में आदिवासी समाज को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ा है एवं केंद्र तथा राज्य में सरकार चाहे किन्हीं की हो आदिवासी समाज के दर्द को कम करने के लिए कभी समुचित प्रयास नहीं किये गये। हमारी व्यवस्था कितनी निर्दयी है ? कभी यह पता लगाने का काम भी नहीं किया कि कहाँ गए खदानों, डैमों, कारखानों के द्वारा विस्थापित किये गए लोग? खदानों/उद्योगों/ डैमों से विस्थापित हुए, बेघर हुए लोगों में से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। काट दिया गया लाखों लोगों को अपनी भाषा से, अपनी संस्कृति से, अपनी जड़ों से।

कल का किसान आज वहाँ साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है। बड़े-बड़े शहरों में जाकर बर्तन धोने, बच्चे पालने या ईंट भट्ठों में बंधुआ मजदूरी करने के लिए विवश किया गया है। बिना पुनर्वास किये एक्ट बनाकर लाखों एकड़ जमीन कोयला कम्पनियों को दिया गया। हमारा झरिया शहर बरसों से आग की भट्ठी पर तप रहा है लेकिन कोयला कम्पनियां एवं केंद्र कान में तेल डालकर सोयी हुई है ।

तथाकथित विकास ने सर्वाधिक चोट आदिवासियों को पहुंचाई

मुख्यमंत्री ने कहा कि आखिर इस विकास को आदिवासी समाज कैसे अपना मान सकता है? आखिर विकास की चपेट में किनकी जमीन गयी है? किनकी रोजी-रोटी छीनी गई है? किनकी भाषा खत्म हो रही है? किनकी संस्कृति खतरे में है? क्या इसका जायजा सत्ता को नहीं लेना चाहिए था? जो विकसित हुए हैं वे कौन हैं? तथाकथित मुख्यधारा के इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की है।

उन्होंने उनका इतिहास ही दर्ज नहीं किया और न ही देश के विकास में आदिवासियों के योगदान को चिन्हित किया गया। चाहे अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध हो या महाजनों के जुल्म के खिलाफ संघर्ष या फांसी पर लटकने की हिम्मत हो या अंतिम आदमी के रूप में लड़ते हुए मर जाने का साहस, इनमें अगुआई के बावजूद इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी।

उधर विकास कहर ढाता रहा, इधर आदिवासियों की भाषा विलुप्त होती चली गईं

मुख्यमंत्री ने कहा कि आज देश के विभिन्न हिस्सों में आदिवासियों की अनेक भाषाएँ गायब हो चुकी हैं या गायब होने के कगार पर है। आज हमारे जीवन को आस्था के केन्द्रों से बाँधने का प्रयास किया जा रहा है। लोग तो हमसे हमारा नाम तक छीनने में लगे हुए हैं। हम आदिवासी/मूल निवासी हैं पर विचित्र बात है! जिस समाज की कोई जाति नहीं उसे कोई ‘जनजाति’ कह रहा है तो कोई वनवासी कहकर एक ढंग से चिढ़ा रहा है।

आज जब आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के विरुद्ध बोलने का प्रयास कर रहा है तो उसे चुप कराने का प्रयास हो रहा है। भले ही आदिवासियों में अनेक क्रांतिकारी वीर, विद्वान्, चिन्तक हुए हैं, लेकिन समाज के मुख्य धारा के द्वारा हमेशा प्रयास किया गया है कि हमारी कोई औकात नहीं बन सके एवं नीति-निर्धारण में हमारी कोई भूमिका नहीं रह सके।

हम इतिहास के हर दौर में विशिष्ट उपस्थिति दर्ज कराते रहे पर हमें प्रमुख स्थान कहीं नहीं मिला

मुख्यमंत्री ने कहा कि जब हम आदिवासी संस्कृति, आदिवासी समाज के इतिहास को जानने का प्रयास करते हैं, तो 1800 ई. के पूर्व का ज्यादा जिक्र नहीं मिलता है। जब हमारे बारे में लिखना प्रारंभ किया गया तब भी हमें केवल क्रान्ति की श्रृंखला का नेतृत्वकर्ता मान लिया। हमें टुकड़ों में बाँट कर देखने का प्रयास हुआ। जबकि इतिहास के हर दौर में आदिवासी समाज अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करवाते रहा है।

हमारे पूर्वजों ने गणतंत्र की स्थापना की, राज्य निर्माण किया, लोक कल्याणकारी शासक वंशों की स्थापना की। इन परिस्थितियों में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस देश की सभ्यता-संस्कृति को गढ़ने में आदिवासी समाज के योगदान की पुनः व्याख्या की जाए। हमें आदिवासी समाज को आदिवासी विचारक, लेखक, विद्वान् की नजरों से देखने की जरूरत है।

यह सच है कि आज भी देश का सबसे गरीब, अशिक्षित, प्रताड़ित, विस्थापित एवं शोषित वर्ग, आदिवासी वर्ग है। परन्तु, यह भी सच है कि हम एक महान सभ्यता के वारिस हैं, हमारे पास विश्व एवं मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है। जरूरत है कि नीति निर्माताओं के पास दृष्टि हो ।

आदिवासियों के लिए अपनी जमीन-अपनी संस्कृति-अपनी भाषा आज भी महत्वपूर्ण

मुख्यमंत्री ने कहा, कि क्या यह दुर्भाग्य नहीं है कि जिस अलग भाषा-संस्कृति-धर्म के कारण हमें आदिवासी माना गया ,उसी विविधता को आज के नीति निर्माता मानने के लिए तैयार नहीं हैं? हम आदिवासियों के लिए अपनी जमीन-अपनी संस्कृति-अपनी भाषा बहुत महत्वपूर्ण है। आदिवासी समुदाय एक स्वाभिमानी समुदाय है, मेहनत करके खाने वाली समुदाय है, ये किसी से भीख नहीं मांगती है। हम भगवान बिरसा, एकलव्य, राणा पूंजा की समुदाय के हैं। हम इस देश के मूलवासी हैं । हमारे पूर्वजों ने ही जंगल बचाया, नदियां बचाई, पहाड़ बचाया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि इस महान आदिवासी संस्कृति को आदर की दृष्टि से देखने की जरूरत है | हमें सिर्फ जंगल में रहने वाले गरीब के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए | जंगल एवं मानव विकास की पूरी कहानी हमारे पूर्वजों के पास है। आज जरुरत है कि एक आम देशवासी के अन्दर आदिवासी समाज के प्रति संवेदना जगाई जाए। जरुरत है आम जन के अन्दर आदिवासी समाज के प्रति सम्मान एवं सहयोग की भावना पैदा करने की ।

विभिन्न आदिवासी समूहों के बीच परस्पर संवाद शुरू हो

मुख्यमंत्री ने कहा कि मेरी चाहत है कि विभिन्न आदिवासी समूहों के बीच परस्पर संवाद शुरू हो। आज जो हम विभाजित हैं, असंगठित हैं, यही कारण है कि मणिपुर के आदिवासी उत्पीड़न का विषय झारखण्ड के मुंडा लोगों का विषय नहीं बन पा रहा है। राजस्थान के मीणा भाई के दर्द को मध्य प्रदेश के भील अपना मान कर आगे नहीं आ रहे। किसी ने इसी स्थिति पर ठीक ही लिखा है –

‘जब लड़ाई अस्तित्व की हो,

वजूद की हो

तो सामने आना ही पड़ता है।

मिटकर भी

अगर कुछ बचाया जा सकने की उम्मीद हो,

तो कदम स्वयं आगे बढ़ाना पड़ता है ।’

उन्होंने कहा कि हमें यह सब को बताना होगा कि जिस आदिवासी का बोलना, गाना है एवं चलना नृत्य है, वह जब गुस्साता है तो उसकी जुबान नहीं, उसके तीर और धनुष लिए हाथ चलते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं उन सभी लोगों को धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने हमारे ऊपर विश्वास जताया है। आदिवासी मुख्यमंत्री होने के अपने मायने हैं। झारखण्ड ही नहीं देश के दूसरे हिस्से के आदिवासियों का भी जो प्यार मुझे मिलता है, जो उम्मीद मुझसे है उससे मैं भली-भांति परिचित हूँ। आइये हम अपनी एकजुटता को आगे बढ़ने का संकल्प लें।

आदिवासी समुदाय पर आधारित 35 पुस्तकों और डाक टिकट का हुआ लोकार्पण

इस अवसर पर टीआरआई की ओर से आदिवासी समुदाय पर आधारित 35 पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। वहीं, डाक विभाग द्वारा विश्व आदिवासी महोत्सव पर आयोजित हो रहे झारखंड आदिवासी महोत्सव के “लोगो” पर आधारित डाक टिकट का भी माननीय अतिथिगणों ने लोकार्पण किया। जो आकर्षण का केन्द्र बना।

इस महोत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में राज्य समन्वय समिति के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के मंत्री  चम्पाई सोरेन, विधायक विनोद सिंह, विधायक जय मंगल सिंह, विधायक राजेश कच्छप,  मुख्य सचिव सुखदेव सिंह, पुलिस महानिदेशक  अजय कुमार सिंह, प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का, मुख्यमंत्री के प्रधान सचि वंदना दादेल और मुख्यमंत्री के सचिव विनय कुमार चौबे समेत कई गण्यमान्य मौजूद रहे।