अपनी बात

…तो ऐसे में हम एडॉप्ट-ए-गवर्मेंट पॉलिसी लाकर केन्द्र सरकार को ही क्यों न बदल दे?

जब केन्द्र की मोदी सरकार ने बीते साल सितम्बर महीने में एडॉप्ट-ए-हेरिटेज स्कीम लॉन्च की थी और देश की 95 ऐतिहासिक इमारतों जैसे ताजमहल, कांगड़ा फोर्ट, कोणार्क का सूर्य मंदिर, सती घाट, कुतुब मीनार, हम्पी, अजंता गुफा आदि स्थलों को चिह्नित कर इसे निजी हाथों में देने का फैसला किया था, तभी क्लियर हो गया था कि आनेवाले समय में, हमारे ऐतिहासिक एवं गौरव के प्रतीक स्थल पूंजीपतियों के हाथों में चले जायेंगे और वे अपने अनुसार इसका दोहन-रक्षण करेंगे। फिलहाल एडॉप्ट-ए-हेरिटेज के इस स्कीम में दिल्ली का लाल किला डालमिया भारत ग्रुप को मिल चुका है।

अब डालमिया भारत ग्रुप ही पर्यटकों से शुल्क वसूलना प्रारंभ करेगी तथा लालकिले के अंदर होनेवाली गतिविधियों से इकट्ठे होनेवाले राजस्व से इस ऐतिहासिक इमारत का रख-रखाव करेगी, यानी अब लाल किले के पूरे रख-रखाव की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की न होकर डालमिया ग्रुप की हो गई। बताया जाता है कि डालमिया ग्रुप ने यह कांट्रेक्ट इंडिगो एयरलाइन्स और जीएमआर को पराजित कर हासिल किया है। डालमिया ग्रुप को लालकिला फिलहाल पांच वर्षों के लिए मिला है, और ये आगे बढ़ भी सकता है।

हालांकि लालकिला को डालमिया ग्रुप को देने के इस फैसले की प्रमुख विपक्षी दलों ने कड़ी आलोचना की है। जैसे कांग्रेस ने कहा है कि सरकार ऐतिहासिक इमारतों को उद्योगपतियों के हाथों में कैसे दे सकती है? अब सरकार किस प्रतिष्ठित स्थल को निजी कंपनी के हवाले करेगी? इसका जवाब देने के लिए संसद, सर्वोच्च न्यायालय या इनमें से सभी को चुनने का ऑप्शन है।

राजद नेता तेजस्वी यादव का कहना है कि मोदी सरकार बतायें कि इसे लाल किले का निजीकरण करना कहेंगे, या गिरवी रखना या बेचना। अब क्या देश का प्रधानमंत्री उस स्थल से स्वतंत्रता दिवस का भाषण करेगा? जो किसी निजी स्वामित्व या नियंत्रण में है।

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कल का दिन बेहद दुखद और काला दिन बता दिया। ममता बनर्जी ने बड़े दुखी मन से कहा कि क्या मोदी सरकार ऐतिहासिक लाल किला की भी देख-रेख नहीं कर सकती? क्या केन्द्र सरकार के पास इतनी भी क्षमता नहीं कि जहां स्वाधीनता दिवस पर लाल किला से देश के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं उस ऐतिहासिक स्थल का हम खुद बेहतर ढंग से रखरखाव कर सकें?

कुछ सवाल फिलहाल भारत की जनता के मन में भी उमड़-घुमड़ रहे हैं और केन्द्र सरकार को इसका जवाब भी देना चाहिए, जैसे –

  • जो सरकार दिल्ली में रहकर, दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतों को बेहतर बनाने तथा उनके रखरखाव में अक्षम हैं, वह भला देश को बेहतर स्थिति में कैसे रख सकती है?
  • जिस पार्टी की सरकार, दिल्ली में ही मात्र चार वर्षो के शासनकाल में शानदार तथा अत्याधुनिक प्रसाधनों से लैस अपने पार्टी कार्यालय का निर्माण कर लेती हैं, और उसकी बेहतर रख-रखाव के लिए वचनबद्ध ही नहीं, बल्कि उसका बेहतर रख-रखाव भी कर रही हैं, वहीं सरकार या वहीं पार्टी की क्या मजबूरी हो गई कि दिल्ली की लाल किला डालमिया ग्रुप के हाथों में दे दी?
  • जब देश की ऐतिहासिक, आध्यात्मिक व सांस्कृतिक इमारतों को जब यह सरकार बेहतर ढंग से रख पाने में असमर्थ है, तब हम कैसे समझ जाये कि इस केन्द्र सरकार के हाथों में अपना देश सुरक्षित है?
  • जब केन्द्र सरकार देश की ऐतिहासिक, आध्यात्मिक व सांस्कृतिक इमारतों की रख-रखाव करने में असमर्थ हैं और देश के पूंजीपतियों के हाथों में सौंपने की कवायद शुरु कर दी तो सरकार जल्द बताये कि आकाशवाणी और दूरदर्शन को कब निजी हाथों में सौंपने जा रही हैं क्योंकि आकाशवाणी और दूरदर्शन की भी स्थिति दयनीय है?
  • जब केन्द्र सरकार देश की ऐतिहासिक, आध्यात्मिक व सांस्कृतिक इमारतों की रख-रखाव करने में असमर्थ हैं, तब तो देश की विभिन्न शैक्षिक संस्थाओं की भी हालत खराब है, उन्हें कब देशी या विदेशी पूंजीपतियों के हाथों में दे देगी?

और जब देश में कृषि, सुरक्षा, विज्ञान, तकनीक, परिवहन, वित्त आदि विभागों की भी दयनीय स्थिति है, साथ ही देश की केन्द्र सरकार इसे ठीक करने में विफल हैं और एक-एक कर जब देशी या विदेशी पूंजीपतियों के हाथों में इन्हें देने का मन ही बना चुकी है, तो क्यों न हम सरकार को ही पूरी तरह बदल दें, क्योंकि ये सरकार भी ठीक ढंग से नहीं चल रही, और इसे देश का रख-रखाव, बेहतर ढंग से इसे आगे ले जाना नहीं जानती, तो ऐसे में हम एडॉप्ट-ए-गवर्मेंट पॉलिसी लाकर सरकार को ही क्यों न बदल दे, कैसा रहेगा?

इस देश का दुर्भाग्य देखिये, केन्द्र सरकार के इस गलत निर्णय का भी समर्थन करनेवालों की संख्या यहां बहुतायत है। जरा भाजपा के ही लोग दिल पर हाथ रखकर कहें कि अगर वे विपक्ष में होते, और कांग्रेस ऐसी योजना लाती तो क्या वे कांग्रेस का इस मुद्दे पर समर्थन करते? हर बात में केन्द्र सरकार का समर्थन तथा उनकी हर गलत बातों का आंख मूंदकर स्वीकार कर लेने की आदत, यकीन मानिये देश को रसातल में ले जायेगा?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अब कुछ भी कह लें, लेकिन लाल किला को निजी हाथों में देने के निर्णय ने देश की जनता के साथ एक बहुत बड़ा छल किया है। लाल किला क्या है? यह देश की स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े लोग जानते है, ये वे लोग जानते है, जिनका सपना था कि आजादी के बाद वे लाल किला पर राष्ट्रीय ध्वज फहरायेंगे। जिन्होंने कभी “दिल्ली चलो” का नारा दिया था। आज आप उन स्वतंत्रता सेनानियों से जरा जाकर पूछिये कि उनकी छाती कैसे छलनी हो गई? जब उन्हें अखबारों व चैनलों से ये जानकारी मिली कि लाल किला डालमिया का हो गया? जरा देश का सम्मान करना सीखिये? देश का सम्मान समझते है न, कि यह भी बताना होगा? कमाल है, देश के प्रधानमंत्री को अपना पार्टी कार्यालय बेहतर बनाना, बेहतर करना आता है, पर देश के ऐतिहासिक धरोहरों का रख-रखाव करना नहीं आता, कमाल यह भी है कि देश के 125 करोड़ देशवासियों पर ये गहरा दाग लगा कि वे अपने ऐतिहासिक धरोहरों को ठीक से रखने में अक्षम है, इसलिए ये ऐतिहासिक धरोहर अब देश के पूंजीपतियों के नाम से जाने जायेंगे।

One thought on “…तो ऐसे में हम एडॉप्ट-ए-गवर्मेंट पॉलिसी लाकर केन्द्र सरकार को ही क्यों न बदल दे?

  • Dr Ram Naresh sinha

    विपक्ष का कम ही है मोदी का विरोध करना विपक्ष एक ही मुद्दा पर मोदी के साथ है वह है संसदो का वेतन और भत्ता वृद्धि ।एतिहासिक स्थ्स्लो को बेचा नहीं गया है रख रखव के ली दिया गया है। आप सरकारी तंत्र को अच्छे से जनते है। corruption की सरी सीमायें लाँघ चुके है।

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