राजनीति

…तो क्या मान लिया जाय कि भाजपा में चमचई युग की शुरुआत हो चुकी हैं

आपको याद होगा कि कुछ दिन पहले ही धनबाद के मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल ने मुख्यमंत्री रघुवर दास की चमचई में धनबाद की एक सड़क का नाम मुख्यमंत्री रघुवर दास के नाम पर रखने का प्रस्ताव नगर निगम की बैठक में पारित करवा दिया था, जब आम जनता और विभिन्न दलों के नेताओं को इस बात की जानकारी मिली तो सभी ने इस फैसले की कड़ी निंदा की और इसे आला दर्जें का चमचई करार दिया, जिसे देखते हुए मुख्यमंत्री रघुवर दास ने धनबाद के मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल को ऐसा करने से मना किया और इस प्रकार धनबाद की एक सड़क रघुवर दास मार्ग बनने से रुक गई।

इधर एक बार फिर धनबाद में एक और चमचई देखने को मिली, जब भाजपाइयों ने धनबाद के भाजपा सांसद पशुपतिनाथ सिंह का अभिनन्दन समारोह आयोजित कर उनके संसदीय जीवन की उम्र 39 वर्ष बता दी, जबकि सच्चाई यह है कि वे मात्र तीन बार विधायक और दो बार ही सांसद रहे हैं, ऐसे में इनका 39 वर्ष संसदीय जीवन के कैसे पूरे हो गये? आश्चर्य लग रहा हैं।

अपने नेता को महान बताना, उनकी आरती उतारना, आजकल हर पार्टी के कार्यकर्ता कर रहे हैं, पर झूठ को सत्य के रुप में प्रतिष्ठित करना, ये भाजपा के लोग कब से सीख गये? समझ में नहीं आ रहा। आश्चर्य इस बात की है कि जब अभिनन्दन समारोह आयोजित हो रहा था, उस वक्त भी किसी ने यह नहीं कहा कि सांसद पशुपति नाथ सिंह का संसदीय जीवन अभी 39 वर्ष का नहीं हुआ हैं। सूत्र बताते है कि कभी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके इंदर सिंह नामधारी ने पशुपति नाथ सिंह को 1990 में भाजपा ज्वाइन कराया था, जिसका कड़ा विरोध उस वक्त के धनबाद के ही भाजपा के वरिष्ठ नेता निर्मल चटर्जी ने किया था, स्थिति ऐसी हुई कि इंदर सिंह नामधारी को भाजपा तक छोड़ना पड़ गया। उस वक्त पशुपतिनाथ सिंह पर निर्मल चटर्जी ने गंभीर आरोप लगाये थे, पर समरेश सिंह के कहने पर पशुपतिनाथ सिंह का भाजपा में पदार्पण इंदर सिंह नामधारी ने कराया था और उन्हें धनबाद विधानसभा सीट से भाजपा का टिकट मिल गया और वे लगातार यहां से जीत दर्ज करते रहे और फिलहाल सांसद है।

सूत्र बताते है कि भाजपा के सांसद पशुपति नाथ सिंह का संसदीय कैरियर 39 वर्ष बताना पूरी तरह से सफेद झूठ है, हां उनका सार्वजनिक जीवन को जोड़ दिया जाय तो ये 39 वर्ष हो सकता है, पर संसदीय जीवन बताना ये असत्य को महिमामंडित करने जैसा है। सूत्र ये भी बताते है कि अगर संसदीय परम्परा और मूल्यों की बात की जाये तो धनबाद के मासस नेता ए के राय, इनसे हर मामलों में बीस पड़ेंगे, पर वे इस प्रकार के कार्यक्रमों से स्वयं को दूर रखते हैं, ऐसे भी आजकल ए के राय जैसे नेताओं को संपूर्ण भारत में अकाल पड़ा हुआ हैं, उनके जैसे नेता अब विरले ही दिखाई पड़ते हैं, आज भी धनबाद की जनता जो प्यार ए के राय पर लूटाती है, वह प्यार किसी और अन्य नेताओं को यहां क्या, पूरे झारखण्ड या भारत में नसीब नहीं हैं।