“अरे तोड़े से भाई टूटे ना ये मोदी-शाह की जोड़ी”, 39वें साल में भी भाजपा का जादू सर चढ़कर बोल रहा

6  अप्रैल 1980, जब भारतीय जनता पार्टी का जन्म हुआ था तब किसी ने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन भारतीय जनता पार्टी अपने बलबूते पर केन्द्र में सरकार बनायेगी। शुरुआती दौर में जब भी चुनाव होते थे, तो राज्य की विधानसभा चुनावों से लेकर केन्द्र के लिए लोकसभा के चुनावों तक भाजपा को निराशा हाथ लगती थी। कई राज्यों में तो उसे तीसरे स्थान पर उसे संतोष करना पड़ता था और भाजपा को लोग पिछलग्लू पार्टी से ज्यादा कुछ नहीं समझते थे, पर आज ऐसी स्थिति नहीं हैं। आज भाजपा केन्द्र में बहुमत की सरकार बना चुकी है, आज भाजपा भारत के 21 राज्यों तक पहुंच चुकी है, आज भाजपा ऐसी स्थिति में है कि उसके आगे-पीछे कोई पार्टी भारत में नजर नहीं आ रही। आज भाजपा “एक भारत श्रेष्ठ भारत”, “सबका साथ-सबका विकास”, “सशक्त भाजपा – सशक्त भारत” के नारों के साथ ज्यादातर भारतीयों के दिलों की धड़कन बन चुकी है। आज पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक उसकी धाक है, आज हर जगह और हर विपक्षी पार्टियां उसे अपना प्रतिद्वंदी मानती है।

याद करिये, जब मुंबई में भारतीय जनता पार्टी का उदय हो रहा था और अटल बिहारी वाजपेयी इसके प्रथम अध्यक्ष बने, तब उन्होंने अपने संबोधन के क्रम में यहीं कहा था – अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा। लीजिये अंधेरा छंट चुका है, क्योंकि लोगों ने भाजपा को स्वीकार किया है, उसके उपर सांप्रदायिक पार्टी को जो लेवल लगा था, उसे जनता ने उतार फेंका है। सूरज निकलेगा – सूरज निकल चुका है, अरुणाचल प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र-गुजरात तक और इधर जम्मूकश्मीर से लेकर केरल तक उसकी तू-ती बोल रही है। कमल खिलेगा – कमल खिलने का ही परिणाम है, कि भाजपा यत्र-तत्र-सर्वत्र है।

आखिर भाजपा इतनी मजबूत कैसे हुई? आखिर भाजपा को किसने मजबूत किया? उस पर आज चर्चा करना जरुरी है। भाजपा दरअसल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक इकाई है। आज भी भाजपा के प्रदेश व राष्ट्रीय कार्यालयों में जाये तो आप पायेंगे कि संघ का एक व्यक्ति पार्टी का संगठन मंत्री होता है, जो पूरी पार्टी पर नजर रखता है। जो सीधे संघ से जुड़ा होता है, और वह पार्टी तथा राज्य की अद्यतन स्थिति की जानकारी अपने उपर के अधिकारियों को देते रहता है।

अपने 38 साल में भाजपा ने तीन युगों को देखा है। एक अटल युग, दूसरा आडवाणी युग और तीसरा मोदी युग। अटल युग में भाजपा ने गांधीवादी समाजवाद को अपनाया, जिसमें भाजपा को निराशा ही हाथ लगी, इस दौरान जब राज्यों के लिए हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को निराशा हाथ लगती तो भाजपा से जुड़े कार्यकर्ता और नेता यहीं कहा करते कि जब गांधीवादी समाजवाद पर ही पार्टी को चलना है, तो जनता के पास गांधीवादी समाजवाद के रुप में कई विकल्प है, जनता को जो विकल्प अच्छा लगेगा, जनता अपनायेगी। ऐसे में भाजपा अगर सिमटती जा रही है, तो इसके लिए भाजपा की नीतियां दोषी है, न कि अन्य दलों में इतनी ताकत की भाजपा को रोक लें। जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई और 1984 में लोकसभा के चुनाव हुए तो सहानुभूति लहर में भाजपा दो सीटों के साथ ऐसा जनता द्वारा दूर फेंक दी गई, कि जैसे लगा कि अब भाजपा कभी खड़ी नहीं हो पायेगी पर विश्व हिन्दू परिषद के राम आंदोलन को उसका मिला सहयोग और लालकृष्ण आडवाणी द्वारा निकाली गई रामरथ यात्रा ने भाजपा को एक अलग पहचान दिलाई, और भाजपा देखते-देखते कई राज्यों में शानदार ढंग से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

ये वह वक्त था, जब लाल कृष्ण आडवाणी की जादू से सारा भारत भाजपा को नई दृष्टि से देख रहा था। लालकृष्ण आडवाणी की शुरु हुई सोमनाथ से अयोध्या की यात्रा, हालांकि बिहार के समस्तीपुर में ही, लालू प्रसाद यादव द्वारा रोक लिये जाने के कारण समाप्त हो गई, पर लाल कृष्ण आडवाणी उस वक्त तक महानायक बन चुके थे, और उन्हें सुनने के लिए लोग बड़ी संख्या में जुटने लगे थे, भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी के बाद वे एकमात्र सर्वमान्य नेता हो गये थे, जिनको देखने और सुनने के लिए लोग निकलने लगे थे और यहीं से एक नया नारा प्रारंभ हुआ। अटल-आडवाणी, कमल निशान, मांग रहा है हिन्दुस्तान।

इसी बीच धीरे-धीरे कांग्रेस कमजोर होती गई, नये और छोटे-छोटे दलों का प्रार्दुभाव हुआ, एक नई राजनीतिक घटनाक्रम के तहत गठबंधन सरकार का दौर चला और इसी बीच 13 दिन की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार दिल्ली में बनी। पहली बार देश की जनता विश्वासमत पर अपने नेताओं के भाषण दूरदर्शन के माध्यम से देख रही थी, इसी दौरान 13 दिन की सरकार में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का ऐतिहासिक भाषण देश की जनता को सुनने मिला और शायद उसी दिन जनता ने संकल्प लिया कि जब भी कभी चुनाव होंगे, वो अपना विश्वास अटल बिहारी वाजपेयी पर व्यक्त करेंगी और लीजिये जब उसके बाद लोकसभा के चुनाव हुए तो लगातार भारत की जनता ने दो-दो बार अटल बिहारी वाजपेयी पर अपना विश्वास व्यक्त किया और इस प्रकार देश की सर्वाधिक अछूत मानी जानेवाली भाजपा को लोगों ने माथे बिठाया, और उस पार्टी का पहला नेता अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित कर रहा था, यानी जिस नेता ने मुंबई में भाजपा के जन्म दिन पर ये बात कहीं थी, कि अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा। वह अपनी ही भविष्यवाणी को साकार होता देख रहा था। जो ऐसा कम ही देखने को मिलता है।

इसी बीच 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सत्ता चली गई। पूर्णरुपेण लाल कृष्ण आडवाणी का युग था। सच पूछा जाये तो भाजपा का जब भी कोई इतिहास लिखेगा तो उसमें लाल कृष्ण आडवाणी की भूमिका वाजपेयी से भी उपर होगी। अटल बिहारी वाजपेयी के समय जो भाजपा दो सीटों पर थी, उसे 86 पर लाना और उसके बाद देखते ही देखते सत्ता के शिखर पर पार्टी को पहुंचा देना और फिर यह कहना कि उनके नेता अटल बिहारी वाजपेयी होंगे, ये सिर्फ लाल कृष्ण आडवाणी ही कर सकते है। दूसरी ओर हवाला का आरोप लगने के बाद, ये संकल्प लेना कि जब तक हम हवाला के आरोप से मुक्त नहीं हो जायेंगे, चुनाव नहीं लड़ेंगे, ऐसी राजनीतिक शुचिता व शुद्धता दिखाकर आडवाणी ने प्रमाणित किया कि उनका जवाब नहीं, ये अलग बात है कि पाकिस्तान जाकर मो. अली जिन्ना के मजार पर जिन्ना की तारीफ में बात करने से पार्टी के कुछ नेताओं और संघ के लोगों के बुरा लगने पर उन्हें राजनीतिक नुकसान झेलना पड़ा, पर सच्चाई यह भी है कि आडवाणी ने खुद द्वारा लगाये गये, सिंचित किये गये राजनीतिक पौधे भाजपा को कभी भी नुकसान नहीं पहुंचाया, जबकि और दलों में ऐसा होने पर तो कई दल ही पनप जाते हैं।

इधर कांग्रेस के दस सालों के शासन बाद, देश में व्याप्त भ्रष्टाचार और निरंतर नरेन्द्र मोदी पर गुजरात दंगों को लेकर होते प्रहार ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार तक पहुंचा दिया और नरेन्द्र मोदी के साथ मिली उनकी अमित शाह की जोड़ी ने भाजपा के पहिये को इस प्रकार सरपट दौड़ाया कि उसकी सरपट दौड़ में उड़नेवाले धूल ने अन्य दलों को कहां उड़ा दिया, पता ही नहीं चल पा रहा। मोदी और शाह की जोड़ी ने भाजपा को एक नई कीर्तिमान पर लाकर खड़ा कर दिया, जहां दूर-दूर तक कोई नहीं दीख रहा। जहां कांग्रेस राज्यों में अपनी सरकार बनाने के लिए एक-एक सीट के लिए तरस रही है, वहीं भाजपा पहली बार केन्द्र में राज्यसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर गई और कांग्रेस को बहुत पीछे छोड़ दिया।

स्थिति ऐसी है कि जम्मू कश्मीर के फारुक अब्दुल्ला हो या बिहार के नीतीश कुमार, वे स्वीकारते हैं कि 2019 में भी केन्द्र में भाजपा गठबंधन की ही सरकार आयेगी। बंगाल में भी भाजपा के आगमन की छटपटाहट ने ममता बनर्जी की नींद उड़ा दी है, वो भाजपा को हराने के लिए, तथा अपने निष्कटंक राज्य पाने के लिए फेडरल पार्टी के गठन तक की बात कर रही है, पर दूर –दूर तक उन्हें सफलता नहीं मिल रही, ऐसे में स्पष्ट है कि अपने 38वें साल में भाजपा अपने पूर्ण यौवन में आकर, वहीं कर रही है, जो एक युवा करता है, फिलहाल भाजपा के मोदी और शाह की जोड़ी तो लगता है कि फिल्म “धरमवीर” की जोड़ी हो गई है और शायद यह गाना गा रही है कि “सात अजूबे इस दुनिया में आठवी अपनी जोड़ी, अरे तोड़े से भाई टूटे ना ये अमित-शाह की जोड़ी।”