खबरदार छोटे- मझौले पत्रकारों, किसी BJP MLA से मत टकराना, नहीं तो नंगे कर दिये जाओगे

घटना दो अप्रैल, मध्यप्रदेश के सीधी जिले की है। बताया जाता है कि जब कई रंगकर्मी और आरटीआइ एक्टिविस्ट एक रंगकर्मी नीरज कुंदेर की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे थे, तभी एक पत्रकार और उसके कैमरामैन को इस बात की जानकारी मिली, फिर क्या था, समाचार संकलन करने के लिए दोंनों उस जगह पहुंच गये, जहां प्रदर्शन हो रहा था। इतने में सीधी पुलिस पत्रकार समेत सभी को गिरफ्तार कर कोतवाली थाने ले आई। थाने में सभी के कपड़े उतरवाए और नग्न अवस्था में थाने में परेड करा दी।

बताया जा रहा है कि उक्त पत्रकार की स्थानीय भाजपा विधायक से कुछ बातों को लेकर पूर्व से खुन्नस थी, इसी खुन्नस को लेकर, उसके इशारे पर स्थानीय पुलिस ने उक्त पत्रकार को हिरासत में लिया, उसे नंगा किया और मारपीट भी की। अब सवाल उठता है कि कही कोई प्रदर्शन करेगा, तो पुलिस गिरफ्तार कर सकती हैं, उसे भादवि की धारा के तहत कानूनन सजा दिला सकती हैं, ये क्या?

उसे कानून हाथ में लेने का अधिकार किसने दिया, किसी को नंगा करने का अधिकार उसे किसने दिया? उसे थाने में नंगाकर परेड कराने का अधिकार किसने दिया? इन दिनों देखा जा रहा है कि आजकल जो नेता विधायक बन रहे हैं, या जिनका शासन जिस राज्य में चल रहा हैं, उन्होंने मान लिया है कि वे कुछ भी कर सकते हैं, पुलिस उनके इशारों पर नाचेगी, और वो जो चाहे, कुछ भी कर लेंगे। उसकी बानगी मध्य प्रदेश में देखने को मिली।

पर सच्चाई है कि पुलिस कही की भी हो, उसकी ताकत कमजोरों पर ही चलती हैं, उसने नंगा किसे किया तो एक साधारण पत्रकार को, अगर उसके सामने कोई संपादक या अखबार/चैनल का मालिक रहता तो क्या उसे इसी प्रकार नंगा कर सकता था? क्या मध्यप्रदेश में जितने भी अखबारों/चैनलों/पोर्टलों के संपादक या प्रबंधक हैं, वे दूध के धुले हैं? क्या प्रदर्शन मामलों में सभी के साथ ऐसा ही दुर्व्यवहार किया जाता है? तो फिर सामान्य पत्रकारों के साथ ऐसा क्यों?

जब से इस मामले की वीडियो वायरल हुई हैं, उस वीडियो वायरल के लोग अपने-अपने मायने निकाल रहे हैं, कुछ तो पत्रकारों के हालत पर व्यंग्य कर रहे हैं, कुछ बता रहे है कि पत्रकारों की औकात यहीं हो गई हैं और सारा पत्रकार समाज किंकर्तव्यविमूढ़ होकर तमाशा देख रहा हैं, जबकि इस पूरे प्रकरण पर पत्रकार, रंगकर्मी, आरटीआइ एक्टिविस्ट को एक होकर खड़ा हो जाना चाहिए और इसका जमकर विरोध होना चाहिए, नहीं तो सीधी कोतवाली से चली ये हवा कहां-कहां किस रुप में आयेगी, कहना मुश्किल है।

रही बात रांची के पत्रकारों की, अगर वे यह सोचते है कि ये तो मामला मध्यप्रदेश की हैं तो नादानों समझ लो, कोई मामला कही का नहीं होता, जिस दिन किसी नेता का मूड यहां बदला, तुम्हारी औकात भी यही होगी, इसलिए खुद को संभालों और इस मुद्दे पर अपनी लंगोट कसो, कहो मध्यप्रदेश की ये घटना निन्दनीय है।

सरकार ऐसे पुलिसकर्मियों के साथ भादवि की सुसंगत धाराओं के साथ सजा दिलवायें, पर आप ऐसा करोगे, इसकी संभावना हमें कल भी नहीं थी, और आज भी नहीं, आप तो बड़े-बड़े लोगों के लिए आंदोलन करते हो, याद है रिपब्लिक टीवी के संपादक के लिए रांची की सड़कों पर दौड़ गये थे, पर सामान्य पत्रकारों के लिए कब दौड़े, जरा बताना…