ट्विट के माध्यम से गुस्सा रहे बाबूलाल को भी स्वीकारना होगा कि भाजपा शासनकाल में भी पत्रकारों को झूठे मुकदमें में फंसा, शोषण किया गया

झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री व वर्तमान में भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी गुस्से में हैं। वे जमकर ट्विटर के माध्यम से अपनी भड़ास निकाल रहे हैं और हेमन्त सरकार को कटघरे में रखने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे भी एक जिम्मेदार विपक्ष का काम है कि सरकार की गलत नीतियों का विरोध करना तथा इसको लेकर राज्य की जनता को गोलबंद करना, जिसमें वे जी-जान से लगे हुए हैं। अब सबसे पहले उनके आज का ये ट्विट देखिये, वे क्या लिखते हैं –

‘मेरा मानना है कि समाचार माध्यमों का विज्ञापन रोकने-बढ़ाने, पत्रकारों को डराने, धमकाने, प्रताड़ित करने, केस मुक़दमे में फँसाने के दम पर लोकतंत्र के प्रहरियों को क़ाबू में करने का प्रयास सदैव आत्मघाती साबित हुआ है। आदरणीया इंदिरा गांधी को भी यह दाव उल्टा पड़ा था। विनाशकाले….’

अब इसी ट्विट पर विद्रोही24 का सवाल बाबूलाल मरांडी से हैं। ठीक इसी प्रकार का काम तो राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने किया था, जिसमें सहयोग उस वक्त के उनके आगे-पीछे चलनेवाले कनफूंकवों ने किया था, साथ ही उस वक्त डीआईजी स्तर के एक अधिकारी ने भी इसमें मुख्य भूमिका निभाई थी। उस वक्त का रांची में पदस्थापित एसएसपी हमारे सामने धुर्वा के तत्कालीन थाना प्रभारी तालकेश्वर राम को बोला कि ये झूठा केस हैं, इसे फाल्स करो, पर क्या आप बता सकते है कि किसके कहने पर वो केस जानबूझकर ट्रू कर दिया गया।

वो कौन था सीएमओ में बैठा उस वक्त आदमी जो रांची के सभी प्रमुख समाचार पत्रों को फोन कर-करके बोला था कि इस समाचार को नमक-मिर्च डालकर प्रमुखता से छापो, जिसमें दो अखबारों ने बड़ी रुचि दिखाई। प्रथम था – दैनिक जागरण और दूसरा था – दैनिक भास्कर। जिसने उक्त पत्रकार का पक्ष भी नहीं सुना और जो मन में किया, इज्जत लूटने के उद्देश्य से गलत समाचार छाप दिया, ऐसे तो इस समाचार को प्रभात खबर और हिन्दुस्तान ने भी उसके कहने पर समाचार छापी, पर ये दोनों मर्यादा में रहकर छापे, ये बेचारे करते क्या, विज्ञापन का सवाल था, सीएमओ से फोन जो आया था।

मतलब भाजपा का मुख्यमंत्री और उसके आगे-पीछे चलनेवाले लोग झूठा मुकदमा कर किसी पत्रकार को फंसवा दें तो वो जायज हैं और हेमन्त सोरेन के कार्यकाल में ऐसी घटना हो तो हेमन्त सोरेन को खूब खरी-खोटी सुनाओ। ये  कैसी आपकी सोच है? अरे आप जरा पूछिये न, अपने प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश से, सांसद संजय सेठ से, विधायक सीपी सिंह से कि वो पत्रकार कौन हैं और माजरा क्या है?

जिसने केस किया वो तो आज भी ठाठ से मस्ती कर रहा है और जिसने करवाया वो मूंछ ऐठ रहा हैं। आपको दरअसल इस मुद्दे पर बोलने का अधिकार ही नहीं हैं, क्योंकि इस कुकर्म में भाजपा के लोग भी उतने ही शामिल हैं, जितने अन्य। झामुमो तो इस मामले में आपलोगों से कही बेहतर है और अब बाबूलाल मरांडी की अन्य ट्विटों पर ध्यान दें…

‘1. जिस राज्य में हज़ारों केस डीएसपी के सुपरवीजन की प्रतीक्षा में थानों में महीनों/सालों पड़े हैं वहाँ साहिबगंज का एक डीएसपी हेमंत सोरेन जी के प्रतिनिधि “साहिबगंज के सुपर मुख्यमंत्री” पंकज मिश्रा को केस से बचाने के लिये 24 घंटे के भीतर सुपरवीजन कर लेता है।’

‘2. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जी, क्या आप अब भी ऐसे अफसरों पर कार्रवाई नहीं करेंगे? गृह मंत्री की हैसियत से पुलिस की ऐसी अराजकता को रोकने की ज़िम्मेदारी से आप कैसे बच सकते हैं? अब भी चेतिये, खुद को बचाने के लिये ही सही, कुछ कीजिये वर्ना ऐसे सारे काले कारनामों की सजा आपको भी मिलेगी।’

 

‘3. मुख्यमंत्री के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा और मंत्री आलमगीर आलम पर 22 जून 2020 को केस हुआ, अगले दिन दोनों को पुलिस ने क्लीनचिट दे दी। झारखंड में दस दस साल से अनुसंधान लटकाए रखने वाले काबिल पुलिस अफसर काश इतनी ही तेजी से आम लोगों से जुड़े केस में भी अनुसंधान करते?’

‘4. कुछ बेईमान-लूटेरे पुलिसवालों को हंसेड़ी बनाकर गंध मचाने वाले अपने गुर्गे को बचाने और विरोध में आवाज़ उठाने वालों लोगों को फँसाने की ऐसी ही जल्दबाजी एक दिन आपके गले की फाँस बनेगी हेमंत सोरेन जी। मेरी इस बात को डायरी में नोट कर रख लीजियेगा।ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ सबक़ लेगी।’

ये चारों ट्विट में गंभीरताएं हो सकती हैं, पर सवाल यहीं है कि यहीं गंभीरता उस वक्त कहां चली जाती हैं, जब भाजपा का शासन चल रहा होता है। खुद जब रघुवर दास का शासनकाल था, तब स्वयं उस वक्त विपक्ष में रहे बाबू लाल मरांडी ने कई सवाल उठाएं थे, उन सवालों का क्या हुआ? आखिर सरयू राय ही बार-बार सवाल क्यों उठाते है कि ये सारी की सारी गड़बड़ियां तो रघुवर दास के शासनकाल से शुरु हुई, उन्हें ईडी पूछताछ के लिए क्यों नहीं बुला रही या खुद भाजपा के ही शीर्षस्थ और प्रदेश के नेता अपने नेता से क्यों नहीं पूछते कि आपके भी तो मधुर संबंध प्रेम प्रकाश जैसे लोगों से थे, पर यहां तो ऐसे लोगों को गुजरात चुनाव में लगाया गया है, उन्हें प्रमोशन देकर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया है।

ये तो वहीं बात हुई। आप करें तो रासलीला और दूसरा करें तो अपराधी। भाई ये बात कुछ हजम नहीं हुई। भाजपा के प्रदेश और शीर्षस्थ नेताओं को ये स्वीकारना ही होगा कि दिसम्बर 2019 के पूर्व भी भारी गड़बड़ियां हुई, उस वक्त भी पत्रकारों पर झूठे मुकदमे कराकर उनकी जिंदगी तबाह करने की कोशिश हुई, वे झूठे मुकदमें आज भी चल रहे हैं, पर उन भाजपा नेताओं और उस पूर्व मुख्यमंत्री को शर्म कहा, जिनके शासनकाल में उनके कनफूंकवों ने तबाही मचाई, हाथी उड़ाए, वे तो सोचते है कि उन्होंने जो कुकर्म किया, वो उनका राजधर्म था।