विधानसभा में फूटा 1932 का एटम बम, रांची से दिल्ली तक सुनाई दी इसकी गूंज, अकेले सभी दलों के नेताओं के टेटूएं दबा दिये CM हेमन्त ने

झारखण्ड के राज्यपाल रमेश बैस ने पिछले दिनों छतीसगढ़ में किसी चैनल को कहा था कि झारखण्ड में पटाखों पर कोई प्रतिबंध नही हैं, अब हो सकता है कि कही एकाध एटम बम फूट जाए। बेचारे राज्यपाल, जिनको खुश करने के लिए ये बयान दिये थे, वे कितने खुश हुए होंगे या हुए हैं, वे जाने, पर आज झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने ऐसा एटम बम फोड़ा हैं, जिसकी गूंज रांची से दिल्ली तक सुनाई दे रही हैं। हेमन्त सोरेन के इस एटम बम की गूंज से कई राजनीतिक दलों के बड़े-बड़े नेताओं के कान के चदरे या तो फट गये या कान झनझना गये हैं, क्योंकि हेमन्त सोरेन के द्वारा किया गया धमाका है ही ऐसा।

यह धमाका है -1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति का तथा नियुक्ति और सेवाओं में आरक्षण वृद्धि का, जिसे राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने विधानसभा से पारित करवा कर, इसे केन्द्र के पाले में कर दिया कि केन्द्र अब इसे नौंवी अनुसूची में डालें, ताकि इसे कोई न्यायालय में चुनौती न दे सकें और राज्य की जनता द्वारा की गई इस चिरपरिचित मांगों को पूरा किया जा सकें।

हालांकि आज जो झारखण्ड विधानसभा में हुआ, उसमें कुछ भी खास नहीं था, क्योंकि कोई गोपनीयता नहीं थी, सभी जानते थे कि आज होना क्या है? हुआ भी वहीं, अकेले हेमन्त दहाड़ रहे थे और विपक्ष के पास इस मुद्दे पर बोलने के लिए कुछ नहीं था, विपक्ष जानता था कि इस पर कुछ भी बोलना खतरे से खाली नहीं, क्योंकि अगर इसका विरोध करते हैं, तो आदिवासी मूलवासी नाराज और इसका समर्थन करते हैं, तो बाहरी नाराज। ऐसे में बेचारे भाजपा-आजसू की क्या औकात?

सदन में सब की हेकड़ी बंद, ‘हेमन्त शरणं गच्छामि’ खूब चला

औकात तो बिहारियों की अस्मिता की बात करनेवाली राष्ट्रीय जनता दल और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की भी नहीं थी, एक पंक्ति में कहें तो अकेले हेमन्त सोरेन ने भाजपा, आजसू, राजद, कांग्रेस तथा सभी वामपंथियों के बड़े-बड़े नेताओं और उनके छुटभैयों का अकेले टेटुआं दबा दिया था, इन सारे नेताओं के पास ‘हेमन्त शरणम् गच्छामि’ छोड़कर दूसरा कोई मूल-मंत्र याद नहीं आ रहा था।

हालांकि जो बिहार या अन्य राज्यों से आकर झारखण्ड में बसनेवाले नेता, आईएएस, आईपीएस व बड़े-बड़े व्यापारी वर्गों को इस 1932 के खतियान लागू होने से न तो कोई कल घाटा हुआ था, न आज घाटा होगा और न भविष्य में घाटा होना हैं, क्योंकि नेता का बेटा, नेता ही बनेगा, मतलब विधायक/सांसद का बेटा क्या नौकरी करने के लिए पैदा होता है?

क्या कभी किसी आईएएस या आईपीएस के बेटे/बेटियों को तृतीय या चतुर्थ नौकरी पाने की लालसा पाले देखी हैं, भला उन्होंने अपनी जिंदगी में जो भी माल कमाया, वो अपने बेटे/बेटियों को थर्ड व फोर्थ ग्रेड की नौकरी करने के लिए, वो भी झारखण्ड में नौकरी करने के लिए लगाया था क्या? भाई उनके बेटे/बेटियों के लिए तो किसी भी संस्थान में पचास लाख या इससे भी उपर की राशि के वार्षिक पैकेज की नौकरी हाथों-हाथ मिल जायेगा।

रही बात व्यापारियों की, तो जहां व्यापारियों के साथ राज्यपाल को सिनेमा देखने में आनन्द आता हैं, वो भी ऐसे व्यापारी जिसको आज ईडी टार्च लेकर खोजती हैं, वहां का व्यापारी इतना कृतघ्न तो नहीं कि वो अपने बेटे-बेटियों को तृतीय/फोर्थ ग्रेड की नौकरी के लिए 1932 के खतियान की ओर नजर दौड़ायेगा।

दया के पात्र बन गये झारखण्ड में 1932 के बाद वाले

आखिर इस 1932 के इस खतियान के लागू होने से सर्वाधिक मार किस पर पड़ेगी, जो 1932 के बाद से झारखण्ड में रहते रहे हैं। जिनका झारखण्ड छोड़कर दूसरे जगह कोई निवास स्थान ही नहीं। जो मूल रुप से गरीब है। जो मध्यमवर्गीय परिवार से जुड़े है। जिनके घर में न तो कोई नेता पैदा हो सकता है, न कोई आईएएस और न कोई आईपीएस और न ही व्यापारिक जगत् में वर्चस्व ही हैं, ले-देकर वे झारखण्ड में सरकारी नौकरियों और अन्य लाभों से वंचित हो गये।

वे ईश्वर की दया के पात्र हो गये, ईश्वर ने कृपा कर दी तो नेता या आईएएस/आईपीएस या व्यापार में धमक पैदा कर दी तो जीवन सफल नहीं तो भूंजा बेचते रहिये, लिट्टी-घी का दुकान खोलते रहिये और बाबा साहेब अम्बेडकर की जय-जय करते रहिये, क्योंकि संविधान तो उन्होंने ही बनाया है, संविधान के इस भूत से जब तक जीवन हैं डरते रहिये।

अंत में बधाई, समस्त झारखण्ड के आदिवासियों-मूलवासियों को, क्योंकि झारखण्ड तो आप लोगों के लिए ही बना था, 1932 के खतियानधारियों के लिए ही बना था, आपका हक भी बनता हैं, आपने बहुत लड़ा हैं झारखण्ड के लिए, इसलिए आज झारखण्ड बना तो भूंजा बेचनेवाले, टायर साटकर साइकिल-टेम्पू बनानेवालों को उनको जीने का ही हक आपने दे दिया, ये क्या कम है। बस आप इन पर दया बनाये रखिये, ताकि बेचारे अपने घर में रहकर आपकी सेवा करते रहे।

मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने इस अवसर पर ठीक ही कहा है कि पूरे झारखंड के लिए आज का दिन विशेष और ऐतिहासिक है। झारखंड विधान सभा से झारखंडवासियों की आत्मा और अस्मिता से जुड़े 1932 खतियान आधारित स्थानीयता और नियुक्ति तथा सेवाओं में आरक्षण वृद्धि का विधेयक पारित हो चुका है। आज पूरा झारखंड जश्न और खुशियां मना रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी सरकार ने जनता से जो वादा किया था, उसे निभाने का काम किया है।

अब केंद्र सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह झारखंड की भावनाओं के अनुरूप संवैधानिक प्रावधानों के तहत 1932 खतियान आधारित स्थानीयता और नियुक्ति तथा सेवाओं में आरक्षण वृद्धि से संबंधित विधेयक को नौवीं अनुसूची में डालने की पहल करें, ताकि झारखंडवासियों को उनका मान -सम्मान और अधिकार मिल सके। मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर जरूर हुई तो पूरी सरकार दिल्ली में भी इसके लिए अपनी पूरी ताकत लगाने से पीछे नहीं हटेगी।

बाबू लाल मरांडी ने किया तंज, हेमन्त ने माना जेल जाना तय

इधर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी का एक ट्विट नजर आया है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को यह तो एहसास हुआ की अब उनका जेल जाना तय है। भ्रष्टाचारों को छिपाने के लिए निरन्तर उनकी अनर्गल बयानबाजी भी उनका ढाल न बन सकी। मुख्यमंत्री जी 17 नवम्बर को ईडी के समक्ष जाइये। सच बोलिये और न्यायिक संस्थाओं का सम्मान कर निर्णय को सहर्ष स्वीकार कीजिये।

CM हेमन्त का जवाब – हम जेल में रहकर भी सत्ता में आयेंगे

इस ट्विट का जवाब भी सदन में हेमन्त सोरेन ने बहुत बढ़िया से सदन में दिया कि आप कुछ भी कीजिये, हम जेल में भी रहकर सत्ता हासिल करेंगे, लेकिन आप अब कही दिखाई नहीं देंगे। इस बात में दम भी हैं। हेमन्त सोरेन ने 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति को पारित करवाने के बाद राजनीतिक मैदान में सभी दलों पर इतनी बढ़त बना ली हैं कि हेमन्त सोरेन को छू पाना फिलहाल संभव नहीं। आज की स्थिति यह है कि सारे के सारे राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दलों के स्थानीय नेता हेमन्त सोरेन के आगे पानी भरते हुए नजर आ रहे हैं।

जब मंडल आयोग लागू हो सकता है तो 1932 का खतियान क्यों नहीं

राजनीतिक पंडितों की मानें तो 1932 का खतियान झारखण्ड में ऐसा हथियार है कि इससे राज्य के युवाओं को भले ही फायदा मिले अथवा न मिले, पर उन्हें लगता है कि 1932 के खतियान से ही पूरे झारखण्ड पर कब्जा हो जायेगा, बाहरी लोगों यहां श्रीहीन हो जायेंगे और वे श्रीयुक्त हो जायेंगे, पर सच्चाई यह है कि पूरा देश बहुत तेजी से बदल रहा हैं, कई राज्य काफी आगे निकल चुके हैं।

कर्नाटक की राजधानी बंगलुरु में तो वहां के मूलवासियों की संख्या 50 प्रतिशत से भी कम हैं, पर वहां कभी भी इस प्रकार की बाहरी-भीतरी लड़ाई देखने को नहीं मिली, वहीं कभी संयुक्त आंध्र प्रदेश की राजधानी रही हैदराबाद में भी बड़ी संख्या में बाहर के लोग रह रहे हैं पर वहां भी बाहरी-भीतरी की बात कभी सामने नहीं आई, पर झारखण्ड ने जब से जन्म लिया, तभी से बाहरी-भीतरी शुरु हैं। अब आशा की जानी चाहिए कि बाहरी-भीतरी की लड़ाई बंद हो जायेगी।

केन्द्र को भी चाहिए कि इस मुद्दे पर एक्शन लें और इसे नौवीं अनुसूची में डालकर झारखण्ड के आदिवासियों-मूलवासियों को उनका हक दे दें, क्योंकि लोकतंत्र में तो जीत का सेहरा उसी को मिलता हैं, जिसे सर्वाधिक वोट मिलता हैं, भले ही उसके प्रतिद्वदियों को कुल मिलाकर जीते हुए प्रत्याशी से ज्यादा ही वोट क्यों न मिले हो। ऐसे में बाबा साहेब अंबेडकर के सपनों को पूरा करते हुए, भले ही झारखण्ड में वैसे लोग जो भारतीय होने के बावजूद भी झारखण्डी नहीं कहला पायेंगे, वे बर्बाद ही क्यों न हो जाये, 1932 आधारित स्थानीयता को 9 वीं अनुसूची में डालकर पुण्य का भागी बनें, क्योंकि मंडल आयोग जब लागू हो सकता हैं तो 1932 का खतियान क्यों नहीं?