आखिर आज की तेजतर्रार महिला पत्रकार बचपन में इंदिरा ही क्यों बनना चाहती थी, इसे जानने के लिए पढ़ें – ‘मैं इंदिरा बनना चाहती हूं’

एक बालमन तो कुछ न कुछ बनना ही चाहता है। जैसे जमशेदपुर निवासी वरिष्ठ पत्रकार अन्नी अमृता बचपन में सोची थी कि वो इंदिरा गांधी बनेगी। समय बदला अब वो पत्रकार है। पत्रकारिता के माध्यम से वो समाज में फैले हर बुराइयों को चोट करती हुई, उन बुराइयों को समाज के समक्ष रख, उससे लोगों को दूर करने का प्रयास भी करती है। ये अन्नी के स्वभाव में है।

एक साल पहले जब वो एक पुस्तक ‘ये क्या है?’ लिखी थी, तो उस पुस्तक ने भी अन्नी के स्वभाव को ही परिभाषित किया था और अब जबकि उनकी दूसरी पुस्तक ‘मैं इंदिरा बनना चाहती हूं’ मेरे हाथों में हैं। तब इस पुस्तक ने भी अन्नी के स्वभाव को ही परिभाषित किये हैं। इस दूसरी पुस्तक को पढ़ने के बाद मैं कह सकता हूं कि अन्नी में इंदिरा गांधी के कुछ सामाजिक व राजनीतिक गुण उनमें मौजूद हैं।

जैसे – किसी बातों को लेकर अपने विचारों को रखना, वैचारिक मतभेद होने पर अपनी बातों को और दृढ़ता से रखना, मुसीबत आने पर उन मुसीबतों पर संघर्ष करते हुए विजय पाना, हार-जीत के बगैर अपने लक्ष्य की ओर ध्यान देना, अपने विरोधियों व चाहनेवालों पर विशेष नजर रखना, ये अन्नी के विशिष्ट गुण हैं। जो इंदिरा जी में भी थे।

ऐसे हम आपको बता दें कि ‘मैं इंदिरा बनना चाहती हूं’ पुस्तक जब आप पढ़ना शुरु करेंगे, तो जैसा कि पुस्तक का नाम है, आप समझेंगे कि यह कोई राजनीतिक या उससे ही संबंधित पुस्तक हैं। लेकिन ऐसा है नहीं। अगर आप ये सोचकर जैसी ही पुस्तक पढ़ना शुरु करेंगे। आपको निराशा हाथ लगेंगी। लेकिन जैसे ही आप इसमें छपी अन्य कहानियों को पढ़ना शुरु करेंगे तो आप में नवीनता का ऐहसास होगा, लेखिका ने इस पुस्तक का नाम ‘मैं इंदिरा बनना चाहती हूं’ क्यों रखा, आपको समझ में आ जायेगा।

एक पत्रकार होकर, एक पत्रकार क्या महसूस करता है, उसकी क्या जिंदगी होती है, वो कैसे-कैसे विभिन्न प्रकार की पारिवारिक व सामाजिक मूल्यों को जीते हुए संघर्ष करता है, आपको पता लगना शुरु हो जायेगा। अन्नी द्वारा रचित इस पुस्तक में उसकी जिंदगी के कुछ पहलूओं की भी झलक है। उसमें उसके पारिवारिक जिंदगी तथा कोरोना काल में वो अपने को कहां स्थापित की है। कैसे लोगों को मदद पहुंचाई और कैसे उसने उसकी जिंदगी को झकझोरा है? अन्नी ने उन घटनाओं का बहुत ही सुंदर चित्रण किया है।

कुल मिलाकर कहें तो यह पुस्तक उस हर नवोदित पत्रकार और सामाजिक जीवन जीनेवाले व्यक्ति को पढ़ना चाहिए, जिसके हृदय में कही न कही समाज के प्रति कुछ करने का ईमानदार दृढ़ संकल्प उमड़ता रहता है। अन्नी ने बहुत ही कम समय में दो-दो पुस्तकें समाज को दी हैं। इसलिए अन्नी प्रशंसा की पात्र हैं। उनकी कलमें चलती रहनी चाहिए। उनकी कलम से और ऐसी कहानियों कि अविरल धारा बहती रहे, जो लोगों को एक नई आयाम दें, हम तो यहीं चाहेंगे।