ABVP के राष्ट्रीय अधिवेशन के बहाने अमिताभ चौधरी को संघ व भाजपा में प्रतिष्ठित करने का प्रयास

ज्ञान, शील, एकता के मार्ग पर चलने की दावा करनेवाली अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् अब पद, पावर और धनाढ्यता के मार्ग पर खुलकर चलने लगी हैं। हम आपको बता दें कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक आनुषांगिक संगठन मानी जानेवाली विद्यार्थियों की संगठन में अब पद, पावर और धनाढ्यता की बाहुल्यता हो गई है,  जिसके कारण इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर ऐसे लोग काबिज होते जा रहे हैं, जिनका संबंध पद, पावर और धनाढ्यता से हैं और ये काम कर रहे हैं, संघ से जुड़े वे लोग, जो अपनी क्षुद्रस्वार्थों की पूर्ति के लिए संघ के दामन पर दाग लगाने से भी नहीं चूक रहे।

आजकल संघ के आनुषांगिक संगठन में महत्वपूर्ण पदों पर उन्हें ही बिठाया जा रहा हैं, जो पद, पावर और धनाढ्यता में अग्रगण्य हैं, ज्ञान, शील और एकता के मार्ग पर चलनेवालों को मूर्ख बताकर, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। संघ के प्रचारक हो या संघ के विभिन्न आनुषांगिक संगठन के लोग भी, ऐसे ही लोगों की भाषा बोल रहे हैं, जिससे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से जुड़े सही लोग फिलहाल स्वयं को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं।

इधर, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, रांची के मोरहाबादी मैदान में अपना 63 वां राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित करने जा रही है। यह अधिवेशन 30 नवम्बर से प्रारंभ होकर 3 दिसम्बर तक चलेगा। इस अधिवेशन के कार्यक्रम को देखते हुए 63 वें अधिवेशन स्वागत समिति का अध्यक्ष झारखण्ड स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष अमिताभ चौधरी को बनाया गया है। ये वहीं अमिताभ चौधरी है, जो 2014 के लोकसभा चुनाव में झारखण्ड विकास मोर्चा के टिकट पर रांची संसदीय सीट से चुनाव लड़ा था। जिनकी उस चुनाव में जमानत तक नहीं बची थी।

अब अमिताभ चौधरी को संघ में स्थापित करने के लिए तथा भाजपा में इनकी जड़ मजबूत करने के लिए जेएससीए से जुड़े लोग, जो संघ में भी उच्च पदों पर क्रियाशील है, उन्होंने बीड़ा उठाया हैं कि वे अमिताभ चौधरी की इमेज संघ और भाजपा में चमका कर रहेंगे। उन्हें यह अब मौका भी मिल गया है, जिसका वे फायदा उठाने से नहीं चूक रहे। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के 63 वें अधिवेशन के स्वागत समिति का अध्यक्ष अमिताभ चौधरी को बनाना, उसी की एक कड़ी है।

सूत्र बताते है कि अमिताभ चौधरी का संघ से कभी कोई रिश्ता नहीं रहा है, और न ही वे संघ के किसी भी आनुषांगिक संगठनों के कार्यक्रमों में कभी भाग लिया या उसकी मदद की, पर इधर चूंकि लोकसभा चुनाव होने में मात्र डेढ़ साल ही बाकी हैं और विधानसभा चुनाव होने में मात्र दो साल बाकी, इसलिए ये लोग चाहते है कि अमिताभ चौधरी को इन दो सालों में ऐसी स्थिति में ले आया जाय, जिसमें कोई इनका विरोध ही न कर सकें और आराम से इन्हें लोकसभा या विधानसभा में भाजपा का टिकट मिलने में ज्यादा कठिनाई का सामना करना न पड़े।

सूत्र बताते है कि अब न तो पहले वाली भाजपा हैं और न पहलेवाला संघ, अगर आपके पास पैसा है, ताकत है, किसी को नीचा गिराने की कला विद्यमान है, तो संघ और उसके आनुषांगिक संगठन सब आपके पॉकेट में है, इसलिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का राष्ट्रीय अधिवेशन और उसमें आनेवाले मुद्दे सब हवा-हवाई है, मकसद तो दूसरा है। जरा स्वयं देखिये, यहां जो लोग अधिवेशन कार्यालय का उद्घाटन करने आये है, उसमें कितने विद्यार्थी है? आप खुद  देखिये, यहां आदिवासी छात्रों की समस्याओं की बात करनेवाले लोगों में कितने आदिवासी छात्र-छात्राएं यहां मौजूद है? बस चेहरा चमकाना ही मुख्य मकसद है, किसका चेहरा चमकेगा, सब आपके सामने है, जो कल तक भाजपा के नाम से चिढ़ता था, जो संघ से चिढ़ता था, आज उसे ही संघ के लोग अपने कंधे पर उठाने को लालायित है, इससे बड़ी विडम्बना और क्या होगी?