उधर CM तीन साल की मस्ती में डूबे थे, इधर सांसद-मंत्री हो रही गड़बड़ियों से परेशान थे

सवाल रघुवर सरकार से

  • क्या कोई भी व्यक्ति या संस्थान जिसने राज्य सरकार के साथ एमओयू किया हैं, क्या एमओयू करने के बाद उसे सरकारी लोगो तथा प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री या विभागीय मंत्री के फोटो को अपने विज्ञापन में प्रयोग में लाने का अधिकार मिल जाता हैं?
  • भाजपा के ही सांसद महेश पोद्दार को, अपने ही सरकार के नगर विकास विभाग से पत्र लिखकर पुछने की यह आवश्यकता क्यों पड़ गई कि उन्हें आमंत्रण नहीं था, फिर भी उनका नाम विज्ञापन में कैसे आ गया?
  • स्वयं भाजपा सांसद महेश पोद्दार ने सवाल उठाया है कि 323 वर्गफीट के एक कमरे की फ्लैट की कीमत कंपनी ने 12.97 लाख रुपये रखी है तो फिर यह किफायती आवास कैसे हुआ?
  • क्या ऐसोटेक कंपनी ने अपने विज्ञापन में प्रधानमंत्री का फोटो प्रयोग में लाने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क किया था, या उसे प्रधानमंत्री कार्यालय ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का फोटो प्रयोग में लाने के लिए अनुमति दिया था?
  • क्या ऐसोटेक कंपनी ने अपने विज्ञापन में मुख्यमंत्री का फोटो प्रयोग में लाने के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय से संपर्क किया था, या उसे मुख्यमंत्री कार्यालय ने मुख्यमंत्री रघुवर दास का फोटो प्रयोग में लाने के लिए अनुमति दिया था?
  • क्या ऐसोटेक कंपनी ने अपने विज्ञापन में नगर विकास मंत्री का फोटो प्रयोग में लाने के लिए नगर विकास विभाग मंत्रालय से संपर्क किया था, या उसे नगर विकास विभाग मंत्रालय ने नगर विकास मंत्री सी पी सिंह का फोटो प्रयोग में लाने के लिए अनुमति दिया था?
  • क्या इस प्रकार का विज्ञापन, वह भी प्रथम पृष्ठ पर लाकर, इस कार्यक्रम को सरकारी कार्यक्रम बताने की कोशिश कर, जनता की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश नहीं की गई?
  • क्या रघुवर सरकार बतायेगी कि यह कार्यक्रम सरकारी था या निजी, क्योंकि अब तो जनता को यह जानने का हक है? क्योंकि अब तो इस कार्यक्रम पर खुद भाजपा के ही सांसद और मंत्री सवाल उठा चुके हैं।

हम आपको बता दें कि यह सवाल इसलिए भी जरुरी हो गया है, कि गत 25 दिसम्बर को एसोटेक कंपनी ने बोड़ेया-मोरहाबादी रोड में अफोर्डेबल हाउसिंग के लिए भूमि पूजन एवं शिलान्यास समारोह कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसको लेकर विवाद प्रारंभ हो गया है। विवाद इस बात को लेकर है कि कंपनी ने 25 दिसम्बर को अपने विज्ञापन में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और नगर विकास मंत्री का फोटो तथा सरकारी लोगों का इस्तेमाल कैसे कर लिया? इसकी अनुमति कैसे और कहां से मिल गई? जिन्हें आमंत्रण भी नहीं था, उनका भी नाम इस विज्ञापन में कैसे शामिल कर लिया गया?

स्वयं भाजपा सांसद महेश पोद्दार के अनुसार, उन्हें आमंत्रण पत्र नहीं मिला, फिर भी उनका नाम छप गया। महेश पोद्दार ने कहा है कि इसमें यह भी स्पष्ट नही है कि प्रोजेक्ट में प्रयुक्त जमीन का मालिकाना हक वैध है अथवा नहीं। महेश पोद्दार के अनुसार पूर्व में संजीवनी घोटाले के कारण हजारों नागरिकों को अपनी गाढ़ी कमाई से वंचित होना पड़ा था, ऐसे में सरकार की फिर से बदनामी न हो, इसलए यह सुनिश्चित करना भी विभाग का कर्तव्य है।

इधर भारी-भरकम विज्ञापन मिलने के बाद, कुछ अखबारों ने शिलान्यास कार्यक्रम की खबरें इस प्रकार छापी, जिससे किसी को भी भ्रम उत्पन्न हो सकता है, क्योंकि आम तौर पर ऐसी खबरे आर्थिक पेजों पर देकर इतिश्री कर दी जाती है, पर इसे ऐसे जगह दिया गया, जैसे लगता हो कि इस कार्यक्रम में पीएम या सीएम शामिल हो रहे हो, पर सच्चाई यह है कि इस कार्यक्रम में जिनके फोटो थे, वे तो शामिल नहीं ही हुए, कई सांसदों और विधायकों ने भी इस कार्यक्रम से स्वयं को अलग कर लिया, शायद उन्हें पता था कि कुछ न कुछ, कहीं न कहीं गड़बड़ जरुर हैं।