अपनी बात

वाह मरांडी जी, आपने पोते के साथ धान-रोपनी कर युवाओं को एक अच्छा संदेश दिया

अच्छा लगा, जब हमने देखा कि झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री एवं वर्तमान में झारखण्ड विकास मोर्चा के अध्यक्ष बाबू लाल मरांडी अपने पोते के साथ, अपने गांव में धान की रोपनी में लगे हैं। मैं चाहता हूं कि देश का हर नेता कृषि कार्यों को प्रमुखता दें, यहीं नहीं, बल्कि अन्य समाजोपयोगी कार्यों को भी प्रमुखता से अपने जीवन में उतारें, ताकि इसका प्रभाव आम जन-जीवन पर पड़े, क्योंकि इससे लोग समझेंगे, कि कोई भी कार्य न तो छोटा होता है और न बड़ा, जब बड़े पदों पर बैठे उनके नेता/लोग सामान्य जनों द्वारा किये जानेवाले कार्यों को आनन्दित होकर करते हैं, तो हम क्यों नहीं?

देश के प्रधानमंत्री रह चुके लाल बहादुर शास्त्री ने कृषि की स्वीकार्यता और जवानों के बलिदानों के महत्व को समझते हुए ही कहा था –जय जवान, जय किसान, पर अफसोस उनके इस नारे को उनके बाद की आनेवाली नेताओं की पीढ़ी ने समझने की कोशिश नहीं की। हमारे देश में ऐसे कई नेता हैं, जिनके पास करोड़ों-अरबों की जमीन ऐसे ही पड़ी हैं, पर वे खेती नहीं करते, और न ही कभी खेत में जाकर, वहां काम कर रहे मजदूरों के साथ कभी धान की रोपनी की होगी, उन्हें लगता है कि अब वे नेता या आइएएस या आइपीएस हो गये, अब उन्हें खेती से क्या मतलब? खेती करना तो छोटे लोगों का काम हैं, और यहीं सोच हमारे देश को बर्बाद करने के लिए काफी हैं।

हमें खुशी है कि भारत के झारखण्ड में कई ऐसे नेता हैं, जो कृषि कार्यों में खुब दिलचस्पी लेते हैं, जैसे झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन, झाविमो सुप्रीमो बाबू लाल मरांडी। भाजपा में ही एक नेता जो कभी विधायक भी थे, हमने सुना था कि उनकी पत्नी सब्जी भी बेचा करती थी, यानी अपने खेती-कृषि कार्यों से इतना जुड़ाव, सचमुच आनन्दित करता हैं, पर आज इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारे देश में 90 प्रतिशत आबादी ने स्वयं ही मान रखा है कि फलां काम अच्छा है, और फलां काम खराब, और इसी चक्कर में अपना भविष्य बर्बाद कर ले रहा हैं,  जबकि ऐसा है नहीं।

दुनिया का कोई काम, जिससे लोगों का भरण-पोषण होता हैं, मानव मात्र ही नहीं बल्कि प्रत्येक जीव को आनन्द मिलता है, वह गलत कैसे हो सकता है? असली आनन्द तो उसी में हैं, पर आज एक नई पीढ़ी आई है, जो थोड़ा ज्यादा पढ़ चुकी हैं और उसके नेता आ गये हैं, जो ज्यादा समझा दिये हैं, उन्हें नौकरी, चाहिये, वह सरकारी हो या निजी, चाहे उसमें दम ही क्यों न निकल जाये? चाहे नेता की चाटुकारिता या किसी आइएएस या आइपीएस के बीबी-बच्चों का कपड़ा धोते ही समय क्यों न कट जाये? बहुत ही आनन्द आता है, पर उन्हें अपना कार्य, अपने पूर्वजों का कार्य करने को कहा जाये, तो वे नहीं करेंगे। आश्चर्य तो यह भी देखने को मिल रहा है कि ब्राह्मणों के बच्चे, अब पूजा-पाठ कराना पसंद नहीं करते और न ही वेद या उपनिषद् में रुचि रखते है, उन्हें लगता है कि ये सर्वथा निकृष्टतम कार्य हैं, अब इसे क्या कहा जाय।

गजब की दुनिया उलटी है भाई। जो काम अच्छा है, वो काम बुरा हो चला हैं और जो काम सबसे निकृष्टतम हैं, वह अच्छा हो चला है, हर कार्यालय में घूस और रिश्वत का साम्राज्य स्थापित है, पर देखिये ये काम करने में लोगों को कितना मन लगता है, और उसी में कोई ईमानदार व्यक्ति है तो लोग उसे उल्लू समझते हैं।

सचमुच बाबू लाल मरांडी जी, आपने बहुत लोगों का अपनी ओर ध्यान आकृष्ट कराया हैं और एक तरह से संदेश भी दिया कि लोग, आज के युवा कृषि कार्यों में रुचि लें, अन्नदाता बनें, लोगों का भरण-पोषण करने की जिम्मेवारी लें, ये बहुत ही पुण्य का काम हैं, काश सभी ऐसा सोचते, फिर देश कहां से कहां होता, समझने की जरुरत हैं।