कहीं आपका बच्चा आपके संस्कार और चरित्र को छोड़ “मानव बम” बनने की तैयारी तो नहीं कर रहा

सुशील बाबू बड़े ही शांतिप्रिय हैं, वे मुहल्ले के सर्वाधिक संभ्रांत व्यक्ति है। उनके दो बच्चे अभिनव और आकाश भी सुंस्कारित है। मुहल्ले के सारे लोग सुशील बाबू के दोनों बेटे की बड़ाई करते नहीं थकते। जब मुहल्ले के लोग अपने बच्चों को समझाते तो ये कहना नहीं भूलते कि देखो इसी मुहल्ले में अभिनव और आकाश हैं, जो कितने सुसंस्कारित और पढ़ने में तेज हैं, हाल ही में मैट्रिक की परीक्षा में दोनों ने 96 प्रतिशत नंबर लाये और आज एक अच्छे शिक्षण संस्थान में पढ़ रहे हैं, लेकिन कुछ महीनों से अभिनव और आकाश ने स्वयं को ऐसा कर लिया कि पूरा मुहल्ला ही सकते में हैं। आखिर अभिनव और आकाश ने क्या कर दिया? इधर कुछ महीनों से सुशील बाबू भी बड़े ही बेचैन हैं।

बताया जाता है कि कुछ महीनों से मुहल्ले में भगवा रंग के वस्त्रों और गमछों की बाढ़ सी गई है। बच्चे बड़े ही शान से उन भगवा रंग के कपड़ों को पहन रहे हैं और माथे पर भगवा साफा पहनकर, जोरजोर से चिल्ला रहे हैं, कह रहे हैंजयश्रीराम, जयश्रीराम। कुछ लोगों को बहुत अच्छा लग रहा है, तो कुछ लोगों को बहुत ही खराब। कुछ लोग कह रहे हैं कि भइया जवान तो हम भी हुए थे, उन्होंने तो कभी जयश्रीराम सुना ही नहीं, उनके बाबूजी और दादाजी तो ज्यादा खुश हुए तो जयसियाराम, जयजय सियाराम कहते और सब को हाथ जोड़ लेते, लेकिन अब तो जयश्रीराम का जमाना आया हैं, वे भी श्रद्धा और प्रेम से नहीं बल्कि इस कदर वे बोल रहे हैं, जैसे लगता हैं कि कोई तूफान गया हो।

जयश्रीराम बोलने के क्रम में लाललाल आंखे कर लेना, त्यौरियां चढ़ा लेना, भुजाओं को फड़काना, छाती फुलाना, एक दूसरे को ललकारना, ये जयश्रीराम बोलने का नया तरीका हो गया है। टेलीविजनों पर भी जो बहसें हो रही हैं, तो इन बच्चों को चिरकूट कालनेमि टाइप के संतों के प्रवचन ही बहुत अच्छे लग रहे हैं और जिसका परिणाम यह हो गया कि देखते ही देखते, जो बच्चे पढ़नेलिखने के लिए जाने जाते थे, आज जयश्रीरामजयश्रीराम चिल्लाने में एक्सपर्ट हो गये हैं और उनका सारा समय, पढ़ाई-लिखाई छोड़कर, जयश्रीराम-जयश्रीराम चिल्लाने में ही चला जा रहा है।

चिन्तित सुशील बाबू, बच्चों के भविष्य को लेकर आशंकित है, वे कहते है कि ऐसे भी नौकरियां नहीं हैं, जो हैं भी सरकार ने उसे ठेके पर कर दिये हैं, ऐसे में अगर संस्कार भी चला गया तो ये बच्चे निःसंदेह देश पर बोझ हो जायेंगे, देश के लिए ही घातक हो जायेंगे, तो फिर इनका जीना मरना एक ही हो जायेगा, आतंकियों को तो देश को खतरे में डालने का विदेशी लोग प्रशिक्षण देते हैं तब जाकर वे आतंकी घटनाओं को अंजाम देते हैं, खुद को कभीकभी मानव बम में परिवर्तित कर कई हिंसक घटनाओं को अंजाम देते हैं, पर इन बच्चों का क्या, जिनका किसी आंतकी समुदायों से कनेक्शन नहीं, फिर भी ये खुद को इस प्रकार हिंसक बना लिये है, कि ये भी मानव बम से कम नहीं।

सुशील बाबू कहते है कि भाई, बड़े ही अरमान थे, बच्चों को पढ़ाऊंगालिखाऊंगा, अच्छे इन्सान बनाऊंगा, पर ये क्या हमारे बच्चे तो अपनी सारी अच्छी आदतों को त्यागकर मानव बम, जैसी हरकतें करने लगे हैं, कोई दूरदराज टीवी पर बैठकर, कोई चिरकूट टाइप का नेता कालनेमि टाइप का संत बच्चों का माइन्डवॉश कर, उन्हें अपना दास बना ले रहा हैं और बच्चे उनके चक्कर में आकर, फेसबुकटिवटर और अन्य सोशल साइटों पर एक दूसरे को चिढ़ा रहे हैं, गालियां दे रहे हैं, और स्वयं को नाश कर रहे हैं, कमाल है इन घटियास्तर के कार्यों में मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चों की बलियां चढ़ जा रही हैं, पर चिरकूट नेताओं कालनेमि टाइप संतों के परिवारों के बच्चों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा।

कमाल हैं, सुशील बाबू अनुभवी व्यक्ति हैं, वे बताते है कि कैसे आज का कालनेमि टाइप का संत, किसी राजनीतिक दल का स्टार प्रचारक होकर, प्रमुख शहरों से चुनाव लड़ रहा हैं, वह जीतने के लिए तरहतरह के हथकंडे अपना रहा हैं, अपने प्रतिद्वद्वियों के मांबहनों के लिए आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग कर रहा हैं, ये आधुनिक भारत की जीतीजागती छवि है, और अपने बच्चे ऐसे कुकर्मियों के लिए स्वयं को मानव बम बनाकर, अपने जीवन को इनके चरणों में अर्पित कर रहे हैं, केन्द्र राज्य सरकार इस मामले में चुप्पी थामे हुए हैं, उन्हें लगता है कि जब तक ये सब नहीं चलेगा, उनकी राजनीति नहीं चलेगी, सत्ता प्राप्त नहीं होगी और लीजिये वे इन हथंकडों को अपनी पार्टियों के आइटी सेल द्वारा हवा दे रहे हैं।

कारपोरेट जगत नहीं चाहता कि देश में कोई ऐसी सरकार बनें, जो उनके इशारों पर नहीं चलकर, अपने ढंग से देश को चलाएं, क्योंकि जब कोई पार्टी अपने ढंग से देश चलाना शुरु करेगी तो फिर उनके कारोबारों का क्या होगा? उनके सपनों का क्या होगा? उन्होंने जो इतनी पूंजी लगा रखी हैं देश में, उसका फायदा उन्हें कैसे मिलेगा? इसलिए देश के ज्यादातर न्यूज चैनल, टीवी चैनल्स, अखबार-पोर्टल आजकल कारपोरेट जगत के गुलाम हो गये, इसमें काम करनेवाले लोगों को भी वे लोग अच्छे लग रहे हैं, जो धार्मिकता के नाम पर अपनी दुकानें चला रहे हैं और जिसके चक्कर में आकर वर्तमान युवा-पीढ़ी अपने भविष्य की बलि चढ़ा दे रही हैं।

जरा देखिये न, पिछले साल की ही बात है, एक सरकार ने रेलवे के ग्रुप डी का वैकेंसी निकाला, बच्चे पांच-पांच सौ रुपये के फार्म लेकर फार्म भरे, बाद में हंगामा किया, सरकार कहीं चार-चार सौ रुपये लौटा दिये जायेंगे, पर क्या चार-चार सौ रुपये उनके लौटे? यहीं नहीं एक ग्रुप डी की नौकरी के लिए कई उसमें कायदे-कानून जोड़ दिये गये थे, ताकि इस विज्ञापन का ज्यादातर लोग लाभ ही नहीं उठा सकें, ऐसे भी इस विज्ञापन का लाभ लेने में कोई उस पार्टी का नेता का बेटा या दामाद शामिल नहीं था, क्योंकि नेताओं के बेटे-दामाद ग्रुप डी की नौकरी करने के लिए पैदा नहीं होते, वे तो जन्मजात सांसद और विधायक बनने के लिए पैदा होते है?

सुशील बाबू अब क्या करेंगे, उनका बेटा तो मानव बम की तरह हरकतें कर रहा हैं, जैसे ही टीवी खुलता है, वो नेताओं को जब जयश्रीराम कहता हुआ देखता हैं तो उसका हृदय पुलकित हो जाता हैं, वो भावुक हो जाता है, उसे लगता है कि यहीं नेता उसका पालनहार हैं, खेवैया है, इधर घर के हालत खस्ते हैं, सुशील बाबू अब रिटायर करेंगे, घर में दो-दो जवान बेटियां हैं, शादी करनी है बेटियों की, सोचे थे, बच्चे अच्छा करेंगे तो कम से कम बच्चों का भविष्य सुखद देखकर जी लेंगे, पर ये क्या उन्हें लगता है कि वे जिंदगी भर रोते-रोते बितायेंगे, मरने के पहले तक चेहरे पर खुशियां नसीब नहीं होंगी।

अचानक सोचते-सोचते उन्हें नींद आ जाती हैं, तभी खुली खिड़कियों से एक बार फिर जयश्रीराम-जयश्रीराम की चीख सुनाई देती है, भगवा साफे पहने एक झूंड उनके घर में घुसता हैं, सुशील बाबू को गले लगाता है कि अंकल आपका दोनो बेटा रामभक्त है, देश के लिए अपने आपको कुर्बान कर रहा हैं, ये क्या कम हैं, हमलोग हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए निकल पड़े हैं, सभी लोग मिलकर हिन्दूत्व का अलख जगा रहे हैं, देखियेगा, जल्दी ही हिन्दू राष्ट्र बनेगा और हम सब उस भगवा झंडे के तले एकीकृत होकर रहेंगे।

अचानक सुशील बाबू के मुंह से निकलता है – तो बच्चों ये भी बताओं कि आज के तिरंगे का क्या होगा? वहां सन्नाटा छा जाता है, सुशील बाबू धीरे-धीरे अपने घर से निकल जाते हैं, उन्हें लगता है कि अब उनका घर भी रहनेलायक नहीं हैं, क्योंकि उनके राम तो हर घट में विद्यमान है, उनके राम तो शबरी के जूठे बेर में खुश होते हैं, वे रावण के साथ युद्ध करते हैं तब भी उसे सुधरने का कई मौका देते हैं, पर आज का राम भक्त, राम के इस सिद्धान्त को मानने को तैयार नहीं, वो तो जयश्रीराम-जयश्रीराम कहकर डराने में ही ज्यादा मन लगा रहा है, ऐसे में वे घर में कैसे रहे? वे घर से दूर होते जा रहे हैं और घर को एक पलक निहारते जा रहे हैं, क्या सोचा था और क्या हो गया?