अपनी बात

आप पहले राज्यपाल हुए सिब्ते रजी साहेब, जिनके शासनकाल में ट्रेन हाईजैक हो गया, आप जब रांची आये तो राजभवन में मुझसे जरुर मिले

झारखण्ड के पूर्व राज्यपाल सैय्यद सिब्ते रजी अब इस दुनिया में नहीं हैं, शनिवार यानी 20 अगस्त को उनका लखनऊ में निधन हो गया। राजनीतिक दृष्टिकोण से तो कई लोग अलग-अलग ढंग से उनका आकलन करेंगे, पर पत्रकारीय दृष्टिकोण से जो हमने महसूस किया, उसे मैं आज भी याद करता हूं, तो पाता हूं कि राजनीतिक जीवन में बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं, जो सैय्यद सिब्ते रजी जैसे हो।

इसके कई प्रमाण मेरे पास मौजूद हैं। पर, मैं बात उन दिनों की कर रहा हूं, जब मैं ईटीवी में कार्यरत था। उस वक्त हमारी पोस्टिंग धनबाद में थी। संयोग से झारखण्ड में राष्ट्रपति शासन चल रहा था। उस वक्त झारखण्ड के राज्यपाल सैय्यद सिब्ते रजी थे। एक दिन वे अपने लाव-लश्कर के साथ धनबाद पहुंचे। कई प्रशासकीय मीटिंग की। बाद में पता चला कि वे संवाददाता सम्मेलन भी करेंगे।

मुझे उस वक्त धनबाद के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में कार्यरत जनसम्पर्क अधिकारी रश्मि सिन्हा द्वारा सूचना मिली कि धनबाद परिसदन में राज्यपाल सैय्यद सिब्ते रजी संवाददाता सम्मेलन करेंगे, मैं वहां समय पर पहुंच जाऊं। मैं नियत समय पर अपने कैमरामैन शाहनवाज के साथ पहुंच चुका था। शाहनवाज की खासियत थी कि वो मेरे मन-मिजाज को जानता था, कैसा फुटेज हमें चाहिए, या मेरे मन में कौन सा सवाल चल रहा हैं, वो समझ जाता था। उसने कहा कि सर हम वीओ के लिए विजुयल बना रहे हैं।

इसी बीच धनबाद के सभी प्रमुख अखबारों के संवाददाता वहां मौजूद थे। सभी अपने-अपने ढंग से राज्यपाल के समक्ष प्रश्नों को रख रहे थे, मेरी आदत रही है कि मैं सवाल अंत में पूछता हूं ताकि कोई ये न कहें कि उसका प्रश्न छूट गया, क्योंकि मैंने देखा है कि जहां मैं कोई सवाल पूछा, उसके बाद दूसरा कोई प्रश्न होता ही नहीं, इसलिए मैं किसी का दोष अपने उपर क्यों लूं?

ठीक इसी प्रकार मैंने सैय्यद सिब्ते रजी से धनबाद परिसदन में सवाल पूछे। सवाल था – बधाई हो, सैय्यद सिब्ते रजी साहब आप शायद देश के विभिन्न राज्यों के राज्यपालों में पहले राज्यपाल हैं, जिनके शासनकाल में नक्सलियों ने ट्रेन हाईजैक कर लिया। इस पर क्या कहेंगे आप? उनका उत्तर था – नक्सलियों ने ट्रेन हाई जैक किया और हमने जल्द ही उसे छुड़ा भी लिया। जब संवाददाता सम्मेलन खत्म हुआ तो उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और बातचीत की। उन्होंने बातचीत के क्रम में कहा कि जब आप यानी मैं कभी रांची आऊं, तो राजभवन जरुर जाऊं, उन्हें खुशी होगी।

मैं उनके शासनकाल में कई बार रांची आया, पर राजभवन नहीं गया। लेकिन उनकी ये साफगोई और उनका खुलापन आज भी दिल के कोने में उनकी बेहतरीन छवि को घर कर गया। आज भी सोचता हूं कि कितने राजनीतिज्ञ या राज्यपाल ऐसे हैं, जो हृदय को बेध देनेवाले प्रश्नों को भी सहजता से लेते हैं, यहां तो पत्रकारों को देख लेने और उन्हें जड़ से नष्ट कर देने के काम में लोग लग जाते हैं, पर सैय्यद सिब्ते रजी ने तो सीधे मुझे राजभवन आने का निमंत्रण ही दे डाला था।

हालांकि मैं बता दूं कि मुझे राजभवन या मुख्यमंत्री आवास जाने में कभी दिलचस्पी रही ही नहीं। पत्रकारीय कार्यों से चला गया, वो बात अलग है, पर “गणेश परिक्रमा” मेरे जीवन में कभी स्थान नहीं बना पाया। आज भी कई लोग ऐसे हैं, जो मुझे मिले हैं, वे कहते है कि सैय्यद सिब्ते रजी, उस हर इंसान की इज्जत किया करते थे, जिसके अंदर खुबियां रही। अलविदा रजी साहब, हम तो कम से कम जीवन पर्यन्त आपको याद रखेंगे।