अपनी बात

गजब, वैवाहिक विज्ञापनों में अब लड़कियों के रंग नहीं छापेंगे, पर दुष्कर्म की खबरों को आंखों देखा हाल बतायेंगे/छापेंगे!

दैनिक भास्कर समूह ने लगता है कि अपने सारे संस्करणों में एक कॉलम का अपना संकल्प पत्र छापा है। संकल्प या पहल भी कह सकते हैं। उसने उस संकल्प के हेडिंग में लिखा है कि – “वैवाहिक विज्ञापनों में बेटियों के रंग से जुड़े विवरण अब नहीं छापेगा भास्कर”। इस पहल को दैनिक भास्कर में काम करनेवाले लोग बड़ी ही गर्व से अपने -अपने सोशल साइट पर स्थान देकर, दैनिक भास्कर की इस पहल की सराहना करते नहीं थक रहे।

हालांकि उसके इस संकल्प या पहल से कोई बहुत बड़ा क्रांति नहीं होने जा रहा हैं और न इससे क्रांति होगी। आपका अखबार, आप कुछ भी फैसला लें, इससे आम आदमी के जीवन में कोई फर्क नहीं पड़ता, पर किसी समुदाय, जाति, वर्ग आदि को लेकर जो आप समाचार छापते हैं, उससे फर्क अवश्य पड़ता है। सबसे पहले दैनिक भास्कर समूह की पहल का ये आज का नजारा देखिये, फिर हम आपको दैनिक भास्कर के पूर्व में किये गये बेटियों/महिलाओं से संबंधित समाचार का भी नजारा दिखायेंगे कि ये अखबार कैसी- कैसी लीलाएं करता है?

आपने देख लिया। अब तो आप कहेंगे कि वाह दैनिक भास्कर ने क्या संकल्प लिया है। कहनेवाले तो ये भी कहेंगे कि इसकी जितनी सराहना की जाय बहुत ही कम है। काश सारे अखबार वाले ऐसी ही पहल करें। हां भाई, इतना सुंदर काम की प्रशंसा तो हम भी करेंगे। लेकिन दैनिक भास्कर में ही जून 2018 में ये क्या देख रहा हूं। आप भी देखिये…

अखबार का ये कतरन झूठ नहीं बोल रहा हैं। ये दैनिक भास्कर की लीलाओं का बखान कर रहा हैं। इसे बेटियों के रंग को छापने में दर्द महसूस हो रहा हैं, इसलिए उसने आज संकल्प लिया हैं, पहल किया हैं, पर उन्हीं बेटियों के साथ कोई दुष्कर्म करता हैं, अत्याचार करता हैं, तो उसका आंखों देखा हाल छापने में उसे परमानन्द की प्राप्ति होती है। वो बड़े ही चालाकी से अपने कुकृत्यों को यह कहकर सही साबित करता है कि “ये शब्द आपको विचलित कर सकते हैं… मगर न्याय के लिए पूरा सच बाहर आना जरुरी है।”

अब सवाल उठता है कि कौन सी पहल ज्यादा जरुरी है? समाचारों के नाम पर बेटियों/महिलाओं के साथ होनेवाली गलत कार्यों का आंखों देखा हाल प्रसारित करना या बेटियों के रंग को नहीं छापने का पहल करना। जो बुद्धिजीवी होंगे, वो दोनों पहलों कों प्राथमिकता देंगे। जो चालाक होंगे, वे किसी न किसी एक पक्ष में जाकर अपना मत प्रकट कर देंगे, पर जो इन सबसे परे होंगे, वे प्राथमिकता उसी को देंगे, जिससे समाज बनता है, वे कहेंगे कि बेटियों/महिलाओ का हर प्रकार से सम्मान हो, इसका पहल तो दैनिक भास्कर के हर संस्करण के संपादकों को करनी चाहिए। अगर ये पहल दैनिक भास्कर करता है, तो कहा जायेगा कि वो सही मायनों में बेटियों को सम्मान दे रहा है, नहीं तो लोग इस आज के पहल को भी धूर्तई ही कहेंगे, चाहे दैनिक भास्कर के लोग मानें अथवा न मानें।