क्या ऐसा करने से रांची से प्रकाशित ‘प्रभात खबर’ का पाप धूल जायेगा?

पहले फर्जी विज्ञापन छापो, उस फर्जी विज्ञापन से खुद को मालामाल करो, बेरोजगार युवाओं और उसके अभिभावकों/परिवारों के सपनों के साथ खिलवाड़ करों, उनकी गाढ़ी कमाई फर्जीवाड़ा करनेवाले लोगों द्वारा लूटवा दो और उसके बाद, फिर लंबा-चौड़ा समाचार छापों कि ‘2476 पदों पर बहाली के नाम पर एक और फर्जीवाड़ा सामने आया’। सब हेडिंग दो – ‘ऑनलाइन आवेदन के लिए छात्रों से लिये जा रहे हैं 230 रुपये’।

आज रांची से प्रकाशित प्रभात खबर की पृष्ठ संख्या 2 में पांच कॉलमों में छपी समाचार तो यहीं बता रही हैं। जरा देखिये, कितना शोध करके इसके संवाददाता ने समाचार प्रकाशित कराई है। इसके संवाददाता, विज्ञापन देनेवाले का कार्यालय ढूंढने निकले थे – रातू रोड के इन्द्रपुरी रोड नं. 1 में, पर उसका कार्यालय उसे मिला ही नहीं, यहीं नहीं अगल-बगल के लोग भी नहीं बता सकें कि यहां ऐसा कार्यालय भी कोई हैं।

कमाल है, जो विज्ञापन इनके अखबारों में फर्जी रुप में छपते हैं, उसके फर्जी होने का सबूत आम आदमी को पता होता हैं, पर इनके संपादकों/विज्ञापन महाप्रबंधकों/मालिकों को पता ही नहीं होता, है न आश्चर्य। दरअसल बिजनेस इसी तरह चलता है, दुनिया भाड़ में जाये, हमारी झोली कैसे भर रही हैं, इस पर ज्यादा ध्यान बिजनेस मैन रखते हैं।

कभी देखे हैं, जो दो नंबर का मिठाई बनानेवाला होता है, वह ग्राहकों के स्वास्थ्य का ख्याल रखता है, नहीं न। उसे ग्राहक के स्वास्थ्य की चिन्ता थोड़े ही रहती है, वह तो सिर्फ ये देखता है कि दीवाली के दिन में कैसे ग्राहकों को दो नंबर की मिठाई का पैकेट थमाकर, अधिकाधिक मुनाफा कमाया जाय। ग्राहकों के स्वास्थ्य का उसने ठेका थोड़े ही लिया है।

ठीक उसी प्रकार, हमें विज्ञापन मिल रहे हैं, विज्ञापन से मेरा कारोबार निकल पड़ा है, हमारी जय-जय हो रही है, वह विज्ञापन फर्जी है, या फर्जी नहीं है, इसकी जिम्मेवारी हमारी थोड़े ही हैं, इसकी जिम्मेवारी तो उस जनता की है, जो इसके चक्कर में पड़कर अपनी गाढ़ी कमाई लूटवा दिया। अखबार थोड़े ही कहने गया था कि उसमें फार्म भर ही दो। जैसे मिठाई की दुकानवाला, अपने दुकान में लिखे रहता है, कि उसके यहां शुद्ध मिठाई बिकती है, ऐसे में वह थोड़े ही किसी से कहता है कि वह ग्राहक उसी के दुकान से मिठाई ले।

हम तो बिजनेसमैन हैं, अपना काम बिजनेस की तरह से करेंगे। ठीक उसी प्रकार हम अपने अखबार में भी ‘अखबार नहीं आंदोलन’ लिख देते हैं, इसका मतलब थोड़े ही है कि हम सड़कों पर आंदोलन करते फिरे और लोगों को सही समाचार पहुंचाने के साथ-साथ, सही-सही विज्ञापन प्रकाशित करने का ठेका ले लें।

जरा देखिये, इस अखबार को… खुद लिखता है… बड़ी राशि की ठगी का खेल… जिसमें यह खुद ही बता रहा है कि जानकार बताते है कि आवेदकों से प्रति आवेदन 230 रुपये मांगे गये है, यानी यदि एक लाख आवेदन आते है, तो संचालक लगभग 2.30 करोड़ रुपये की कमाई कर लेगा। बताया गया कि ऐसे कई छात्र ठगी के शिकार हो रहे है। पिछले दिनों ग्रामीण कौशल विकास में बहाली के नाम पर इसी प्रकार की ठगी कोलकाता के एक संस्था ने की थी, जिसे प्रभात खबर ने उजागर किया था, आज कोलकाता के उस संस्थान के संचालक फरार बताये जाते हैं, पर ये प्रभात खबर अखबार ये नहीं छापा कि उस फर्जी संस्था का विज्ञापन, इसी अखबार ने छापा था,  जिसके कारण कई युवा ठगी के शिकार हो गये।