अपनी बात

जो परमानन्द लालू यादव को प्राप्त है, उसी परमानन्द से आम कैदी या जेल में बंद RJD के अन्य नेता क्यों वंचित है?

भाई सवाल साफ है, जो परमानन्द लालू प्रसाद यादव को जेल में प्राप्त हो रहा है, उसी परमानन्द से आम कैदी या जेल में बंद राजद के अन्य नेता क्यों वंचित है? क्या उन्हें ये परमानन्द प्राप्त करने का अधिकार नहीं है, या उन्होंने लालू यादव से भी बड़ा पाप कर दिया है, कि उन्हें वो परमानन्द किसी जिंदगी में नहीं मिल सकता, जो लालू यादव को प्राप्त है।

कमाल है एक सामान्य आदमी अगर जेल चला जाये तो उसके लिए जेल मैन्यूल, आइपीसी की धारा और पता नहीं कहां से लोग संविधान की प्रतियां लेकर पहुंच जाते है कि उस व्यक्ति को जेल में ही पूरी जिंदगी व्यतीत हो जाती है, उसका परिवार बर्बाद हो जाता है, परिवार को उसे ठीक करने में कई पुश्त गुजर जाते हैं, इज्जत गई सो अलग, पर यहां लालू यादव जी को देखिये, क्या ठसक है, ये तो जेल में ही रहकर सरकार गिराने के लिए भाजपा विधायक को लॉलीपॉप भी खिलाने लगते हैं और सारा सिस्टम उनकी जय-जय करने में लग जाता है।

आश्चर्य की बात है कि आज संविधान दिवस है, इस संविधान दिवस के दिन उन वामपंथियों और पत्रकारों के मुंह सिले हुए हैं, जो बार-बार संविधान का नाम लेकर ही मोदी और भाजपा सरकार को मुंह चिढ़ाते रहते हैं, उन्हें संविधान विरोधी बताते हैं, पर जिनके कंधे पर चुनाव लड़कर वामपंथियों का समूह बिहार विधानसभा में पहुंचा है, वह भी अपना मुंह सिलकर फिलहाल बैठा हुआ है।

बैठा हुआ तो वह भी नेता है, जो कई घाटों का पानी पीकर, अंत में लालू का चरणोदक पीकर, अपने खानदान से एक युवक को विधायक बना चुका है, और बेशर्मी से लालू के इस फोन प्रकरण पर लालू की ही जय-जय बोल रहा है, ऐसे भी बोलेगा क्यों नहीं? क्योंकि इस बिहार जगत् में तो उसके खानदान के खेवनहार वर्तमान में लालू प्रसाद ही है।

हमारा सवाल तो साफ है कि भाई एक को इतनी सुविधा की वो जेल से अपनी पार्टी को दिशा-निर्देश जारी करें, टिकट बांटे, लोग उससे जब चाहे जब जाकर मिले, उसके लिए जेल से रिम्स और रिम्स से आलीशान कॉटेज और कॉटेज से उसे बंगला मिल जाये, तो भाई अन्य कैदियों को यह सुविधा क्यों नहीं, क्या संविधान में लिखा है कि किसी पार्टी को जन्म देनेवाला, किसी राज्य का मुख्यमंत्री बन जानेवाला, अगर किसी मामले में फंस जाये और उसे अदालत दोषी करार कर सजा मुकर्रर कर दें तो उसे हर प्रकार की स्वर्गिक आनन्द की वस्तुएं उपलब्ध कराते हुए, उसे परमानन्द की प्राप्ति कराई जाये।

अगर ऐसा है, तो भाई मैं संविधान का वह पन्ना पढ़ना चाहता हूं, ताकि अपने मानवाधिकार के लिए लड़नेवाले  मित्रों को बता सकूं कि देखो मानवाधिकार से जुड़े संगठनों, हमारे यहां तो कैदियों की यह ठाठ है कि उसे बंगला तक दे दिया जाता है और जिसे बंगला में रहना है, उसे कहा जाता है कि आराम से आप दूसरे जगह रहिये, और जिसे जेल में सजा काटनी है, वो बीमार न रहते हुए भी बीमारी का बहाना बनाकर, संविधान और जेल मैन्यूल की धज्जियां उड़ाता है।

अब सुनने में आया है कि रांची के एक भाजपा नेता संभवतः अनुरंजन अशोक, जो मोदी मिशन के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं, जिन्हें भाजपा वाले ही हमेशा उनके सम्मान से खेला करते है, कभी अच्छा पद दिया ही नहीं और न ही उनसे कभी काम लिया। आज झारखण्ड हाई कोर्ट में लालू को मिल रही सुविधा को लेकर जनहित याचिका दायर कर दिया है।

अनुरंजन अशोक ने अपने जनहित याचिका में इस बात का उल्लेख किया है कि चारा घोटाले में सजा काट रहे लालू प्रसाद मोबाइल से बात करते हैं और विधायकों को लालच देकर सरकार गिराने का काम कर रहे हैं। ऐसे में एक और केस लालू प्रसाद के खिलाफ दर्ज हो जायेगा। राजनीतिक पंडितों की मानें तो लालू प्रसाद पर कई केस हो जाये, लालू प्रसाद को क्या फर्क पड़ता है, वे जेल में भी रहेंगे तो उनके चाहनेवाले, उनके पद चिन्हों पर चलनेवाले उन्हें भगवान तक माननेवाले, उनके लिए हर प्रकार की व्यवस्था कर ही देंगे, जैसा कि अब तक होता रहा है।

क्या दिल्ली के एम्स में इलाज के दौरान, या रांची के रिम्स में लालू प्रसाद ने मस्ती नहीं की या वो नहीं किया जो एक बड़ा नेता परमानन्द का सुख प्राप्त करता है। अरे लालू का मतलब ही है न भूतो न भविष्यति। क्या झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन या दिल्ली के इशारे पर हर काम करनेवाले कांग्रेस के बड़े नेता रामेश्वर उरांव लालू के खिलाफ एक भी शब्द बोल सकते हैं या उन्हें दिशा-निर्देश दे सकते है।

मैं तो साफ कहता हूं कि अगर जहां कुछ उलूल जुलूल इन दोनों में किसी ने भी बका, तो झारखण्ड में क्या होगा? ये एक विधायक वाला राजद, और बंगले में रहनेवाला लालू हालत खराब करके रख देगा, ऐसा इनलोगों का मानना है, पर जहां तक विद्रोही24 का मानना है, हर नेता का एक समय होता है, उस समय में वो जितना उछलना है, उछल लें, पर एक समय ऐसा भी आता है कि उस नेता की उछलनई पर सदा के लिए विराम लग जाता है, उसके पास सब कुछ होता है, पर वो बर्बाद हो चुका होता है।

इसे अच्छी तरह समझना है तो लालू को ही समझिये, एक समय था अन्नपूर्णा देवी लालू की पार्टी में सम्मानित पद पर रहती थी, लालू ने उन्हें कहां से कहां पहुंचाया, और आज वहीं अन्नपूर्णा देवी, भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है। पटना के रामकृपाल यादव, लालू के हनुमान माने जाते थे, आज वे भाजपा के टिकट पर मोदी-मोदी कर रहे हैं। ये है समय की मार। हमें लगता है कि लालू ने अभी भी समय से नहीं सीखा, समय बार-बार उन्हें चेता रहा है, लेकिन वे चेत नहीं रहे।

इसलिए विद्रोही24 का मानना है कि लालू को अभी और दुख झेलना है। अरे इससे बड़ा दुख क्या हो सकता है, कि सारे चैनल हर-हर लालू, हर-हर तेजस्वी बोल रहे थे, लग रहा था कि बिहार में नीतीश शासन का अंत हो गया, और लालू का बेटा मुख्यमंत्री बन गया और लीजिये पालथी लगा कर बैठे थे शासन का स्वाद लेने, और सामने से पत्तल ही उठ गया।

इस चीज को हर कोई नहीं समझ सकता, इसे समझने-समझाने के लिए अंतःचेतना वाला एक व्यक्ति चाहिए जिसमें पदलोलुपता नहीं हो और वो बढ़िया से लालू को समझा दें, लेकिन इसके लिए भी ईश्वरीय कृपा की जरुरत होती है, क्योंकि जिसे खुद ईश्वर होने का भान हो जाता है, वो तो जब तक खुद को मिटा नहीं लेता, इसी अहं में वह जिन्दा रहता है, कि वो स्वयं सब कुछ ठीक कर लेगा।