अपनी बात

अरे भाइयों, इन चालाक लोगों के लिए क्यों आंसू बहाते हो, अगर आंसू बहाना ही हैं तो…

अरे इनके लिए क्यों रोते हो, क्यों आंसू बहाते हो, इतना दर्द क्यों छलकाते हो, अगर तुम इनके लिए नहीं भी रोओगे, नहीं आंसू बहाओगे या दर्द नहीं छलकाओगे तो ऐसा नहीं कि देश बर्बाद हो जायेगा या ये बर्बाद हो जायेंगे, ये तो आज एबीपी में हैं, कल उछलकर किसी दूसरे जगह चले जायेंगे, ये जाते भी रहे हैं, ऐसा करते भी रहे हैं, इसलिए नहीं कि इन्हें देश से प्यार था, बल्कि इन्हें जहां ज्यादा माल मिला, सुविधाएं मिल गई और वे वहां पहुंच गये, ये कब हमारी और हमारे देश के बारे में सोचे है कि सोशल साइट पर उधम मचाए हुए हो।

जरा आप इन्हीं से पूछो कि जहां ये काम करते थे, या काम कर रहे हैं, वहां कई इनसे नीचे या इनके अंदर काम करनेवाले ईमानदार पत्रकार, जिनका वेतन इतना भी नहीं कि वे घर चला सकें, उन्हें लात मारकर निकाल दिया गया, पर क्या ये उनके हक के लिए लड़े या उनके लिए संघर्ष किया, नहीं तो फिर इनके लिए, इतना बड़ा हंगामा क्यों? अगर ये बड़े पत्रकार और ईमानदार पत्रकार हैं तो आजकल सोशल साइट का युग हैं, ये कहीं पर रहकर क्रांति कर देंगे, क्योंकि ये ब्रांड बन चुके हैं, पर जरा उनकी सोचो, जो ब्रांड नहीं बन सकें, पर उनकी ईमानदारी से वह संस्थान और देश आकाश को छुआ, उसके नाम भी आपको याद है, नहीं न…, और इसके बावजूद, आप चल दिये पुण्य प्रसुन वाजपेयी जिन्दाबाद और रवीश कुमार जिंदाबाद करने।

ऐसा नहीं कि जिस संस्थान में ये काम करते थे, वे दुध के धुले थे, या इनके काम दुध के धुले थे, याद करो अरविन्द केजरीवाल और पुण्य प्रसून वाजपेयी प्रकरण, आज भी यू-ट्यूब पर विद्यमान है, उसे देखकर पता लग जायेगा कि ये कितने ईमानदार है, पत्रकारिता के प्रति, अरे ये तो आज यहां से हटा, इसके लिए कई राजनीतिबाज, धंधेबाज दौड़ पड़ेंगे, पर जो सही मायनों में ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ है, उनकी जरा सोचो। जिनके खिलाफ बेवजह के केस दर्ज किये जा रहे हैं, उन्हें कहीं टिकने नहीं दिया जा रहा, उनके संस्थानों में जाने के पहले, उस व्यक्ति को बाहर निकालने का फोन चला जा रहा है, फिर भी वह व्यक्ति नहीं झूक रहा। लड़ना हैं तो उसके लिए लड़ों जो तुम्हारे रांची में ही एक अखबार में कैमरामैन काम करता था, जो एक संपादक की प्रताड़ना के कारण आत्महत्या कर बैठा, अरे लड़ना है तो उसके लिए लड़ों, जिस अखबार में जिस पत्रकार की बाइलाइन समाचार छपती थी, और जब वह मरा तो उस अखबार ने उसे अपना मानने से ही इनकार कर दिया, यानी लड़ो उसके लिए, आंसू बहाओ, उसके लिए, जो सही मायनों में ईमानदार हो, क्योंकि ईमानदारी बहुत बड़ी चीज हैं, उसे देखने के लिए सामान्य आंखों की जरुरत नहीं, बल्कि असामान्य आंखों की जरुरत पड़ती है।

ऐसा नहीं कि दुनिया ईमानदारों से खाली हैं, पर सच्चाई यह है कि आजकल ईमानदारों के लिए कोई लड़ता ही नहीं, बस टीवी देखा, चेहरा देखा, एंकर की एक्टिंग देखी, थोड़ा उसके गरीबों के प्रति प्रोड्यूसर के इशारे पर चेहरे की बनावट और दो बोल का सुन लिये, हिसाब लगा लिया कि ये आदमी ईमानदार होगा, जबकि सच्चाई दुसरी होती है, अरे इन लोगों के घर पर जाकर उनके डाइनिंग रुम देखकर आ जाओ, ये इतना कमा चुके होते हैं कि अगर ये कहीं काम नहीं भी करेंगे, तो इनके सात पुश्त आराम से खायेंगे, राज्यसभा जायेंगे, और तुम केवल इनके झोला ढोते रह जाओगे, जिन्दाबाद-मुर्दाबाद कहते रह जाओगे, और हां, ये मत समझ लेना कि मैं इनकी आलोचना कर रहा हूं तो मैं मोदी का समर्थक हो गया, मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि जिनके लिए तुम आंसू बहा रहे हो, वे आंसू बहाने के लायक भी नहीं।

एक उदाहरण – मैं कुछ दिनों के लिए आइपीआरडी में काम कर रहा था, उसी दौरान, मैंने रांची के कई अखबारों-चैनलों, यहां तक की सरकारी सम्पादकों को मुख्यमंत्री के प्रधानसचिव, सचिव, निदेशक और मुख्यमंत्री के समक्ष नाक रगड़ते हुए देखा तथा उनके साथ दांत निपोड़ते हुए सेल्फी लेते हुए देखी तथा उसी आदमी को अपने फेसबुक पर ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठता की डींगे हांकता हुआ भी देखा, जिस पर एक नहीं सैकड़ों कमेन्ट्स आज भी टंगे हैं, कमेन्ट्स भी ऐसे-ऐसे, जिससे लगता है कि वो भ्रष्ट संपादक भगवान विष्णु का दसवें अवतार के रुप में अवतरित हुआ है, जबकि आज भी कई ईमानदार पत्रकार अपने घरों में बैठकर दो रोटी के लिए तरस रहे हैं, अपने इज्जत बचाने के लिए लगे हुए हैं, पर कोई उन पर ध्यान हीं नहीं दे रहा, उसका मूल कारण कि हम अब भारतीय हैं ही नहीं, हम शत प्रतिशत अभारतीय हैं, जिसे ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ लोग पसन्द ही नहीं, वह बस धोखा देना और धोखा खाकर जीने को ही जीना समझ चुका है, ऐसे में कोई क्या ईमानदारी से रहेगा और क्या बच पायेगा?

अंत में, हम ऐसे लोग, जो ईमानदारी से पत्रकारिता कर रहे हैं तथा अपने जैसे ईमानदार लोगों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उनका तहेदिल से शुक्रिया अदा करते हैं, पर ऐसे लोग जो सिर्फ स्वयं को ईमानदार घोषित कर, अंदर से तरमाल खा रहे हैं, और अखबारों में केन्द्र व राज्य सरकार की स्तुति गाते हैं तथा सोशल साइट पर क्रांतिवीर बनते हैं, उनकी कड़ी आलोचना करते हैं, और करते रहेंगे।

One thought on “अरे भाइयों, इन चालाक लोगों के लिए क्यों आंसू बहाते हो, अगर आंसू बहाना ही हैं तो…

  • राजेश कृष्ण

    बड़े नस्ल के ब्रांडेड चोर है ये सब,,जनता को ठगने वाले मदारी मीडिया

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