अपनी बात

जो आप 21 जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के दिन करेंगे, वह केवल व्यायाम है, न कि योग

इसमें कोई दो मत नहीं कि जो आप 21 जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के दिन करेंगे, वह केवल व्यायाम है, न कि योग, तो फिर योग है क्या? योग कसरत करने का नाम नहीं, योग व्यायाम करने का नाम नहीं, योग हाथ-पांव या सिर-गाल हिलाने का नाम नहीं। योग का मतलब है चित्त को विभिन्न वृत्तियों अर्थात् आकारों में परिणत होने से रोकना, जिसे उपनिषद ने कह डाला – योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः। तदा द्रष्टुः स्वरुपेSवस्थानम्। जिसके कारण उस समय इस निरोध की अवस्था में द्रष्टा पुरुष अपने अपरिवर्तनशील स्वरुप में अवस्थित रहता है।

इसीलिए योग के बारे में हमारे ऋषियों, महर्षियों, संन्यासियों ने कह डाला कि योग आत्मा का विज्ञान है, यह निरपेक्ष है, यह सभी के लिए हैं, जो परम आनन्द को प्राप्त करना चाहता हैं, क्योंकि परम आनन्द को प्राप्त करने का अधिकार सभी को हैं, जिसने इस अवस्था को योग के माध्यम से प्राप्त कर लिया, उसका जीवन धन्य हो गया, नहीं तो वो खुद समझे कि उसने अपने जीवन में क्या किया? या उसने जीवन किसलिए धारण किया था?  

यह योग ही हैं, जो मनुष्य को मन की वृत्तियों से हटाकर अपरिवर्तनशील स्वरुप में अवस्थित कर देता है, जबकि बाकी समयों में द्रष्टा वृत्ति के साथ एकरुप होकर रहता है। अब सवाल उठता है कि वृत्तियां कितनी होती है, स्पष्ट है कि वृत्तियां पांच होती हैं, जिनमें कुछ क्लेशयुक्त और क्लेशरहित होती है। जिन्हें हम प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और स्मृति अर्थात् सत्यज्ञान, भ्रमज्ञान, शब्दभ्रम, निद्रा और स्मृति कहते हैं।

अब प्रमाण क्या है? प्रत्यक्ष अर्थात् अनुभव, अनुमान और आगम अर्थात् विश्वस्त लोगों के वाक्य ये तीन प्रमाण है। विपर्यय का अर्थ है मिथ्याज्ञान, जो उस वस्तु के यथार्थ स्वरुप में प्रतिष्ठित नहीं हैं। विकल्प का अर्थ है यदि  किसी शब्द से सूचित वस्तु का अस्तित्व न रहे, तो उस शब्द से जो एक प्रकार का ज्ञान उठता है, उसे विकल्प या शब्दजाल कहते है। निद्रा उसे कहते है, जो वृत्ति शून्यभाव का अवलम्बन करके रहती हैं और स्मृति अनुभव किये हुए विषयों को मन से लोप न होना और संस्कारवश उनका ज्ञान के स्तर पर आ उठना स्मृति कहलाता है. तथा यह निरन्तर अभ्यास और वैराग्य से उन सारी वृत्तियों का निरोध होता है।

अब सवाल उठता है कि अभ्यास और वैराग्य है क्या? वृत्तियों को पूर्णरुप से वश में करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहना ही अभ्यास है, दीर्घकाल तक परम श्रद्धा के साथ उस परमपद की प्राप्ति के लिए सतत चेष्टा करने से यह अभ्यास दृढ़भूमि अर्थात् दृढ़ अवस्थावाला हो जाता है, जबकि देखे और सुने हुए विषयों के प्रति तृष्णा का सर्वथा त्याग कर देनेवाले में जो एक अपूर्व भाव आता है, जिससे वह समस्त विषय वासनाओं का दमन करने में समर्थ होता है, उसे वैराग्य या अनासक्ति कहते है।

अब आप खुद समझिये, कि क्या 21 जून को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ रांची में थोड़ा बहुत कसरत कर लेने से आप अपने वृत्तियों पर नियंत्रण कर लेंगे, क्या ये होर्डिंग-बैनर में छपे पोस्टर और उनसे प्रभावित होकर, जिसे आप योग समझकर कर रहे हैं, क्या वह योग हैं और अगर नहीं तो फिर योग क्या हैं, इसको जानने के लिए सतत प्रयत्नशील रहिये, और यह योग के बारे में सही जानकारी आपको वे ही लोग दे पायेंगे, जो सचमुच योग के बारे में जानते हैं, योग के गूढ़ रहस्यों को जानते हैं, और फिलहाल रांची में एक ही वो मठ हैं, जिसमें संन्यासियो का समूह निरन्तर योग के द्वारा अपने वृत्तियों पर नियंत्रण कर, केवल अपना ही नहीं, बल्कि समस्त मानवजाति का उद्धार करने में लगे हैं, जिसका नाम है – योगदा सत्संग मठ।

जिसकी स्थापना परमहंस योगानन्द जी ने 1917 में सिर्फ इसीलिए कि, ताकि लोग योग के रहस्य को जानकर, उस परम आनन्द को प्राप्त कर सकें, जिस परम आनन्द की प्राप्ति के लिए देवताओं, ऋषियों, योगियों-मुनियों का समूह निरन्तर योग-साधना में लगा रहता हैं। यह याद रखिये एक गृहस्थ भी योग-साधना से उस परम आनन्द को प्राप्त कर सकता है, जिसे पाने का जन्मसिद्ध अधिकार उसे भी हैं। इसलिए व्यायाम को योग समझने का भूल न करें।