रांची में वृंदावन का सुख पा रहे रांची के चुटियावासी, श्रीकृष्ण रचित महारास के आनन्द में डूबे

जब आप अहंकार में रहेंगे तो ईश्वर को कैसे पायेंगे? ईश्वर को पाने के लिए अहंकार का परित्याग करना होगा, क्योंकि अहंकार ईश्वर को पसंद नहीं, जब आपको स्वयं पर ज्यादा भरोसा हो जाता है तो ईश्वर आपसे बहुत दूर हो जाते हैं, पर जैसे ही आप स्वयं का परित्याग कर यह कहने लगते है कि इसमें मेरा कुछ नहीं, सब प्रभु का किया हुआ है, प्रभु ही सब कुछ हैं, जिन्होंने हमें उपकृत किया हैं तो बस लीजिये प्रभु आप पर कृपा लूटाने लगते है, आपकी चिन्ता उनकी चिन्ता होने लगती है, ठीक उसी प्रकार जैसे मैया यशोदा जब भगवान श्रीकृष्ण को ओखल में बांधने का प्रयास करती है, तब भगवान को बांधने में नाकामयाब रहती है, पर जैसे ही वह कहती है कि अरे कन्हैंया तू बंधता क्यों नहीं, रस्सियां छोटी कैसे हो रही है, जा मैं हार गई, लीजिये कन्हैंया तभी मां यशोदा के हार माननेवाली भाव पर रीझ जाते हैं, और स्वयं बंध जाते है, कहने का तात्पर्य है कि भगवान को आप अपने भाव रुपी डोर से अपने हृदय में बांधने का प्रयास करे, निश्चय ही इससे सफलता आपको मिलेगी। उक्त बातें आज रांची के चुटिया में नवनिर्मित वृंदावनधाम में चल रहे श्रीमदभागवत कथा ज्ञान यज्ञ के छठे दिन महाराष्ट्र से आये भागवताचार्य संत मणीषभाई जी महाराज ने भक्तों को कहीं।

उन्होंने महारास उत्सव की चर्चा करते हुए कहा कि जब भगवान श्रीकृष्ण शरदपूर्णिमा को महारास कर रहे थे, तभी उन्होंने गोपियों को अपने वंशी के मधुर तान सुनाकर अपने पास बुलाया, और समस्त गोपियों के साथ सहस्र रुप धारण कर एक नारायण ने रास रचाया पर जैसे ही गोपियों के मन में अहं भाव जागा कि भगवान सिर्फ उनके है, वे महारास उत्सव से स्वयं को अलग कर, राधा के संग रास रचाने लगे और जब राधा के मन में भी अहं भाव जागा कि श्रीकृष्ण सिर्फ उनके हैं, तब भगवान नारायण ने राधा का भी परित्याग किया। ये घटना हमें बताती है कि हमें सिर्फ स्वयं या अहं को अपने हृदय में स्थान नहीं देना है, सिर्फ भाव को, भक्ति को अपने हृदय में स्थान देकर कन्हैया को रिझाना है, अगर आप ऐसा करते है, तो कन्हैया आपके, नहीं तो कन्हैया को पाना इतना आसान नहीं।

उन्होंने भगवान कृष्ण के कुछ अनछुए पहलूओं से श्रद्धालुओं को परिचय कराया, उन्होंने बताया कि कैसे सुखिया रुपी वृद्धा जो फल बेच रही हैं, वह नंदबाबा के घर गुहार लगा रही है, कि कोई फल ले लें। बालक कन्हैया फल बेच रही सुखिया के पास जाकर फल मांगते है, सुखिया बालक कन्हैया को फल के बदले कुछ घर से लाने को कह रही है, इधर भगवान चावल के कुछ कण लेकर सुखिया के पास पहुंच रहे हैं, भगवान के छोटे-छोटे हाथों में चावल के कणों की संख्या गिनने लायक है, फिर भी इसकी परवाह न कर, सुखिया भगवान कन्हैया के सुंदर रुप को देखकर रीझ गई है, वह फल भगवान को देकर, भगवान से लिए चावल के कण को लेकर अपने घर चल दी है, घर पहुंच कर जब टोकरे देखती है, तो उसके टोकरे हीरे-जवाहरात से भरे हैं, पर वह उन हीरों-जवाहरातों पर मोहित नहीं है, वह तो भगवान के बालस्वरुप को याद कर, धन्य हो रही है, वह कहती है कि हर जन्म में भगवान के दिव्य स्वरुप के दर्शन हो, वह हरदम इस धरा पर आती रहे, ये भाव लेकर अपने आप को धन्य करती है, इसलिए भाव अगर हो तो सुखिया के जैसा हो, नहीं तो नहीं। उन्होंने बताया कि ये सुखिया कोई और नहीं, बल्कि श्रीरामजन्म के समय जो मां शबरी थी, वहीं द्वापरयुग में सुखिया बनकर भगवान कन्हैया के दिव्य दर्शन को पहुंच गई है, इसलिये ये याद रखिये, जो भी भगवान का एक बार हो गया, भगवान उसे हर बार अपने चरणारविन्द की सेवा के लिए अपनी ओर खींच लाते है, इससे बड़ा भाग्य एक भक्त के लिए और क्या हो सकता है।

उन्होंने सभी से कहा कि आप अपने अंदर श्रीकृष्ण के चरित्र को उतारें, गो सेवा करें, गोग्रास निकाले, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने जो गो की मह्त्ता बताई हैं, वो अनुकरणीय है, भगवान श्रीकृष्ण ने गो को मां कहकर पुकारा है, क्योंकि ये सही में मां की तरह हमारे जीवन से लेकर मृत्यु तक मां की तरह सेवा प्रदान करती है, इसलिए गो को सामान्य पशु मानना भी पाप है। उन्होंने एक प्रसंग सुनाया कि जब मां यशोदा ने कन्हैया से गो को पशु मानते हुए कुछ शब्द कहें तो श्रीकृष्ण ने यहीं कहा था कि यशोदा मैया, ये गो पशु नहीं, बल्कि ये भी मैया है, ये हमारी ठीक उसी प्रकार सेवा करती है, जैसे तू हमें करती है, इसलिए जो भी कन्हैया को मानता है, वह कन्हैया के इस भाव को मन में उतारें। ये गिरह बांध लें, कि भारत कृषि प्रधान देश है, और इसकी किस्मत गो-सेवा से ही चमक सकती है।

उन्होंने कहा कि जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था तो ऐसा नहीं कि देश की स्थिति बेहतर थी, जो आज देश की समस्या है, ठीक उसी प्रकार की समस्या थी। कंस ने सभी आसुरी शक्तियों को अपने में मिला लिया था और ब्रजमंडल के ग्वाल बालों और उनके निवासियों पर अत्याचार कर रहा था, भगवान श्रीकृष्ण ने संकल्प लिया कि वह कंस की अत्याचारों से ब्रजमंडल को मुक्त करायेंगे और उन्हें ऐसा करके दम लिया, इसलिए आप भी भगवान श्रीकृष्ण की तरह संकल्प लें कि भारत जो विभिन्न समस्याओं से जकड़ा है, उन समस्याओं से आप भी इस देश को मुक्त करायेंगे, अपने धर्म और अपनी संस्कृति को पुनः उसी रुप में स्थापित करेंगे, जैसा कि श्रीकृष्ण के समय था।