अपनी बात

ये आधुनिक डकैत घोड़ों की सवारी नहीं, मंत्रियों/मुख्यमंत्रियों के कंधों की सवारी करते हैं, फिर जनता के धन को लूट, ऐश करते हैं

ये आधुनिक डकैत हैं, ये घोड़ों की सवारी कर डकैती नहीं करते, बल्कि ये मंत्रियों/मुख्यमंत्रियों की कंधों पर बैठकर सवारी करते हुए, डकैती करते हैं, लूटपाट करते हैं, करोड़ों-करोड़ एक बार में डकार जाते हैं और हेकड़ी भी दिखाते हैं। हेकड़ी भी ऐसी कि देश की सर्वोच्च एजेंसियां भी कभी-कभी इनसे भय खा जाती हैं, पर इन्हें किसी का भय नहीं होता, क्योंकि इन्हें इस बात का पूर्ण विश्वास है कि स्वर्ग में भी लक्ष्मी का ही राज चलता हैं तो इस धरती पर लक्ष्मी का राज क्यों नहीं चल सकता?

तभी तो जब देश की सर्वोच्च जांच एजेन्सियां इन्हें जांच के लिए, पूछताछ के लिए बुलाती हैं तो वे बीमारी का बहाना बनाते हैं, इन्हें नाना प्रकार की बीमारी भी ऐसे ही समय पर आती हैं, जब इन्हें जांच एजेंसियों का सामना करना होता हैं और इस दौरान वे ऐसे-ऐसे भव्य अस्पतालों में बेड पर जाकर सो जाते हैं, जैसे लगता हो कि ये अब कभी बेड से उठेंगे ही नहीं, पर जैसे ही अदालतीय कृपा इन पर बरसती हैं, ये तुरन्त उठ खड़े होते हैं, जैसे लगता है कि इन्हें किसी प्रकार का बीमारी हुआ ही नहीं था।

आप अगर सुप्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद का “नमक का दारोगा” के प्रमुख खलनायक पं. अलोपीद्दीन से इन सब की तुलना करते हैं तो आप गलत हैं, क्योंकि पं. अलोपीद्दीन में तो थोड़ी शराफत भी झलकती हैं, जब वे अंत में दारोगा पद से निवृत्त हो चुके वंशीधर के पास खुद पहुंच जाते हैं, और अपनी गलती स्वीकार करते हुए, उन्हें अपने यहां नौकरी पर रखने की बात करते हैं।

लेकिन आधुनिक डकैत इन सब से परे हैं, ये तो अपने विरोधियों में से/इनके खिलाफ आवाज उठानेवालों में से किसी को भी फंसा सकते हैं, उसे सदा के लिए जेल में बंद करवा सकते हैं, उसके जीवन के साथ खेल सकते हैं और इन सभी कार्यों के लिए राज्य व देश में जितने भी पुलिस थाने बने हैं, उनकी सहायता लेकर वे अपने विरोधियों का मुंह बंद नहीं, बल्कि सफाया भी करवा सकते हैं।

ये तो रहे मंत्रियों/मुख्यमंत्रियों के कंधों पर सवारी कर लूटपाट मचानेवाले आधुनिक डकैत। कुछ डकैत तो मंत्री व मुख्यमंत्री के पदों को भी सुशोभित किये हुए हैं। अदालत उन्हें सजा भी दी हैं। कुछ सजा भी काट रहे हैं। पर आज भी उनके कार्यकर्ता, उनको चाहनेवाले पत्रकार, उनकी जाति की जनता उन्हें अपना पुरोधा मानती हैं। खुब जोर-शोर से ये कहने से नहीं चुकते कि उनके नेता को फंसाया गया हैं, नहीं तो इससे भी बड़े-बड़े घोटाले/डकैतियां देश में हुए हैं, आखिर उन नेताओं को सजा क्यों नहीं मिली? ऐसा कहनेवाले डकैती में भी अगड़ा-पिछड़ा का भाव जगा देते हैं, जिससे डकैती करनेवालों का मनोबल और बढ़ता हैं तथा देश व समाज का चूना लगता रहता है।

हमारे देश में एक नहीं, अनेक पार्टियां है। जिनके खानदान के लोग आजादी के बाद से ही देश-सेवा, राज्य-सेवा के नाम पर डकैतियां करते रहे। विदेशी बैंकों में भारतीय मुद्राओं को भरते रहे पर क्या मजाल कि भारत की जनता उन्हें दंडित करें, वे तो आंखों पर बिठाकर उन्हें रखते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यही उनके भाग्य-विधाता हैं, चाहे इन राजनीतिक खानदान से आये लोग मूर्ख, लम्पट या एक नंबर के गधे ही क्यों न हो? नहीं तो जो चीन मात्र 40 वर्षों के अंदर अमेरिका को टक्कर दे रहा हैं, वही उसका पड़ोसी भारत हु-तु-तू नहीं खेल रहा होता या अमेरिकी डॉलर का गुलाम नहीं होता।

आप सर्वेक्षण करा लीजिये। हमारे देश के ज्यादातर नेता, खुलकर बोले तो 90 प्रतिशत नेता (जिनमें पत्रकार से बने नेता भी शामिल हैं, जो विभिन्न नेताओं के तलवे चाटकर देश व राज्य के प्रमुख पदों पर चिपके हुएं हैं) देश व राज्य के प्रति ईमानदार नहीं हैं, जितना वे अपनी पत्नी, बेटे-बेटियां, बहू-दामाद, आनेवाली सात पीढ़ियों तथा अपने साथ चलनेवाले कनफूंकवों-सलाहकारों के प्रति ईमानदार है।

ये सत्ता में आते ही, सर्वप्रथम भ्रष्ट आईएएस-आईपीएस की सूची बनाते हैं और इन्हें उन जगहों पर स्थापित करते हैं, जिनसे उनके काम सधने हैं। फिर इन सब की सहायता से देश व राज्य को लूटते हैं और फिर देश या राज्य के उन प्रमुख स्थानों पर जमीन खरीदते हैं, अपने प्रिय प्रतिनिधियों-सलाहकारों के माध्यम से माल (धन) बटोरते हैं, अरबों की संपत्ति अरज लेते हैं, ताकि उनकी आनेवाली सात पीढ़ियां आराम से जीवन बसर कर सकें।

पर ऐसा होता नहीं क्योंकि कर्मफल के सिद्धांत के अनुसार ईश्वर समय-समय पर ऐसा-ऐसा दंड देता है कि कोई जेल में सड़ता हैं, तो किसी का बेटा पागल हो जाता है, कोई जिंदगी भर खुद या अपने बेटे-बेटियों के लिए महंगे-महंगे अस्पतालों या विदेश का चक्कर लगाता है, पर उसे शांति मिलती नहीं। वो शांति के लिए फिर धार्मिक महंथों/संस्थानों के चक्कर लगाता हैं, फिर वे भी महंथ और संत इन नमकहरामों/देश के लूटेरों से अपने हित में उनसे लूटे हुए धन को स्वयं के लिए प्रयोग करता है। इसके कई उदाहरण आस-पास में हैं, आप थोड़ा सा ध्यान या चिन्तन करें। आपको स्पष्ट दिखेगा, नहीं तो आप जातीय उन्माद में फंसे हैं तो फिर ये कभी आपको दिखाई नहीं पड़ेगा, क्योंकि आप दृष्टिदोष के शिकार है।

मैं तो देख रहा हूं, देखा हूं कई लोग देश के प्रमुख पदों को सुशोभित किये, आज वे उस पद पर नहीं हैं, आज उन्हें कोई नहीं जानता। कुछ लोग तो जीवित हैं, पर मरे हुए के समान है, कोई पूछता नहीं। फिर भी उन्हें इस बात की गलतफहमी होती हैं कि लोग उन्हें जान रहे हैं, भाई गलतफहमी में रहने का तो सभी को अधिकार है। मनोज कुमार की फिल्म यादगार का वह अमर गीत का अंतरा तो साफ कहता है – “दो किस्म के नेता होते हैं, इक देता है, इक पाता है, इक देश को लूट के खाता है, इक देश पे जान गवांता है, इक जिन्दा रहकर मरता है, इक मरकर जीवन पाता है, इक मरा तो नामोनिशां ही नहीं, इक यादगार बन जाता है।”

अंत में भारत देश या बिहार-झारखण्ड जैसे राज्य अथवा देश के अन्य राज्यों को जो होना हैं, सो होगा ही, कर्मफल के सिद्धांत के अनुसार इन राज्यों और इनकी जनता को भी भोगना है, देखते हैं, इनके भाग्य में रोना है या हंसना, परन्तु वर्तमान की जो स्थिति इन आधुनिक डकैतों ने बना रखी हैं, उससे तो भविष्य साफ पता लग रहा है कि इन्हें सिर्फ और सिर्फ रोना है।