अपनी बात

सदन से ज्यादा चमक-दमक में ज्यादा रुचि ले रहे हैं सत्तारुढ़ दल के मंत्री व नेता

एक समय था माननीयों की सादगी चर्चा का विषय रहा करती थी, लोग दूर से ही देख कर भांप लेते कि वो व्यक्ति माननीय यानी विधायक या सांसद है, क्योंकि उनका पहनावा-ओढ़ावा ही ऐसा होता, जो औरों से अलग हटकर होता, खादी इनकी विशिष्टता में पंख लगा देती, खादी के वस्त्रों से ही इनका तन ढका हुआ होता और वे बेहद खास लगते, अब तो लगता है कि माननीयों के पहनावे-ओढ़ावे में खादी ही समाप्त हो गया है। ये माननीय जब सदन में होते तो अपने सवाल से सरकार को घेरने की मंशा इनकी रहती और लीजिये सरकार को घेर कर ही दम लेते।

यह उनका खास अंदाज होता, पत्रकारों की टीम भी इस बात पर खास ध्यान रखती कि आज सदन में क्या होनेवाला है और किनका प्रश्न कैसा रहेगा और उन प्रश्नों का जवाब विभागीय मंत्री दे पायेगा या नहीं। अब ये सारी बातों की हवा निकल गई है। न पहले जैसे माननीय है और न ही माननीयों से सवाल पूछनेवाले माननीय या विधानसभा की रिपोर्टिंग करनेवाले पत्रकार। सभी जगह क्षरण हुआ हैं तो यहा भी क्षरण है। अब तो माननीय इस पर ध्यान देते है कि आज कौन सा कपड़ा पहन कर चले, कि लोग देखते ही रह जाये।

कौन सा बालों में कलर डाले की उनका लूक कुछ अलग प्रकार का हो जाये, कौन सा आभूषण गले व हाथों में डाले की उनकी सुन्दरता में चार चांद लगा दें, आजकल तो प्रतिदिन का मेकअप भी खास हो गया है।  राजनीतिक पंडितों की माने, तो वो जमाना गया कि जब राजकोट के दीवान के बेटे महात्मा गांधी ने सब कुछ त्याग कर लंगोटी धारण कर ली थी। राजनीतिक पंडित बताते है कि महात्मा गांधी का उदाहरण इसलिए दे रहा हूं कि जल्द ही हम आगामी 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती वर्ष में होंगे।

कहने का तात्पर्य है कि महात्मा गांधी के पास न तो पैसे की कमी थी और न दौलत की, वे चाहते तो आराम से जिदंगी बसर कर सकते थे, मस्ती की फसल काटते हुए जिंदगी जी लेते, पर उन्होंने देश को देखा, देश की जनता को देखा, मर्म को समझा और सारे मेकअप, पहनावा-ओढ़ावा को श्रद्धांजलि देकर सादगी को ओढ़ लिया,जिसका परिणाम यह हुआ कि पूरा देश उनकी सादगी को अपनाकर देश की स्वतंत्रता संग्राम में कूद गया।

माननीयों को चाहिए कि भले ही महात्मा गांधी से कुछ सीखे या न सीखे, पर जहां का वे प्रतिनिधित्व करते हैं, उनके लोगों का तो स्मरण करें, उन्हें मालूम होना चाहिए कि वे अभिनेता या अभिनेत्री नहीं, जनप्रतिनिधि है, जनप्रतिनिधि को हमेशा तड़क-भड़क से दूर रहना चाहिए और सादगी के साथ सदन की गतिविधियों में भाग लेना चाहिए, पर जब आप सादगी को न अपनाकर तड़क-भड़क अपनायेंगे तो निःसंदेह लोग आपके उस तड़क-भड़क को अपनायेंगे।

उन जरुरतों को पूरा करने के लिए, गलत कार्य करेंगे, जो जरुरी भी नहीं, क्योंकि जीवन जीने के लिए विलासिता नहीं, बल्कि परमावश्यक वस्तुओं की आवश्यकता है और जब परमावश्यक वस्तुओं से उनका ध्यान बंटेगा तो निःसंदेह विलासिता की ओर ध्यान जायेगा और उनके घर की स्थिति खराब होगी, समाज रसातल में जायेगा, ये माननीयों को सोचना होगा। उन्हें सोचना चाहिए कि भारत और उसमें भी उनका झारखण्ड अमरीका या अमरीका में बसा कैलिफोर्निया नहीं है, इसलिए तड़क-भड़क से दूर, सादगी अपनाएं, सदन में भी सादगी दिखाएं तो ज्यादा बेहतर होगा।

खुशी इस बात की है कि भाजपा में ही बहुत सारे माननीय है जो अभी भी तड़क-भड़क से दूर है, विपक्ष में तड़क-भड़क में रहनेवालों की संख्या कम है, अच्छा रहेगा कि सभी सादगी को अपनाएं तथा महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलकर, झारखण्ड को बेहतर दिशा में ले जाये, नहीं तो जो देखने को मिल रहा हैं, उसका तो भगवान ही मालिक है।