अपनी बात

रस्सी जल गई पर ऐठन नहीं गया, नाराज भाजपाइयों को “दलाल” और “जयचंद” भी कहने लगे रघुवर

एक लोकोक्ति है। रस्सी जल गई, पर ऐठन नहीं गया। ठीक यही हालत  राज्य के निवर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास का हो गया है। इनके हाथों से सत्ता चली गई। भाजपा की नाक कट गई। भाजपा कार्यकर्ताओं ने पार्टी से दूरी बना ली। दूसरे दलों से उन दलों के विक्षुब्धों के भाजपा में मिलाकर पार्टी को कूड़ेदान बना दिया। जातिवाद का नंगा नाच किया।

स्वयं को भगवान की तरह पेश करना शुरु कर दिया और जब भाजपा तथा संघ व संघ के आनुषांगिक संगठनों के नाराज युवा कार्यकर्ताओं व नेताओं ने इनकी औकात बताई तो अब ये इन लोगों को दलाल और जयचंद से विभूषित करने लगे यानी ये सारे लोग इनके बंधुआ मजदूर है, ये जो कहें करें, और ये जब सत्ता में आये तो कनफूंकवों की सुनें तथा कनफूंकवों के लिए जिएं-मरें।

ऐसे में रघुवर जान लें कि अभी तो इनकी सत्ता गई हैं और जनता ने इन्हें नेता प्रतिपक्ष के लायक भी नहीं छोड़ा, अगर ये अपने आचरण में सुधार नहीं लाये, तो ये खुद जीवित रहते हुए भी अपना राजनीतिक जीवन सदा के लिए समाप्त कर लेंगे, क्योंकि राजनीति की पहली सीढ़ी है कि आप अपने नाराज चल रहे लोगों को भी गले लगाइये, उनसे मधुर संबंध बनाइये, उनकी नाराजगी को दूर करिये, क्योंकि राजनीति में जिसने भी ऐठन पाला, वो कालांतराल में खुद को ही समाप्त कर लिया।

हालांकि ये बातें राजनीति ही नहीं, हर जगह लागू होती हैं, पर चूंकि राजनीति में इसकी ज्यादा आवश्यकता पड़ती हैं, क्योंकि कौन, कब और किस समय शक्तिशाली हो जायेगा और आपकी पर कतर देगा, कहना मुश्किल है, शायद रघुवर दास को पता नहीं कि कल जिस भाजपा प्रदेश कार्यालय में अटल बिहारी वाजपेयी को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे थे।

वहां प्रेस को संबोधित करने के क्रम में जो लोग उनके आजू-बाजू बैठे थे, उन्हें टिकट न मिले, इसके लिए ज्यादा दिमाग खुद रघुवर ने ही लगाया था, रघुवर को पता होगा कि कल उनके आजू-बाजू कौन बैठे थे? एक थे रवीन्द्र राय और दूसरे यदुनाथ पांडेय। रवीन्द्र राय और यदुनाथ पांडेय दोनों लोकसभा और विधानसभा के टिकट के योग्य थे, पर इनदोनों को पार्टी ने रघुवर के कहने पर ही टिकट नहीं दिया, पर इन दोनों ने न तो कही पार्टी के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की और न ही किसी को जयचंद या दलाल कहा।

शर्म आनी चाहिए, राज्य के निवर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास और खुद को भाजपा का वरिष्ठ कहलानेवाले नेता को, कल तक प्रतिपक्ष के नेता को गालियां देते थे, अब अपने घर में ही भाजपाइयों को गालियां देने लगे, ऐसे में कौन उनके साथ रहेगा, जरुरत हैं, अपना व्यवहार बदलने की, चरित्र बदलने की, नहीं तो खुद भी जायेंगे और पार्टी को भी रसातल में ले जायेंगे।

ऐसे भी हमें क्या हैं, भाजपा रसातल में जाये, या उंचाई पर जाये। अभी इनको पता नहीं है कि सत्ता बदलने के बाद, क्या-क्या इन्हें झेलना है, अभी तो मिहिजाम थाने ने प्राथमिकी दर्ज की है, देखते जाइये इनके खिलाफ कितने प्राथमिकी दर्ज होते हैं, ये जो प्राथमिकी दर्ज कराने का अभियान अपने सत्ता में शामिल होने पर इन्होंने जो शुरु कराया था, अब यहीं प्राथमिकी अभियान इनके लिए सरदर्द होगा, क्योंकि “बोए पड़े बबूर के तो आम कहां से पाएं।”

कहते है, मैंने ईमानदारी से राज्य की सेवा की। कितनी ईमानदारी की, वो राज्य की मुख्य सचिव राजबाला वर्मा प्रकरण, खनन घोटाला, मोमेंटम झारखण्ड घोटाला, कंबल घोटाला, जनसंवाद केन्द्र घोटाला, स्किल घोटाला, नौकरी घोटाला आदि की सही-सही जांच हो जाये तो इनकी पूरी शेष जिंदगी होटवार में बीत जायेगी, फिलहाल मिहिजाम में जो प्राथमिकी दर्ज हुई हैं, उसका सामना करें और हां किसी को चुनौती देने से अच्छा हैं, कि अपने आचरण में सुधार लाएं, पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व को चाहिए कि ऐसे नेता को सबसे पहले प्रशिक्षण के लिए दिल्ली या नागपुर बुलाएं, नहीं तो झारखण्ड में भाजपा का श्राद्ध करने के लिए तैयार रहे।

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