जिस तरह की राजनीति देश और राज्य में हो रही है, जिस तरह जनता और नेता सबकी नैतिकता सवालों के घेरे में हैं, खुलेआम पैसों का बोलबाला हो, वहां हमारे जैसे लोग इस कीचड़ से दूर ही रहे तो अच्छाः अन्नी अमृता
जिस तरह की राजनीति देश और राज्य में हो रही है, जिस तरह जनता और नेता सबकी नैतिकता सवालों के घेरे में हैं। खुलेआम पैसों का बोलबाला हो, वहां हमारे जैसे लोग इस कीचड़ से दूर ही रहे तो अच्छा। ये वक्तव्य है, वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति में शुचिता को लेकर चल रही जमशेदपुर पश्चिम विधानसभा से चुनाव लड़ चकी अन्नी अमृता का। विद्रोही24 से बातचीत में वो यह स्वीकार करती हैं कि जब पब्लिक को अपने असली मुद्दों से मतलब नहीं, ज्यादातर वोट ही न करें और जो करें, उनमें से ज्यादातर मुर्गा-भात और पैसे के प्रभाव में रहें, तब ऐसे हालात में कोई मतलब नहीं बन जाता, इस कीचड़ में उतरने का।
अन्नी कहती है कि जब विधायक बनने का मतलब दुकानदारी चलाना हो और उसमें वे सारे लोग एक कॉकस बनाकर खास लोगों को आगे बढ़ाने में लगे हों तो कीचड़ में उतरने की मेहनत ही बेकार है। हर पल अजीबोगरीब लोगों से घिरे रहना ये सबके बस की बात नहीं। अन्नी कहती है कि वैसे उनका माहौल अच्छा बन गया था। सरयू राय की वापसी के बाद लोग कन्फ्यूजन के शिकार हुए। वर्ना इतना कम वोट नहीं आता। पर जो होता है, वो अच्छे के लिए होता है।
अन्नी ने कहा कि इस राजनीतिक अनुभव से ये पता चला कि हम इस कीचड़ के लिए नहीं बने हैं। साथ ही सिद्धांत का लबादा, ओढ़े लोगों की सच्चाई भी दिखी। बहुत सारे लोग जो उनका साथ दे रहे थे, बाद में सरयू राय का साथ देने लगे। इसमें राजपूत और भूमिहार दोनों जातियों के लोग शामिल थे। सभी का बिजनेस इंटरेस्ट था।
अन्नी अमृता के इस वक्तव्य को लेकर राजनीतिक पंडितो का कहना है कि अन्नी जो कह रही हैं। वो गलत नहीं हैं। जनता जो वोट देती हैं और राजनीतिबाज जो चुनाव जीतते हैं। दोनों एक ही हैं। दोनों को न तो देश से मतलब हैं और न समाज से, दोनों को अपनी-अपनी चिन्ताएं हैं। नहीं तो सरयू राय ही बताये कि चुनाव आने के कुछ वर्ष पहले तक या जनता दल यूनाईटेड का दामन पकड़ने के पहले तक जितना रघुवर दास के कुकृत्यों को लेकर मुखर थे। बाद में चुप्पी क्यों साध ली?
इसीलिए न, कि कही रघुवर दास के चाहनेवाले या उनकी जाति के लोग कही विरोध में न चले जाये और अगर विरोध में चले जाते तो सरयू राय के हाड़ में विधानसभा चुनाव जीतने की हल्दी थोड़े न लग जाती। जिस भाजपा के सजायाफ्ता सांसद ढुलू महतो चुनाव के ठीक पहले जमशेदपुर आकर सरयू राय को चुनौती दी थी। वो ढुलू जमशेदपुर फिर आकर सरयू राय के खिलाफ अभियान क्यों नहीं चलाया? सवाल तो अब भी हैं कि क्या अब जब सरयू राय धनबाद जायेंगे तो सजायाफ्ता ढुलू महतो के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे या उस अशोक महतो या उसके परिवार को न्याय दिलाने के लिए लड़ भी पायेंगे?
दरअसल आजकल की राजनीति जितना गिरो, उतना ही उपर उठने का नाम है। आपका जितना चारित्रिक पतन होगा। आप की गारंटी है कि आप अव्वल होते जायेंगे। उदाहरण कई हैं। आप उन उदाहरणों में से किसी भी एक उदाहरण को ग्रहण कर सकते हैं। इस बार कई विधानसभा सीटों पर नये-नये युवाओं ने अपना किस्मत आजमाया था, लेकिन उन युवाओं में जीत किसे मिली, तो जिसने जातिवाद का परचम लहराया या जमकर पैसे खर्च किये। हार किसे नसीब हुई, जिसने इन सभी से दूर, केवल विकासात्मक और समस्याओं की ओर ध्यान केन्द्रित किया।
तो जिस देश/राज्य में इस प्रकार की घटिया सोच रहती हो। उस देश का शिखर पर पहुंचना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन है। विद्रोही24 तो आज भी ताल ठोककर कहता है कि यहां गरीब सिर्फ ओर सिर्फ मरने और शोषित होने के लिए पैदा होते हैं और जो चालाक होते हैं, वे राजनीतिबाज बनकर इनका भक्षण करते हैं और उन्हें स्वयं का भक्षण कराने के लिए ये गरीब लोग ही उनका थाल भी सजाते हैं। हैं न आश्चर्य।
आप कलम और कैमरे के सहारे जनता के मुद्दों को उठाती रहें। राजनीतिज्ञों को भी सवाल पूछतीं रहें, वही बेहतर है। राजनीति दल-दल है और जहां ‘जितना अधिक दलदल होगा उतना अधिक कमल खिलेगा’ – मोदी जी ने कहा था।
अननी अमृता जी मैं आपकी इस बात से बिल्कुल भी सहमत नहीं है नाली साफ करने के लिए कीचड़ में उतरना ही पड़ेगा राजनीति की सारी गंदगी को साफ करने के लिए अच्छे लोगों को यहां आना ही होगा
आपने बहुत ही तार्किक विश्लेषण किया लेकिन हार नहीं मानना है। समाज कल्याण के लिए जहां तक सम्भव हो कार्य करते रहिए। एक भजन की कुछ पंक्तियां:
फल आशा त्याग शुभ काम करते रहिये,
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए।