देश में शायद पहली बार, HC में महाधिवक्ता और अपर महाधिवक्ता के खिलाफ अवमानना के केस को लेकर होगा 31 को फैसला

रुपा तिर्की ने आत्महत्या किया या षड्यंत्र से हत्या हुई? इस मामले में क्या निर्णय झारखण्ड उच्च न्यायालय लेगा यह तो पता नहीं? न्यायिक जांच होगी, पुलिस जांच करेगी अथवा सीबीआई जांच करेगी, इस पर तो फैसला बाद में होगा, यह मामला विचाराधीन है।दिनांक 13. 08. 2021 को, इस मामले में जो आदेश पारित किया गया, वह सीधे तौर पर न्यायालय के कार्य में व्यवधान उत्पन्न करने का प्रयास था।

महाधिवक्ता के द्वारा न्यायालय पर यह मौखिक रुप से आरोप लगाया गया। उन्होंने सुना है कहीं, यह मुकदमा दो सौ प्रतिशत सीबीआई को जांच करने हेतु जा रहा है, ऐसा उन्होंने वादी के अधिवक्ता राजीव कुमार को कहते सुना है। जिसका समर्थन अपर महाधिवक्ता ने भी किया।

राजीव सिन्हा विद्वान केंद्र सरकार के असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल ने न्यायालय के समक्ष प्रार्थना की कि इस प्रकार का बिना तत्व के आधारित न्यायालय को आरोपित करना न्यायालय के गरिमा को नीचे गिराना है और इस प्रकार के आरोप व्यर्थ है तथा न्याय के मंदिर की गरिमा का क्षरण है।

वरीय अधिवक्ता आर एस मजुमदार ने भी इस तरह के कपोल कल्पित आरोप का प्रतिकार किया। न्यायालय ने उक्त आरोप के बाद संचिका को मुख्य न्यायाधीश झारखंड के पास उचित निर्णय हेतु भेज दिया। न्यायाधीश संजय कुमार द्विवेदी ने लिखा इस प्रकार के मिथ्या आरोप पर किसी भी जज को मुकदमे से हटाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता जैसा कि इंदौर डेवलपमेंट अथॉरिटी वर्सेस मनोहर लाल एंड अन्य एवं अन्य के मुकदमे में माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा प्रतिपादित न्याय निर्णय पारित  किया गया है।

माननीय न्यायाधीश ने आगे लिखा न्यायालय पर जनमानस का विश्वास कम ना हो उसके लिए मैं यह संचिका व आदेश को माननीय मुख्य न्यायाधीश झारखंड को प्रशासनिक आदेश देने का निवेदन करता हूं। उसके उपरांत माननीय मुख्य न्यायाधीश ने याचिका की सुनवाई की स्वीकृति माननीय न्यायाधीश संजय कुमार द्विवेदी के न्यायालय में करने के लिए ही शक्ति प्रदान कर दी।

इस प्रकार की घटना झारखंड उच्च न्यायालय में एक काला इतिहास के रूप में जाना जा रहा है। झारखंड की पूरी न्याय व्यवस्था न्यायिक प्रक्रिया इस घटना के उपरांत अचंभित है, कैसे कोई महाधिवक्ता बिना किसी ठोस सबूत के मौखिक रूप से माननीय न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुंचाने का आरोप लगा सकता है?

कल इस मुकदमे में एक हस्तक्षेप याचिका दायर की गई उस पर सुनवाई हुई। अगली सुनवाई 31.08.2021 को सुनिश्चित है। वादी के द्वारा हस्तक्षेप याचिका एवं बहस के दौरान जो बातें सामने आई अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। वादी के वरीय अधिवक्ता आर एस मजूमदार व राजीव कुमार के द्वारा न्यायालय से प्रार्थना की गई, कि दिनांक 13.08.2021 को बिना साक्ष्य के मौखिक आरोप न्यायालय पर लगाये गये और इस आशय का शपथ पत्र देने से इनकार किया गया, जो दुर्भाग्यपूर्ण एवं न्यायालय के गरिमा को प्रभावित करने वाला रहा। जिसके लिए विद्वान महाधिवक्ता व विद्वान अपर महाधिवक्ता पर अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए।

सरकार की ओर से बचाव करते हुए सरकारी अधिवक्ता कौशिक सारखेल व सरकारी अधिवक्ता पी एस पति बार बार क्षमा मांगते हुए न्यायालय से यह प्रार्थना करते रहे, हस्तक्षेप याचिका पर किसी प्रकार का आदेश पारित ना कर मुख्य मामले में सुनवाई की जाए।

दोनों अधिवक्ताओं ने बार-बार न्यायालय से प्रार्थना किया, मुख्य मामले में सुनवाई की जाए अवमानना के मामले पर नहीं। मगर माननीय न्यायालय ने उनकी प्रार्थना अस्वीकार कर दी और अगली सुनवाई हेतु दिनांक 31.8.2021 को अवमानना याचिका के सुनवाई हेतु तिथि निर्धारित कर दी।

 माननीय न्यायालय ने अपने आदेश में लिखा। “वादी के तरफ से  विद्वान महाधिवक्ता व अपर महाधिवक्ता पर अवमानना चलाने हेतु प्रार्थना की गई है जिसकी सुनवाई 31.08.2021 को की जाएगी।” आगे जो भी निर्णय हो, अवमानना याचिका स्वीकार किया जाय अथवा नहीं। यह तो न्यायालय के निर्णय पर निर्भर करता है ‌

मगर सवाल जो है वह बहुत महत्वपूर्ण है ।

  1. आखिर रुपा तिर्की मामले में ऐसा क्या है जिससे सरकार बचना चाह रही है?
  2. आखिर रुपा तिर्की मामले में इतना महत्वपूर्ण क्या है जो विद्वान महाधिवक्ता न्यायालय पर झुठा आरोप लगा कर न्यायालय से बचने का प्रयास कर रहे है?
  3. आखिर पंकज मिश्रा को सरकार बचाने के लिए न्यायालय पर झुठा आरोप लगा कर भी बचाना क्यों चाह रही है इतना बड़ा निर्णय क्यों?
  4. न्यायालय के गरिमा को धूमिल कर क्या अपने पक्ष में आदेश पारित करवाया जा सकता है?
  5. विद्वान महाधिवक्ता पर अवमानना चलेगा अथवा नहीं यह तो पता अगली सुनवाई को चलेगा?

मगर इतना तो तय हो गया रुपा तिर्की मामले में कुछ तो है? सरकार किसी भी तरह से इससे बचना क्यों चाहती है, वो भी CBI जांच से आखिर क्यों?  कैसे भी जांच केंद्र के पास ना जाए। इसके लिए इतना बड़ा निर्णय? पहले सरकार ने कहा पुलिस जांच बहुत अच्छी तरह से कर रही है। पुलिस मामले को जांच कर सत्यता पर पहुंच चुकी हैं। अपराधी गिरफ्तार हो चुका है। दो-चार दिनों के बाद खुद सरकार ने न्यायिक जांच के लिए पूर्व मुख्य न्यायाधीश को जिम्मेदारी दे दी।

उसके उपरांत जब न्यायालय में सुनवाई होने लगी तो माननीय न्यायाधीश पर मिथ्या आरोप लगाकर खुद अवमानना मोल ले  लिया।माननीय न्यायालय सीबीआई को जांच देता अथवा नहीं देता यह तो अंतिम आदेश पर निर्भर करता। इतना उत्तेजित व्यवहार क्यों ? माननीय उच्च न्यायालय CBI जांच का आदेश पारित भी करता तो सरकार उच्चतम न्यायालय जा सकती थी। न्यायालय पर आरोप लगाने से कौन सा लाभ प्राप्त हुआ? उल्टा सरकार की किरकिरी।

सरकार के महाधिवक्ता के द्वारा स्वयं ही मिथ्या आरोप लगाकर एक नया का मुकदमा ले लिया गया, इसे कहते हैं उड़ता तीर पकड़ना।” नीतिशास्त्रगुनो राजा “। राजा को नीतिशास्त्र से चलना चाहिए। ना की कनफूंकवा शास्त्र  के शास्त्र ज्ञान से। मगर झारखंड में तो राजा को नीतिशास्त्र से ज्यादा कनफुकवों पर भरोसा है।

राजा, गलत नहीं है, कनफूंकवों ने राजा को फंसा दिया है। अवमानना याचिका पर आदेश हो ना हो मगर जिस प्रकार का आरोप लगाया जा चुका है माननीय न्यायालय द्वारा अब तक जो आदेश पारित हो चुके है। वह कुल मिलाकर माननीय न्यायालय, सरकार, विद्वान महाधिवक्ता , न्यायालय की गरिमा, सभी पर सवाल खड़ा हो गया है। प्रतिष्ठा का प्रश्न है। किसकी प्रतिष्ठा जाएगी या रहेगी?आगे का लेख 31.08.2021 को सुनवाई के उपरांत।