अपनी बात

भाजपा नेता ने इशारों में बता दिया कि भाजपा कार्यकर्ताओं को दो लाख का ठेका देकर जो चाहे वो नारे लगवाया जा सकता है, मतलब इनका कोई चरित्र नहीं होता

गजब हो गया, पहले भाजपा कार्यकर्ता चिरकुट हुए और अब दो लाख के ठेके दिलवाकर उनसे जो चाहे वो नारे लगवा लीजिये, मतलब भाजपा नेताओं की नजरों में उनके कार्यकर्ताओं की औकात दो कौड़ी से ज्यादा की नहीं। यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि अभी-अभी ताजा बयान भाजपा सांसद जो कभी झारखण्ड में मंत्री पद को सुशोभित कर चुके हैं, जो कभी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं, जो पिछले तीस सालों से विधायक व सांसद के पद को सुशोभित करते रहे हैं। आज भी धनबाद से भाजपा के सांसद हैं।

उनका बयान आज धनबाद से प्रकाशित होनेवाले एक अखबार में छपा है। जिसमें उन्होंने कहा हैं कि दो लाख का ठेका लेनेवाले नारे लगा रहे हैं – धनबाद का सांसद कैसा हो, फलां बाबू जैसा हो। आखिर इसका मतलब क्या हुआ? इसका मतलब हुआ कि भाजपा का कार्यकर्ता पैसे पर बिकता है, उसका कोई चरित्र नहीं होता, उसे दो लाख का ठेका देकर खरीदा जा सकता हैं और उससे जो चाहे जो बुलवाया जा सकता है।

उनके इस बयान के बाद धनबाद में ही नहीं बल्कि पूरे झारखण्ड में भूचाल सा आ गया है। उनके बयान से भाजपा ही नहीं, बल्कि अन्य दलों के कार्यकर्ता भी मर्माहत है। उनके इस बयान को बेहद आपत्तिजनक बताया है। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता अनिल पांडेय ने तो अपने सोशल साइट पर इस दर्द को बयां कर दिया है। उनका तो शीर्षक ही है – “दो लाख के ठेके लेने वाले राजनीतिक कार्यकर्ता”। हमने उनके बयान को हु-ब-हू अपने विद्रोही24 में प्रकाशित कर दिया हैं। आप भी पढ़ें।

“आज दैनिक भास्कर में माननीय सांसद श्री पशुपति नाथ सिंह जी ने एक इंटरव्यू के दौरान सांसद, विधायक मद से ठेका लेने वाले भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं का किसी संदर्भ में उल्लेख किया है। इसे सभी राजनीतिक दलों के परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।‌ अधिकांश राजनीतिक कार्यकर्ता साथियों का जीवन कष्टमय होता है। परिवार से भी उलाहना मिलता है, पड़ोस और समाज भी पीठ पीछे उपहास ही उड़ाते हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों के बड़े नेता अपने ही दल के कार्यकर्ताओं को  “ठेका लेने वाले कार्यकर्ता” कह कर संबोधित करें तो चोट अन्दर तक लगती है। प्रत्येक राजनीतिक दल के बड़े नेताओं का धर्म है कि वे किसी भी कारण से अपने दल के कार्यकर्ताओं का सार्वजनिक अपमान नहीं करें।

मैं व्यक्तिगत और सैद्धांतिक दोनों ही रूप से राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को सांसद/ विधायक मद से ठेका देने को सही नहीं मानता हूं, मगर सभी राजनीतिक दलों में अपने-अपने दल के सांसद/ विधायक मद से कार्यकर्ताओं को ठेका देने की परंपरा मान्य हो गई है। वस्तुत:  राजनीतिक कार्यकर्ताओं का तीन मुख्य दायित्व होता है:

१. अपने – अपने दल की नीतियों एवं कार्यक्रमों का आमजन में प्रचार – प्रसार करें ।

२. अपने – अपने दल के माध्यम से सामाजिक सेवा का कार्य करें।

३. पूर्वाग्रह मुक्त हो कर केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष अपने- अपने दल के स्थानीय नेताओं के कार्यकलापों की जानकारी दें।

आदर्श स्थिति तो यह है कि राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के लिए राजनीति गतिविधियां आमदनी या व्यवसाय का जरिया न हो, मगर इसके लिए जरूरी है कि सांसद/ विधायक भी इसका पालन करें। जबकि ऐसा होता नहीं है। इसके बहुत कारण हैं, जिन पर लगातार देशव्यापी चर्चा होती रहती है। सबसे प्रमुख कारण चुनाव और संगठनात्मक गतिविधियों का मंहगा होना।

बात साफ है। राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता साथी सांसद, विधायक मद से ठेका करते हैं और करते रहेंगे। अब यह भी साफ है कि जिस विधायक और सांसद के मद से ठेका लेंगे या मिलने की उम्मीद होगी तो उसके पक्ष में बोलना स्वाभाविक है और सांसद, विधायक ऐसा चाहते भी हैं। इसलिए किसी भी सांसद या विधायक को अपने- अपने राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं को “ठेका लेने वाला” कह कर अपमानित नहीं करना चाहिए।

मैं स्वयं भी वर्षों तक कांग्रेस पार्टी का कार्यकर्ता था। यह और बात है कि मैंने ठेका नहीं लिया, लेकिन जिन्होंने ठेका लिया, वे निष्ठावान, योग्य और कर्मठ कार्यकर्ता साथी हैं। बावजूद सभी बातों के जिसके सौजन्य से ठेका लेंगे, तो उसके पक्ष में अगर विचार रखते हैं और किसी को पसंद नहीं आता है, तो किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि “ठेके वाला कार्यकर्ता” कहकर मनोबल गिराए। इससे तकलीफ और आक्रोश होता है।”

ये तो रही अनिल पांडेय की बात। अब हम आपको ले चलते हैं। झारखण्ड विधानसभा के 2019 आम चुनाव में। जहां एक सत्ता में बैठे भाजपा नेता ने कई बार अपने ही कार्यकर्ताओं के लिए चिरकुट शब्द का प्रयोग किया और कई स्थानों पर जब उसके कार्यकर्ता उसके सम्मान में नारे लगाते या उस स्थल पर पहुंचते, जहां वो आनेवाला होता, वो खुलकर अपने कई कार्यकर्ताओं को चिरकुट कह डाला था।

उसी दरम्यान विद्रोही24 ने कई बार भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं को आगाह किया था कि इसके गंभीर परिणाम होंगे। हुआ भी यहीं। भाजपा कार्यकर्ता इतने नाराज हुए कि ‘चुपेचाप चचा साफ’ का नारा देकर भाजपा का ही पूरे राज्य से काम तमाम कर दिया। अब ऐसे में धनबाद के भाजपा सांसद का ये नया बयान क्या भाजपा के लिए टॉनिक का काम करेगा या भाजपा के अवसान का काम करेगा। ये भाजपा के दिग्गज ही चिन्तन करें, तो ज्यादा बेहतर होगा। हालांकि भाजपा कार्यकर्ताओं में इसको लेकर भारी रोष है।

विद्रोही24 ने धनबाद से लेकर रांची तक के कार्यकर्ताओं से इस संबंध में बातचीत की। सभी का यही कहना है कि भाजपा कार्यकर्ताओं की इज्जत तो भाजपा में अब है ही नहीं। पीएन सिंह ने तो इसको सिर्फ उभारने का काम किया है। आनेवाले समय में पीएन सिंह को ही नहीं, बल्कि पूरी भाजपा को खामियाजा भुगतना पड़ेगा, जो भाजपा कार्यकर्ता को बंधुआ मजदूर समझ रहे हैं, वे समझ लें कि भाजपा कार्यकर्ता इस अपमान को नहीं भूलेंगे।

एक कार्यकर्ता ने विद्रोही24 से बातचीत के क्रम में कहा कि पिछले 27 जून 2023 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मध्यप्रदेश के भोपाल से मेरा बूथ-सबसे मजबूत कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे और इस कार्यक्रम के द्वारा भाजपा कार्यकर्ताओं का हौसला-अफजाई कर रहे थे। मतलब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भाजपा कार्यकर्ताओं को सम्मान देने का काम करते हैं और दूसरी ओर झारखण्ड के प्रदेश स्तर के नेता भाजपा कार्यकर्ताओं का अपमान करने का कोई अवसर नहीं चूकते।

ऐसे में भाजपा का यहां नुकसान होना तय है। ऐसे में शायद ही भाजपा इस बार लोकसभा की कोई सीट जीत पायेंगी, क्योंकि कोई भी पार्टी को जीताने में उसके कार्यकर्ताओं का रोल अहम होता हैं, पर यहां भाजपा में तो कार्यकर्ताओं को अपमान करने का फैशन चल रहा है तो कौन भाजपा कार्यकर्ता होगा जो भाजपा के लिए लाठी भी खाये और अपमान भी सहे।