नहीं रहे अपने भावों से सभी के हृदय को गुदगुदा कर आध्यात्मिक रसपान करानेवाले स्वामी हितेषानन्द

आज सबेरे-सबेरे हृदय को वेध देनेवाली समाचार का सामना हुआ, जब हमको चाहनेवाले बिन्दु झा जी का फोन आया और उन्होंने सबेरे-सबेरे यह समाचार दिया कि स्वामी हितेषानन्द जी नहीं रहे। योगदा सत्संग मठ में उन्होंने बीती रात अंतिम सांस ली। यह समाचार सुनते ही मैं अवाक् रह गया। अवाक् इसलिए कि अब कभी भी स्वामी हितेषानन्द जी के वे भाव देखने को नहीं मिलेंगे और न ही वो आध्यात्मिक सुख प्राप्त होगा, जो उनके मुख से निकलनेवाले शब्दों-वाक्यों से सभी को प्राप्त होते थे।

फिलहाल रांची में योगदा सत्संग मठ बंद है, एक साल हो गये, वहां के संन्यासियों के मुख से निकले आध्यात्मिक प्रवचनों को सुनें, और इसी कोरोना काल में स्वामी हितेषानन्द जी का इस प्रकार चला जाना, उनके चाहनेवालों को कितना कष्ट दिया होगा, मैं समझ सकता हूं। चूंकि मैं योगदा सत्संग सोसाइटी से जुड़ा हुआ हूं, इसलिए  हमारा प्रत्येक रविवार को वहां जाना होता रहा हैं, इसी दौरान कभी-कभी उनके व्याख्यान सुनने को मिल जाते, जो सभी के मानसिक पटलों पर छा जाया करते।

मैंने उन व्याख्यानों को कई बार, अपने विद्रोही24 डॉट काम पर स्थान भी दिया। उनके व्याख्यान की खासियत थी कि जब वे बोलते थे, तो लोग कभी बोर नहीं होते थे, साथ ही कब कितना समय निकल गया, पता भी नहीं चलता था और इन्हीं समयों में किसने कितनी बार आध्यात्मिक सागर में डूबकी लगा ली, इसका आभास भी किसी को नहीं होता, और स्वामी हितेषानन्द बड़े ही सहज भाव में चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट बिखरते, ध्यान केन्द्र से निकल जाते।

आज हमें लगता है कि योगदा सत्संग मठ और जो लोग स्वामी हितेषानन्द जी को जानते हैं, उन्हें कितना नुकसान पहुंचा हैं? भले ही उनकी आत्मा ने उनका शरीर छोड़ा हो, पर उनके आध्यात्मिक व्याख्यान निश्चय ही जिन्होंने सुना हैं, उनके हृदय को आजीवन आह्लादित करता रहेगा। मेरी कभी स्वामी हितेषानन्द जी से आमने-सामने मुलाकात नहीं हुई, पर जब भी रविवार को उन्हें ध्यान केन्द्र में स्थित मंच पर शोभायमान देखता, समझ जाता कि आज आनन्द की विशेष वर्षा होनेवाली है, उनका व्याख्यान कभी भी सपाट नहीं होता, प्रश्न और उत्तर लिये होता।

वे योगदा से जुड़े भक्तों से बीच-बीच में सवाल कर देते और पता लगा लेते कि किन्हें योगदा के आध्यात्मिक व्याख्यानों में गहरी रुचि हैं, किन्हें योगदा के बताये आध्यात्मिक सुखों को प्राप्त करने में आनन्द हैं या कौन स्वयं को यहां आने के बावजूद भी समझ नहीं पाया है। मेरी आंखे भी, बराबर उन्हें ढुंढती रहती, और चाहती कि बार-बार उनके दर्शन हो, क्योंकि वे सरल, सहज और सहृदय थे। शायद कहा भी जाता है कि सरल, सहज व सहृदय रहनेवाला व्यक्ति ही आध्यात्मिक प्रवाह में गोता लगाता हुआ, ईश्वर को प्राप्त कर लेता है।

हमें याद है कि एक दिन वे स्वाध्याय, आध्यात्मिक पठन एवं आत्मविश्लेषण की योग साधना पर चर्चा कर रहे थे। उसी दौरान स्वामी हितेषानन्द ने कहा था कि एक योग ही है, जिसमें कथनी और करनी में अंतर नहीं चलता, इसलिए धार्मिक ग्रंथों के स्वाध्याय के साथ-साथ, जब तक उसे अपने जीवन में नहीं उतारा, तो उस स्वाध्याय का कोई अर्थ नहीं रह जाता, उन्होंने कहा था कि योग अपने आप में एक विज्ञान है, जो ईश्वर से एक सामान्य व्यक्ति का साक्षात्कार करा देता है, उन्होंने कहा कि पंतजलि ने अपने योगसूत्र में इसकी खूब चर्चा की है, जो लोग पतंजलि को पढ़कर, योग साधना में आरुढ़ है, उनका तो कोई जवाब ही नहीं।

स्वामी हितेषानन्द ने बताया था कि परमहंस योगानन्द जी की शिक्षा पतंजलि के अष्टांग पर आधारित है, यह जिंदगी के सारे उलझनों को ही समाप्त कर देती है, उन्होंने बताया कि याद रखे, शब्द कभी पूर्ण नहीं होते, शब्द वहीं पूर्ण होते है, जिनमें ईश्वरीय चेतना होती है। स्वामी हितेषानन्द के अनुसार, ईश्वर में रस है, इसलिए ईश्वर से आत्मसाक्षात्कार किया गुरु वहीं आनन्द प्रदान करता है, जो ईश्वर से प्राप्त हो सकता है, उन्होंने बताया था कि जो ईश्वरीय ज्ञान को भूल गया, जो अपने विचारों की शुद्धता को खो बैठा, जो अपने हृदय में मलिनता लिए बैठा है, वह स्वाध्याय का आनन्द नहीं उठा सकता, जरुरत है, ईश्वरीय ज्ञान के प्रति ललक को बढ़ाने की तथा अपने विचारों एवं हृदय की शुद्धता को बरकरार रखने की।