जो किसान आत्महत्या करें, वह किसान हो ही नहीं सकता…

किसान न हत्या करता है और न ही आत्महत्या। वह प्राणदाता है, वह अन्नदाता है, वह पूरे विश्व को अपने खून-पसीने से अन्न उपजा कर सभी का भरण-पोषण करता है, अगर वह आत्महत्या करने लगे, तो यह पूरे देश का दुर्भाग्य है, विश्व का दुर्भाग्य है और इस पाप से विश्व का कोई मानव बच नही सकता, क्योंकि जिसके अन्न खाकर वह जी रहा है, उसके सुख-दुख की जिम्मेवारी भी उसी की है, पर यह सोच आदर्श जीवन की पराकाष्ठा है, जो आज किंचित् मात्र भी पूरे देश-दुनिया में नहीं दिखाई देता।

जो लोग किसानों की समस्या को लेकर आंदोलन करते है, वे भी शानो-शौकत से जिंदगी जी रहे है, पर जिनके लिए वे आंदोलन कर रहे है, उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं दिखता। भारत और भारत के विभिन्न राज्यों में कई दलों की सरकारें बन गयी और हट भी गयी, अब ये कोई नहीं कह सकता है कि देश की जनता ने उनके दलों को मौका नहीं दिया। जहां वामपंथियों के शासन थे, वहां भी किसानों के चेहरे पर खुशियां नहीं दिखाई दी और जहां दक्षिणपंथियों ने शासन किया, वहां भी कोई बदलाव नही दिखा पर इन दलों से जुड़े नेताओं के चेहरे पर अद्भुत मुस्कान अवश्य दिखी। आश्चर्य इस बात की भी है कि कई किसानों के परिवारों के नेता, अधिकारी बने, मंत्री बने, देश के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचे, प्रधानमंत्री तक बने, पर हुआ क्या? राजनीति का प्रभाव कहिये या उसका चरित्र, सभी सत्ता के शीर्ष पर पहुंच कर कृषि और किसान को नजरंदाज कर दिया, उनकी मूल समस्याओं पर ध्यान ही नहीं दिया, नतीजा अखबारों और चैनलों में किसानो की आत्महत्या की खबर लोगों को उद्वेलित करती है।

स्वयं झारखण्ड में इन दिनों किसानों की आत्महत्या की खबर सुर्खियां बन जा रही है, इधर तो किसानों की आत्महत्या की खबर का तांता लगा हुआ है, विपक्ष किसानों की आत्महत्या पर राजनीतिक रोटिंयां सेंक रहा है, और सरकार तथा उसके अधिकारी किंकर्तव्यविमूढ़ है, उन्हें समझ में भी नहीं आ रहा कि क्या करें, फिर भी उनसे जो बन पड़ रहा है, वे कर भी रहे है, जैसा कि केन्द्र सरकार और राज्य सरकार ने किया…

किसानों को मात्र एक प्रतिशत के ब्याज पर कर्ज

केन्द्र सरकार ने किसानों को इसी साल 15 जून को बहुत बड़ी राहत दी। केन्द्र सरकार के अनुसार किसानों को अल्पावधि फसली कर्ज सात प्रतिशत की सस्ती दर पर मिलता रहेगा। वहीं जो किसान नियमित रुप से अपने कर्ज का भुगतान करते है, उन्हें चार प्रतिशत की दर पर वह ऋण मिलेगा, इसके लिए सरकार ने 20,339 करोड़ रुपये मंजूर किये। किसानों को फसल कटाई के बाद अपनी उपज के भंडारण के लिए भी सात प्रतिशत की दर पर कर्ज उपलब्ध होगा, यह व्यवस्था केवल 6 माह के लिए की गयी। यहीं नहीं प्राकृतिक आपदा से प्रभावित किसानों को राहत पहुंचाने के लिए सरकार ने उनकी पुनर्गठित कर्ज राशि पर पहले साल के ब्याज पर दो प्रतिशत ब्याज सहायता देने का फैसला किया।

14 जून 2017 को झारखण्ड सरकार ने अपने कैबिनेट के फैसले में राज्य के किसानों के लिए दिये जानेवाले कृषि ऋण पर मात्र एक प्रतिशत ब्याज वसूलने के प्रस्ताव पर सहमति प्रदान कर दी, इसके अनुसार वित्तीय वर्ष 2016-17 में जिन किसानों ने किसान क्रेडिट कार्ड से कर्ज लिया था और वह एक साल के अंदर इसे चुकाये हो, तो उन्हें सिर्फ एक प्रतिशत की दर से ब्याज का भुगतान करना होगा। नियमतः बेंक किसानों को सात प्रतिशत ब्याज पर कृषि ऋण देते है, एक साल के अंदर इसे चुकाने पर तीन प्रतिशत की कमाई केन्द्र सरकार करती है, किसानों को चार प्रतिशत ब्याज का ही भुगतान करना होता है, अब इस चार प्रतिशत में तीन फीसदी राज्य सरकार वहन करेगी, एक साल की निर्धारित समय सीमा के अंदर कर्ज नहीं चुकानेवाले किसानों को इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा, उनसे सात प्रतिशत की दर से ही ब्याज वसूले जायेंगे। अब सवाल उठता है कि क्या हमारा किसान एक प्रतिशत के ब्याज पर भी लिये गये ऋण को देने में असमर्थ है, इस पर चिंन्तन करने की आवश्यकता है।

सबसे पहले वे किसान, जिन्होंने आत्महत्या की…

  • 10 जून को पिठौरिया के सिमलबेड़ा गांव के किसान कलेश्वर महतो ने फांसी लगाकर आत्महत्या की। पत्नी के नाम पर किसान क्रेडिट कार्ड पर 40 हजार का लोन इन्हें मिला था, जिसे वे चुका सकने में असमर्थ थे।
  • 15 जून को पिठोरिया के ही सुतियांबे में किसान बालदेव महतो ने कुएं में कूद कर जान दे दी, उन्होंने 25 हजार का कर्ज बैंक से लिया था।
  • 2 जुलाई ओरमांझी के विजांग गांव में किसान राजदीप ने कीटनाशक खाकर जान दे दी थी, इनके परिजनों ने बताया कि इन्होंने बैंक से 90 हजार का लोन लिया था।
  • 11 जुलाई को गुमला के घाघरा थाना के शिवराजपुर पंचायत के बड़काडीह गांव के बिरसाई उरांव ने बैल नहीं खरीदने के कारण आत्महत्या कर ली।

पहली बात, यहां एक बात स्पष्ट है कि यहां किसानों को खेती करने के लिए कर्ज मिल रहे है, उन्हें अब साहुकार या सामंती ताकतों के पास जाना नहीं पड़ रहा कि उन्हें रोज-रोज के सूद देने के कारण उनकी हालत खराब होने की स्थिति आ जायेगी। किसानों को याद रखना होगा कि आपने बैंक से कर्ज लिया है, तो उसे लौटाना होगा और ये सभी करते है, पर इधर हो क्या रहा है कि बैंक से कर्ज लेना और कर्ज लेकर मोबाइल खरीद लेना, मोटरसाइकिल खरीद लेना तथा आराम और विलासिता संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति में सारा कर्ज का पैसा लगा देना और ये सोचना कि जब सरकार बदलेगी तो जो आजकल फैशन चल गया है कि किसानों का कर्ज माफ हो जायेगा तो ऐसे में उनका भी कर्ज माफ हो जायेगा, इसलिए यावत् जीवेत् घृतम् पिबेत् की मनोवृति का जन्म हो गया है, जिसके कारण यह स्थिति धीरे-धीरे उत्पन्न हो रही है। ऋण लेनेवाले किसान ये भूल रहे है कि जिन बैंकों से कर्ज लिया है, उन बैंकों के अधिकारियों पर भी दबाव होता है कि पैसे वसूले, क्योंकि जिन्होंने अपने पैसे बैंक में रखे है, उनके प्रति भी बैंक की जिम्मेदारी बनती है, यह सब को सोचना होगा और खासकर उन्हें जो बैकों से कर्ज लेते है। बैंक में कोई रुपये के पेड़ नहीं लगे है कि वे वहां जायेंगे और रुपये तोड़कर ले आयेंगे, बैंकों की भी अपनी सीमाएं है, जिससे वे बंधे है। आजकल सोशल साइट पर भी बेवजह की बाते ज्यादा होती है, जिसका प्रभाव किसानों पर पड़ रहा है। किसानों को बरगलाया जाता है कि माल्या करोड़ों लेकर भाग गया, अंबानी और अडानी लूट रहा है, तुम भी लूटो, लेकिन ये बरगलानेवाले यह नहीं बताते कि जो गलत करते है, उनके साथ क्या हालात होती है? जैसा कि विजय माल्या को ही ले लें। किन हालातों से उसे गुजरना पड़ रहा है, ये वे स्वयं जानते है, और ज्यादा जानकारी लेना हो तो अपने देश में ही सहारा प्रमुख को देख लीजिये कि धोखा देना कितना महंगा पड़ रहा है, भारी संपत्ति होने के बावजूद जेलों में बंद है, और कब तक बंद रहेगे? कुछ कहा नहीं जा सकता, इसलिए किसानों को भी यह मनोवृत्ति बदलनी होगी, कि बैंक से रुपये लेकर, कर्ज लेकर, खा जाना है और देना नहीं। उन कर्ज को लौटाने में ही समझदारी है।

आत्महत्या समस्या का हल नहीं

जो किसान सोचते है कि आत्महत्या करने के बाद वे सारी समस्याओं से मुक्त हो जायेंगे, तो वे महामूर्ख है। जरा श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ लीजिये या कोई भी आप धर्म को माननेवाले क्यों न हो?  कर्मफल सिद्धांत के अनुसार, आपको अपने कार्यों के प्रतिफल को भुगतना ही है। ऐसा नहीं कि आपने आत्महत्या कर लिया तो जिंदगी समाप्त। आपको मालूम होना चाहिए कि जहां से मौत शुरु होती है, वहीं से जिंदगी भी शुरु होती है और जहां से जिंदगी शुरु होती है, वहां से मौत की भी शुरुआत हो जाती है। आप आत्महत्या के बाद जैसे ही नया जन्म लेंगे, आपके द्वारा किया गया कर्मफल आपको उसकी सजा देगा, आप जितनी बार जन्म लेंगे, और जितनी बार आत्महत्या करेंगे। आपको कर्मफल का प्रतिफल भुगतना ही होगा, छुटकारा मिलनेवाला नहीं, इसलिए अच्छा रहेगा कि आप इसी जन्म में जो भोगना है, भोग लीजिये, इसे कल पर मत छोड़िये, नहीं तो समझ लीजिये, क्या होगा?

आज का किसान आत्महत्या नही करता, सेल्फी लेता है

जी हां। हमने कई किसानों और किसानों की आज की युवा-पीढ़ियों को देखा है, वह आत्महत्या नहीं करता, वह कर्ज भी नहीं लेता। वह अपने हक का हिस्सा, कहीं भी रहकर ले ले रहा है। जरा देखिये – एक है सन्नी शरद। इलेक्ट्रानिक मीडिया में पत्रकार है। जीवंत है। वे किसानी के लिए समय निकाल ही लेते है। गांव से शहर में आये है और इस शहर में भी जहां रहते है, भिंडी, नेनुआ, कद्दु, बैगन आदि उपजा ही लेते है, यहीं नहीं वे स्वयं खाते है और दूसरों को खिलाते भी है और बड़े ही शान से कहते है कि हम आत्महत्या करनेवाले किसान नहीं, सेल्फी लेनेवाले किसान है।

किसानों की आत्महत्या और मीडिया

इधर किसानों की आत्महत्या में मीडिया की भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। किसान ने आत्महत्या की। बस लीजिये उसे अपने अखबारों में रंग दिया। स्थान दे दिया। विपक्षी दल के नेताओं का बयान छाप दिया पर उसी किसान के बगल में रहनेवाला पड़ोसी का बयान, अखबार में ढूढने पर नहीं मिलेगा। झारखण्ड में आत्महत्या आम बात है। यहां जब भी किसी भी परीक्षाओं के परिणाम निकलेंगे तो छात्र-छात्राओं की आत्महत्या की खबरें खुब देखने-सुनने को मिलती है और इसी बीच कई अखबार ऐसे मिलेगें, जो अपने व्यवसाय को और बढ़ाने तथा प्रतिभा सम्मान के नाम पर करोड़ों कमाने का खेल खेलते है। पीतल के टुकड़े और चादर के इस खेल में खुब विभिन्न शहरों में प्रतिभा सम्मान समारोह का आयोजन होता है और इसके बाद वहीं सम्मान पाने वाले छात्र कहां गये? किसी को इससे कोई मतलब नहीं रहता, पर जरा यहां प्रतिभा सम्मान समारोह आयोजित करनेवालों से पूछिये कि हे मीडिया के मालिकों-प्रधान संपादकों, तुमने कभी उन किसानों को सम्मानित करने का कार्यक्रम आयोजित किया, जिन्होंने भयंकर सूखे, बाढ़, कोई सरकारी सुविधा नहीं होने पर भी शानदार फसल उगाएं। उत्तर होगा – नहीं, लेकिन आत्महत्या की खबर, खुब नून, तेल, मिर्चाई लगा कर छापेंगे, पर किसानों की हौसला अफजाई के लिए किसान प्रतिभा सम्मान समारोह का आयोजन न करेंगे और न करनें देंगे, अगर भूल से ऐसा किसी ने कर भी दिया तो उसका समाचार ऐसे जगह लगायेंगे कि आपको ढूंढने पर भी नहीं मिलेंगे। ऐसे में इस राज्य के किसानों की यह दुर्दशा होना तो आम बात है।

आत्महत्या करना एक बीमारी है

सचमुच आत्महत्या करना एक बीमारी है। यह बीमारी ऐसी है कि जिसे भी लगी, आप उसे चाहकर भी नहीं बचा सकते। यह शारीरिक न होकर, पूर्णतः मानसिक है। इसे मनोचिकित्सक भी स्वीकार करते है, इसका सबसे बढ़िया इलाज है कि ऐसे लोगों के मन में जैसे आत्महत्या करने का ख्याल आये, इन्हें मनोचिकित्सक से मिलना चाहिए या परिवार के लोगों को ऐसे लोगों को मनोचिकित्सक के पास ले जाना चाहिए और उसकी अच्छी तरह देखभाल करना चाहिए। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है, जब मैं ईटीवी में था। तब धनबाद रेल मंडल कार्यालय में एक कर्मचारी काम किया करता था, जो कई बार आत्महत्या का प्रयास कर चुका था। उसने अपने वरीय मंडल अभियंता आर एन राय को कहा कि वे उसका तबादला पारसनाथ नहीं करें, क्योंकि उसे दिक्कत होगी, वह कांके रांची जाकर बराबर अपना इलाज कराता रहता है, उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है, अगर वे ऐसा करेंगे तो वह जान दे देगा, लीजिये आर एन राय ने माना नहीं, और उसी दौरान वह व्यक्ति धनबाद रेल मंडल कार्यालय में ही जान दे दिया। इस घटना को वहां कार्य कर रहे सभी लोग जानते है, पर इस मामले को पूरा धनबाद रेल मंडल के वरीय अधिकारियों और रेल कर्मचारी से जुड़े यूनियन के लोगों ने दबा दिया।

ऐसा किसान हमने कभी नहीं देखा

पटना से करीब 14 किलोमीटर दूर है – दानापुर अनुमंडल में पड़नेवाला सुलतानपुर गांव। जहां किसानों की संख्या सर्वाधिक है। जहां मैंने किसी किसानों को आत्महत्या करते नहीं देखा। सभी शान से जीते है। सभी एक दूसरे का ख्याल रखते है. खुब मेहनत करते है। शान से अपने बेटे-बेटी की पढ़ाई कराते, शादी कराते तथा अपनी खुशियों को परवान चढ़ाते है, यहीं नही अगर किसी किसान के घऱ में कोई मर गया, तो उसकी लाश उस परिवार के पैसे से नहीं उठेगी, सभी किसानों के परिवार के लोग अपना-अपना पैसा किसानों के सरदारजी के यहां पहुंचाते है और उन पैसों से उसकी अंतिम क्रिया होती है। किसानों ने अपने लिए कार सेवा के माध्यम से एक सुंदर कुशवाहा पंयाचत भवन भी बनाया है, जहां सभी जाति व समुदाय के लोग जाकर अपने-अपने कार्यों को गति देते है। ऐसा है हमारा किसान और ऐसा है किसान परिवार, जिस पर हमें गर्व है। किसानों के परिवार का ही प्रेम है कि आज भी हम कही रहे, जब भादो महीना के शुक्लपक्ष का तृतीया तिथि आता है, हम कही भी रहते है, पर कोशिश करते है कि हम इन महान किसानों के परिवारों के बीच समय बितायें, क्योंकि जिंदगी और जीना तो हमने इन किसानों से सीखा…