सुप्रियो ने बाबूलाल मरांडी को दी सलाह – रमेश विधुड़ी मत बनिये, अपनी भाषा पर लगाम लगाइये, नहीं तो जनता की भाषा आपके प्रति इससे भी कठोर है, 2024 के लिए तैयार रहिये

झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के केन्द्रीय महासचिव व प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने आज संवाददाताओं से बातचीत में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को सलाह दी कि वे रमेश विधुड़ी की भाषा न बोलें। यह उनकी सांस्कृतिक पहचान भी नहीं है। यहां की संस्कृति, करमा की संस्कृति है, जो प्रेम का संदेश देता है। यह भड़काऊ बात नहीं करता। इस महान संस्कृति का आदर करना सीखिये। अपनी भाषा पर लगाम लगाईये, नहीं तो जनता की भाषा इससे भी कठोर होती है। 2024 के लिये तैयार रहिये।

सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि आजकल भाजपा के नेता पेशा बदल रहे हैं। पार्टी के प्रवक्तागणों को दोहरा दायित्व मिल गया हैं। अब वे केन्द्रीय एजेंसियों के प्रवक्ता भी बन गये हैं। केन्द्रीय एजेंसियों के इतने एवेन्यू खुल गये है कि 2024 के टारगेट के काम भी उन्हें मिल गये हैं। अब तो एजेंसी में आउटसोर्सिंग भी होने लगा है। जिसमें इस बात पर ध्यान दिया जा रहा है कि किन सेलेक्टिव लोगों को बचाना है और किन सेलेक्टिव लोगों को परेशान करना है। इसके लिए कई मिथ्या तथ्यों को बड़ी ही बेशर्मी के साथ पेश किया जा रहा है।

सुप्रियो ने कहा कि हर व्यक्ति वो चाहे किसी भी पद पर बैठा हो, किसी भी स्तर का हो। हमारे संविधान ने अपनी न्याय व्यवस्था में उसे न्याय मांगने, अपनी सुरक्षा व संरक्षण के अधिकार दिये हैं। इसके लिए कई प्रोसेस हैं। उन्होंने कहा कि चूंकि अब इंडिया नाम लेने से भाजपाइयों को दिक्कत हैं, इसलिए अब वे इसकी जगह डिजिटल भारत ही बोलना पसन्द करेंगे।

सुप्रियो ने कहा कि अब तो चाहे जमीन की रजिस्ट्री हो या मोटरव्हीकल का लाइसेंस या ड्राइविंग लाइसेंस या आधार या पासपोर्ट अब तो हर जगह ऑनलाइन ही आवेदन जमा हो रहे हैं। जिसमें कई तरह की प्रफोर्मा रहती है। उसी तरह राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर हाई कोर्ट में अपील दायर की। जिसमें कई त्रुटियां रह गई। जिसको लेकर हाई कोर्ट ने क्लियरिफिकेशन मांगे, ताकि हार्ड कॉपी में क्लियरिफाई की जाये।

सुप्रियो ने कहा कि ये सामान्य चीजें हैं, हर केस के मामले में यह सब होता है। एक करेक्शन स्लिप आता है। चुनाव के समय भी रिटर्निग ऑफिसर को जब कही कोई चीजें क्लियर नहीं हो पाती तो संबंधित उम्मीदवार से वो उस संबंध में क्लियरिफेकशन मांगता है। इसमें कोई नहीं बात नहीं। पर पता नहीं, भाजपाइयों को इसमें भी क्यों मिर्ची लग गई? जबकि कई मामलों में कभी उन्हें भी न्यायालय ने ऐसी नोटिस थमाई हैं, पर झामुमो ने तो इसे कभी मुद्दा नहीं बनाया।

सुप्रियो ने कहा कि इसके बाद से वे मुख्यमंत्री के लिए पता नहीं किस-किस भाषा का प्रयोग करने लगे। एक मुख्यमंत्री के लिए एक पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा यह कहा जाना कि विस्थापित मुख्यमंत्री, उनकी जानवर से तुलना करना आखिर ये सब क्या बता रहा है? एक अदना सा आदमी बोलता है कि समय खरीद रहे हैं। भाग रहे हैं। ये कौन सी नई भाषा है? जब राजनीतिक रुप से लड़ने का माद्दा नहीं रखते हैं आप तो इस प्रकार की भाषा पर उतर आये। एक सांसद कहता है – भाग-भाग। ये सही चीजें नहीं है और जिस प्रकार ईडी को उद्धृत किया जा रहा है, एक मंत्री कह रही है कि हमारी बात मान लो, नहीं तो ईडी-सीबीआई भेज देंगे, वो भी संसद के अंदर, समझ नहीं आ रहा कि इनलोगों को किस भाषा में जवाब दिया जाये।

सुप्रियो ने कहा कि इनलोगों ने पांच दिन का संसद का विशेष सत्र बुलाया। महिला आरक्षण बिल पास करवाया। हमने कहा कि महिलाओं को आरक्षण दो। तब कह दिया कि पहले जनगणना होगा, फिर परिसीमन होगा। उसके बाद महिला आरक्षण मिलेगा। हम कह रहे हैं कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, आप महिलाओं को अपनी पार्टी की ही ओर से आरक्षण दो, तो वे बगले झांकने लगते हैं। मतलब खुद भाग रहे होते हैं और दूसरे को कहते है कि वो भाग रहा है। मतलब साफ है कि हम न्यायालय भी नहीं जाये।

सुप्रियो ने कहा कि कल तो बाबूलाल मरांडी ये भी ट्विट करेंगे या न्यायालय को चिट्ठी लिखेंगे कि फलां व्यक्ति को सश्रम कारावास की सजा सुना दी जाये। गुजरात की हाई कोर्ट की तरह बलात्कार के आरोपियों को सजा मुक्त जैसे किया गया, उसी तरह यहां भी फलां की सजा माफ कर दी जाये। दरअसल भाजपाइयों के मन में डर, भय, हताशा, पराजय का भय समा गया है। तभी तो ये चरित्र हनन पर उतर आये हैं। अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने लगे हैं। सरकार जब पेसा लेकर आ रही है तो इनके पेट में दर्द होने लगा है कि अगर ग्राम सभा मजबूत हो जायेगी तो उनके कारपोरेट मित्रों का क्या होगा? इसलिए हेमन्त सोरेन को परेशानी में डाल दो।